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શ્રીમદ્ વિજયાન દસૂધિરની જૂનાગઢમાં ઉજવાયેલી જય'તી.
परमपूज्य गुरुवर्य, सद्ग्रहस्थो सुशीला बहनों ?
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पूर्व कथनसे आपको यह विदित है, कि अपने इस पवित्र भूमि किसलिए एकत्र हुए है । में आज किसलिए यहां उपस्थित हुआ हुं यह भी आप जानते है । इसके पहले मैं इतना अवश्य कहुगां, कि मुझे परमपूज्य मरहूम महात्मा न्यायाम्भोनिधि श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वर के दर्शनका सौभाग्य नही मिला, परन्तु निकटोपकारी श्री गुरुमहाराज के मुखारविन्दसे सुन और उनके कर चरिके अवलोकनसे, जो कुछ मुझे उपलब्ध हुआ, उसमे से यत्किंचित् बोलना चाहता हु । बाकि तो मेरे मातःस्मरणीय श्री गुरुजी महाराज उनका निर्मल जीवन सुनावेगें ही क्योकि आपके अन्त समयतक आपकी सेवामे आप ( श्री गुरुजी महाराज ) हाजिरथे इसलिए आप जितना कह सकते हैं मेरे ख्यालमे अन्य कोइ न कह सकेगा । उपकारीका उपकार न भूलना इसीको कृतज्ञता कहते है, ear बात है कि आज हम तुम उपकारीके उपकारको स्मरण कर कृतज्ञ बननेका प्रयत्न कर रहे हैं ।
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सज्जनो ! इन महात्माने जो उपकार किये हैं उनका वर्णन करना मेरी शक्ति से बाहर है, यानि वचनातीत है, तो भी मैं इतना अवश्य कहुगा कि जिस समय जैन समाज अज्ञान समुद्रमे डुबकी खा रहा था, जिस समय शान्तिसागर अपनी मर्यादाको उलंघ कर अशान्तिके तोफानसे जैन समाज के जहाजको डुबा रहाथा, जिस समय राजेन्द्रसूरि बाह्याडंबरसे, मधुर वाणीते, और कुयुक्तिओसे, वाग्जालमे फसाकर अपने पाण्डित्यका परिचय दे रहाथा, जिस समय अध्याम नही, नही, अंधातमकी कालिमा हुकुमरूप होकर “ सूरत " को अंधेरेमें आँख बन्द कर रहने के लिए प्रतिज्ञारूप वाडे बन्दकर रहाथा नही नही पशुओंके न्याइ पुर रहाथा, कहांतक श्रद्धालु धर्मात्माओंको धर्माचरण से पतितकर अपने सदृश स्वेच्छाचारी बनानेका प्रयत्न कर रहाथा
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जिस समय जैन समाज के प्रातःस्मरणीय मुनिमण्डलकी विद्यः शिथिल होरहीथी, सौभाग्यवश विधर्मिओके कराल गालसे बचे हुए जगतके आदर्शरूप हजारो ग्रन्थ भण्डार कार्यवाहकों के प्रमादसे की डेके शरण हो रहे थे यानी सड रहेथे. उस समय जैन समाजको पुर्वोक्त महान कष्टसे मुक्त करनेका काम इन्ही महात्माने किया इसलिये जैन समाज इन महात्माका कितना ऋणि है यह आप स्वयं