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શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ,
यन्मुग्धा नयनान्त चेष्टितमिवाध्यक्षेपिनालक्षितं, तत्तेजो विनयादमंदहृदया नन्दा
यवन्दामहे ॥१॥ योविश्वं वेद वेद्यं जलन जलनिधे भगिनः पारदृश्वा पौर्वापर्याविरुद्धं वचनमनुपम निष्कलंकं यदीयं तं वन्दे साधुवन्धं सकलगुणनिधि ध्वस्तदोषद्विपन्नं वुद्धंवा वर्धमानं शतदल निलयं केशवं वा शिवं वा चारित्र सिन्धो करुणा सुधेन्दो निस्स्वार्थवुध्या भवजीववन्धो कैसे करुमै स्तवना तुह्मारी हुं अल्प ईहा दिल भक्ति भारी में स्तोत्र इस्से करने खडा हुँ वार्ता प्रसिद्धा खलु लोक मध्ये फेंका हुआ पथ्थर खंउ क्या न प्रयातिशीघ्रं गगनान्तराले
॥ ३ ॥ कहो प्यारे वन्धो छवि निरखके सूरिवरकी, न को हर्षावेगा त्यजति जलधारां स्वनयनात् प्रतिष्ठयादृष्टाप्रथमकृतपुण्यैर्वहुतरैः, हमारे भाग्योमें दरशन कहां शुद्ध मुनिका ।।३।। लुभाती थंभाती मन नयनको मुर्ति जिनकी, प्रतिष्ठाया भी अहह सकती आज
तक है यदि साक्षात्होते स समयमें सूर्य समजो, समाजोका सारा दुख विलय होता
निरखके ॥ ४॥ न कष्टोंकों देखा परउपकृति चित्त धरके, जिन्होने देखाया सुगतिपथको नाम उनके फिराते मालामें सवजन सदा प्रेम धरके, नमो तस्मै प्रेम्नाविजयिविजयानन्द ।
कृतिने ॥५॥ उवारा दुःखोसे जनम धरके पंचदनको, हटाया अज्ञान प्रखर करहो अन्ध तमको, नही तो भी धारा निज हृदयमें ज्ञान मदको, नमो तस्मै भेम्ना विजयिविजयान
न्द कृतिने ॥ ६॥ पसारा सद्धर्म क्षिति तलविषे ग्रन्थरचके, उतारा दुर्वादि मद वचनको सिद्धगिरिमें, सभी नेताओंने मिलकर दिया मृरिपदको-नमोतस्मै.
॥७॥ चिकागोमें भेजा प्रतिनिधिवना जैनमतको, बतानेके हेतु जगतजनके सत्यपथको, बने श्रद्धाधारी गुरु समझके मृरिवरको, । नमोतस्मै प्रेम्ना-
॥८॥ सभीके प्रश्नोका समुचितपने उत्तर दिया, प्रशंसाकी काव्यविमल रचके हार न लने, नही जीते भूल उपकृति महा कोविदजन, नमोतस्मै प्रेम्ना
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