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आत्मानन्द प्रकाश.
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श्ह हि रागद्वेषमोहाद्यनिभूतेन संसारिजन्तुना शारीरमानसानेकातिकटुकदुःखोपनिपातपीमितेन तदपनयनाय हेयोपादेय--
पदार्थपरिज्ञाने यत्नो विधेयः ॥ ( पुस्तक ११ ] वीर संवत् २४०, चैत्र आत्म. संवत् १८ [ अंक ए मो.
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प्रभुस्तुति.
शार्दूलविक्रीमित. नित्ये 'आगमदेशना जाथकी जे नित्य गाजी रह्यो, पेखजे 'परमात्म चंज उरनी जर्मि नछाळी रह्यो जे लागे सुखकार जव्य जनने सद्भान गांनिर्यमां, रहेजो आ अमचित्त मग्न सुखथी ते 'वीर अंभोधिमा र
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१ आगम-शास्त्र द्वारा कहेल देशना रुपी जलथी. २ परमात्मा हपो चंद्रने जोइ. ३ मि मोजा ४ उत्तम ज्ञान रुपी गंभीरतामा ५ ओवीरभगवान् रुपा समुद्रमा
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