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________________ દિક્ષા મહોત્સવ. जाहां जिनमंदिर और वादिमुख भंजन माहात्मा बल्लभविजयी महाराज विराजमानथे पहुचने लगे हालांकि उपरसे धूप पड रहीथी पर तिसपरभी दिक्षा उत्सब देखने वास्ते हजारों मनुष्य टीडीदलकी तरह घंटो पहलेसे जमाहोगया जल्लूस दिक्षा लेनेवालों सीनो महाषयोहाँ पालखीमें विठाकर मोहनवाडी पहुंचे वहांपर जाकर करीव तीसहजार ३०००० नरनारीयोंकी भीड जमा होगई उस समय दिक्षाका कार्य प्रारंभ होनेसे पहले पबलिकको दिक्षा लेनेवालों तीनो महाश्योंका कंचित इतिहास और दिक्षा लेनेका कारण और पिछाडीकी जादादका निस प्रकार विभाग किया पश्चात समोसरणकी रचना युक्त भगवत देवके सनमुख शास्त्र विधि अनुसार दिक्षा दी गई और किशनलालजीका नाम तिल क विजयजी और अच्छरमलजीका नाम विद्याविजयजी और मच्छरमलजीका नाम विचार विजयजी दिक्षाका नाम दिया गया बाद नारयलोंकी परभावना दीगई उसदिनका समस्त खर्च श्रीमान सेठ धेवरचंदजीके पुत्र सेठ फूलचंदजी कोठारीकाथा बाकी सर्व सर्ख श्री संघकाथा. कोटिसः धन्यवाद जैपुरके सकल श्री संघको है कि जिसने ये अपूर्व काम करके जैन धर्मकी महिमाको बढाई है कि जिनकी प्रशंसा के वास्ते वो शब्द हमारे पास नही हैं जिनके द्वारा उनकी स्तुति कीजावे तथापिजो आजतक इस प्रकारका समारोहसे उतसब पहले कभी जैपुरमॅनः होने परभीये उत्साब निर्विघ्नतासे पार उतारा है उसका अन्य समस्त नगरोंकी तर्फ से जैपुरके सकल भाइयोंको धन्यवाद दिया जाताहै और साथही प्रार्थना है कि जिस प्रकार धर्ममें द त चित्त होकर इस सम य जिनधर्मकी प्रभावना करके वृत नियमादि गृहण करके पाठशा काका झंडा गाडा है उस उत्साहको सदैव इसी प्रकार वृद्धि
SR No.531071
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages22
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size1 MB
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