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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ઉન્નતિ ના હોનેક કારણ. ૨૧૩ भ्रातृगणों में डंकेकी चोट कहताहूं कि बिना उपदेशकोंके कोई मजहब नही चला और उपदेशकोंके गारत होतेही वो मजहब गारत होगये जिसका उदाहरण प्रत्यक्ष रूपसे देखलो कि मूर्य गडाग मूत्रमें जिन ३६३ पाखंडीयोंका खंडन किया है उनमेंसे कितनेही धर्म नेस्त नाबुद होगये याद करलो तरीखे देखलो हदीसें पढलो और इतिहास सुनलो यही सार निकलेगा कि उनके पहले उपदेशक नष्ट हुवे बादमें मजहब नष्ट हुवा. - वही कायदा फोज काहै जहांतक सरदार फोज काहै फोज झंडे तले लडती है सरदार के मरतेही फोज भाग खडी होती है या दूसरे की शरण लेती है यहां झंडा जो है वो धर्म है और उपदेशक जो हैं वो सरदार है जबतक धर्म रूपी झंडा उपदेश्क रूपी अफसरोंके हाथमें हैं तबलो फोज रूपी जैन जाति सीमाके अंदर है और जब उपदेशक रूपी सरदार नहीं रहता तो धर्म रूपी झंडा कौन उठावे नः झंडा उठाने वाले रहते हैं नः उसके तले फोज लडने वाली जमा होती है विना झंडेके उठाये खंड वंड मामला हो जाता है इसी वास्ते बारम्बार पुकारकर कहा जाता है कि धर्म रूपी झंडा उठाने वाले उपदेशक जहांतक हो शीघ्र वढावो. भाईयो ये आपका मजहब जो आजतक कायम रहा उसका यही कारण है कि बडे रहो या छोटे पर धर्म रूपी झंडा उठाने वाले उपदेशक बने रहै अगर वो नः होते तो कभीका यह मजहब गारत हुवा होता और हवा भी जब २ झंडा उठाने वाले सरदार कमजोर हुवे दूसरे लोगोंने बल पाकर अनेक फिरके काढ लीये जो आजतक जहाज रूपी जिन धर्म को मगर मच्छोंकी भांति टक्कर मार रहें हैं. भातगणों, में घोषणाके साथ कहताहुं कि उन टक्करोंकी रोक For Private And Personal Use Only
SR No.531069
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size2 MB
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