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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir હમારી ઉત્પતી કો નહીં હૈતી. ૧૩૭ · भाईओ सो चनका स्थान है कि जिन २ लोगोंका ऐसा ध्यान है उनसे धर्मोन्नतिकी क्या आशा की जाती है तभी तो वो न्यूनता हममें रहजाती है कि जिसके नः होनेसे हमारी जाति रसातलको पहुंचती जाती है यदि अब जरूरत है तो हममें यही है कि जो हम अपने मुखसे कहैं करके दिखावें खाली बातां नः बनावें इसीसे हमारी सर्वस्व हर्ण हो रहा है कि हम कहते कुच्छ है और करते क्या सत्य पुपोंके यही लक्षण हैं-नहीं-नही-हरगिज नही मनुष्यों को अपना वचन पूरा करना चाहीये मारवाड मेवाड आदिम अधमसे अधम जाति भी अवतक अपने वचन पूरे करनेमें कटीबद रहकर यह कहावत कहा करती है. । सिंह गमन सस पुर्ष वचन और कैल फले एक बार । है तिरया तेल हमीर हठ चढे नः दूजी वार मित्र से आपका उली वीर भूमी से निकास है और ऊंचसे ऊंच जाति हो तो क्या इतनाभी ध्यान नहीं है देखये अन्यमतीभी इम नियमकी बाबत क्या कहते है तुलसीदासजीने रामायणमें कहा है. । रघुकुल रीत सदा चली आई । । प्राण जाय पर वचन न जाई भाईयो आप तो सर्वोपरी श्रेष्ट जैन धर्म में होक जिसमें खास कर इसी नियम के वास्ते दुसरा मृषावाद व्रमण त न फसीलसे कहा है और अनेक कथाओं द्वाराभी आपको समझाया है अनेक ग्रंथ पूर्वाचार्योंने रचे हैं पर हमारे भाईयोंको जराभी ध्यान नहीं है कि सत्य बोलना किस चियाको कहते हैं हाय अफसोस For Private And Personal Use Only
SR No.531066
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size2 MB
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