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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૩૬ આત્માન પ્રકાશ. नहीं रखते और बहुत भाग ऐनाभी है जो घर पहोंचतेही ऐक दोदीन सभाकी चर्चा करते है.बहुत जोर मारातो ऐक हफता सभाके गीत गाते रहै कोई हदमे बह गया तो ऐक पक्ष खींचातान करताहै पूरा मास तो कोइ पकडनाही नहीं आगे आगे मारेही चुप हो जाते है मानो ये भोले बालक कुच्छ जानते ही नही थे ( वहुत मा भाग स्त्रीयोंके फंदे फसा हुवा है मन तो करता है कि प्रतिज्ञाका पालन करें परन्तु घर वालियों के भय के आगे वे चार कुच्छ कर नही सकते चाहै एकवार नहीं हजारबार प्रतिज्ञा भले ही करले चाहै अपनी ही स म्नति से क्यों नः रुल पास कर आवे, परन्तु घरपर आते ही छक्कडी भूल जाते हैं जो घरवालीका हुकम चह गया मानो विधाताका ले ख हो गया फिर चाहै अपनी प्रतिज्ञाका मलिया मेट होजावे लाज शर्मा पंचान में जाती रहै देशका धर्मका जाति का सर्वस्व नाश हो जावे चाहै समस्त रही सही भी इज्जत खाक में मिल जावे तोभी कुच्छ परवाह नही पर घरकी गुरनी की तो सीख माननी ही पडेगी जैसाकी भरतपुर निवासी कुच्छ भाइयोंने करके दिखाया है, वहांपर हाल हीमें एक ओनसरी उपदेशकने कुरीती सुधारपर उपदेश दिया सबनेही स्वीकार कर लिया पर इतनाही वाकी था कि घरवालीयों से नहीं पूच्छाथा रात्री घरवालीयोंने वो छटादार भाषण एनाये कि भूल गये चौकडी सुबह होते ही लगे राग ओंधा ही अलापने क्योंकि रातो तो गुरनीजीने मंत्रही पूरा पहाया था भला उसका नशा क्यों उतरने लगाथा कहां तो निश्चय कियाथा कि प्रभात मंदिरजीमें समस्त भाई एक पत्रपर हस्थाक्षर करेंगे और कहा मंदिरमें एकत्र होकर रात्रीका पढा हुवा सबकु सुनाने लगे और अंतमें रात्रीका पडा पाठ पूरा करके समयको टाल चम्पत वने. (अपूर्ण) For Private And Personal Use Only
SR No.531066
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size2 MB
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