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________________ शुद्धाशुद्ध-पत्र मेरी अनुपस्थिति में ग्रन्थमाला के दो फर्मों का संशोधन एक ही संशोधक के दृष्टिगोचर होने से कुछ अधिक अशुद्धियाँ रह गयी हैं, उनका शुद्ध रूप नीचे दिया जाता है । प्रशस्ति-संग्रह ( के० बी० शास्त्री) पृष्ठ , ง २ २ २ ३ १ ६ ७ J ८ ८ ८ 1 २ ४ ४ ४ & 19 9 पंक्ति २ ११ ७ १३ १६ ४ १० ६ ८ ११ १२ २६ १ १२ १५ १५ १६ १८ २१ २२ ३ १० १२ २६ १६ १७ ८ १३ २१ २२ अशुद्ध रूप प्रभेन्दुरचिता (?) लघुवृत्ति युक्तिस्व प्रारीत्सुः स्मृतश्चेति एतद्विका जैन इतिहाषान्वेषी इसका अघाति अंधाख्यमुनिकेवलाः पराजितमहातपाः विशुद्वयस्तान् सृष्टि: कालविषोपम् मिवागच्छ तयनतेजसा ज्योत्स्ना: जिनचन्द्रजा: वर्धयन्ति सम्यक् कफगंद योगानुयान क्रमातू समाछाद्य दिवारावि सुद्ध format कोलुक मालकांनी वैद्यसार यष्ट्यमिधामेला ? पिटकाविणान् भस्म बन पर जाने पर औषाध शुद्ध रूप प्रभेन्दुरचितालघुवृत्ति क् प्रारिसुः स्मृतिश्चेति एतद्विकाम् जैन इतिहासान्वेषी इसकी अघात्यराति जम्बूख्यमुनिकेवलाः sपराजितमहातपाः विशुद्ध्या तान् Willko काल विषोपमम् मित्रागच्छ तपनतेजसा जिनचन्द्रजा सम्बग् कफगर्द योगानुपा क्रमात् समाच्छाद्य दिवाराल शुद्ध forest कोलकं मालकांगनी rer मधाला पिटिकादिवान् भस्म बन जाने पर औषधि
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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