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________________ किरण ?] नीतिबाक्यामृत और कन्नड-कवि नेमिनाथ अन्यान्य माघनन्दियों में दूसरा कोई माघनन्दी भट्टारक पदधारी है भी नहीं । अतः मेरा यह अनुमान एक प्रकार से निर्विवाद सा ज्ञात होता है। श्रवणबेलगोल के उल्लिखित ४६६ नं० के शिलालेख में मेरे इन भट्टारक माघनन्दी की गुरुपरम्परा यों दी गयी है : मूलसंघ देशीयगण पुस्तकगच्छ कुंदकुंदान्वय में माघनन्दी सिद्धांत-चक्रवर्ती हुए। इन के शिष्य भानुकोर्ति जी हुए। इन्हीं के शिष्य हमारे भट्टारक माघनन्दी जी हैं। इस भट्टारक माघनन्दी की प्रशंसा शिलालेख में-"अखिलकलामय, उदारचरित, अतिविशदयशोधाम, मुनिपुङ्गव, वरविद्यामहित, व्रतीश्वर" आदि अनेक विशेषणोल्लेख-द्वारा की गयी है। इनके प्रगुरु-सिद्धांत-चक्रवर्ती माघनन्दी 'होय्सलराय' के राजगुरु थे। जैनशिलालेख के सुविज्ञ सम्पादक बाबू होरालालजो एम० ए० का कहना है कि "संभवतः ये ही उस 'शास्त्रसार' के कर्ता हैं जिन का उल्लेख प्रारंभ के एक श्लोक में आया है" जन
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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