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________________ ३२ भास्कर ४६ - अजीर्णादौ अर्धनारीश्वररसः बिषं सगंधं हरितालकं च मनःशिला निस्तुवदंतिबीजं ॥ सूतं सताम्र दरदैः समेतं प्रत्येकमेतत् समभागकं स्यात् ॥१॥ निर्गु डिपत्रस्य रसेन पेयं धत्तूरपत्रं सहमंजरी च । दिनत्रयं मर्दित एव सम्यक् गुंजाप्रमाणां गुटिकां प्रकुर्यात् ॥२॥ छायाविशुष्कं सगुडं च भक्ष्पं प्रपक्कदुग्धमनुपानमेव । सकोष्णवारिसदनानुपानं रसोऽर्धनारीश्वरनामधेयः ॥३॥ [ मांग ३ टीका - शुद्ध विष, शुद्ध गंधक, हरिताल भस्म, शुद्ध मैनशिल, शुद्ध जमालगोटा, शुद्ध पारा, ताम्र भस्म तथा शुद्ध सिंगरफ ये सब समान भाग लेकर सम्हालु की पती के रस की भावना देवे फिर धतूरे के पत्तों के रस की बाद में तुलसी के पत्तों को रस की भावना देवे। इन तीनों के रस की तीन दिन तक लगातार भावना देने के पश्चात् एक एक रती प्रमाण गोली बांधे और छाया में सुखावे । पुराने गुड़ के साथ सेवन करने के बाद एक पाव कच्चा दूध पिये और यदि अजीर्ण हो तो यह गोली गर्म जल के अनुपान से देवे। यह अर्धनारीश्वर रस उत्तम है । ४७ - प्रमेह चन्द्रकलारस: पला तु कर्परशिलासुधात्रीजातीफलं गोत्रशाल्मलीत्वक् । सूतं च बंगायसभस्ममैतत्समं समं तत्परिभावयेच्च ॥ १ ॥ गुड़ चिकाशाल्मलिकारसेन निष्कार्धमानं मधुना च दद्यात् । वध्वा गुटी चन्द्रकलेतिसंज्ञा मेहेषु सर्वेषु नियोजयेच्च ॥२॥ टीका- छोटी इलायची, शुद्ध कपूर, शुद्ध शिलाजीत, श्रवला, जायफल, गोखरू, सेमल की छाल, शुद्ध पारा, बंगभस्म और लौहभस्म ये सब बराबर बराबर लेकर खरल में गुर्व तथा सेमर के कंद के स्वरस में घोंट कर गोली बनावे और सुबह शाम १॥ माशे की मात्रा से शहद में सेवन करने से सम्पूर्ण प्रकार के प्रमेह शान्त होते हैं ।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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