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किरण ४]
प्रशस्ति-संग्रह
हमारा ज्योतिषशास्त्र दो भागों में विभक्त है। एक गणित और दूसरा फलित या होरा. विज्ञान । प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम "केवलज्ञानहोरा" है। हारा की व्युत्पत्ति विद्वानों ने यो की है-"आद्यतवर्णलोपात् हारास्माकं भवत्यहोरात्रात्"-अर्थात् 'अहोरात्र' शब्द का प्रादिम अक्षर 'अ' और अन्तिम अक्षर 'त्र' इन दोनों के लोप कर देने से हारा'* शब्द व्युत्पन्न हुआ है। 'केवलज्ञानहोरा' इस नामसे बहुत से व्यक्तियों की यही धारणा है कि यह भी फलित ज्योतिष का एक मौलिक ग्रन्थ होगा। अवकाशाभाव से इसका विशेष परिचय इस समय यहाँ पर नहीं दिया जा सका। हाँ इस विद्या के मर्मज्ञ किसी सावकाश विद्वान् को इस पर कुछ विशेष प्रकाश डालने की चेष्टा करनी चाहिये। “दिगम्बर जैन प्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ' में भी इसे ज्योतिषशास्त्र ही लिखा है। साथ ही साथ प्रेमी जी की इस पुस्तक में इस 'केवलज्ञानहोला' की श्लोकसंख्या तीन हजार बतलायी गयी है। परन्तु प्रारंभिक “परोपदेशिकं ग्रन्थं ? मया सप्तशतं कृतम्” इस तीसरे पद्यभाग से इस प्रन्य की श्लोकसंख्या सात सौ सिद्ध होती है। किन्तु ग्रन्थ बहुत बड़ा है। न मालूम प्रन्थकर्ता ने यह सात सौ संख्या किस बात की दी है।
इसके कर्ता चन्द्रसेनमुनि हैं। इन्होंने अपने इस ग्रन्थ के "केवलज्ञानहोरायाश्चन्द्रसेनेन भाषितम्" इस पद्यांश में इस बात को स्पष्ट कर दिया है। साथ ही साथ "आगमः सदृशो जैनः चन्द्रसेनसमो मुनिः। केवली (१) सदृशी विद्या दुर्लभा सचराचरे ॥” इस पद्य में अपनी प्रचुर प्रशंसा भी की है। इधर उधर बहुत कुछ टटोलने पर भी इनके बारे में विशेष परिचय मैं नहीं मालूम कर सका। ग्रन्थान्तर्गत बातों से ज्ञात होता है कि आप ज्योतिषशास्त्र के एक अच्छे ज्ञाता थे। इसमें कोई शक नहीं कि आप कर्नाटकनिवासी एवं कन्नडभाषी थे। क्योंकि अपने ग्रन्थ के संस्कृतबद्ध पद्यों (कर्णसूत्रों) का खुलाशा करने के लिये इन्होंने जहाँ तहाँ कन्नडभाषा का भी अधिकतर आश्रय लिया है। भवन की यह प्रति श्रवणबेलगोल की कन्नड़ प्रति से उतारी गयी है, किन्तु है यह बहुत अशुद्ध । अतः यहाँ आपकी संस्कृत-रचनाशैली के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। किसी शास्त्रागार में इसकी कोई शुद्ध प्रति का अन्वेषण परमावश्यक है। इसमें जो प्रकरण। हैं उनमें कुछ का नीचे नाम-निर्देश किया जाता है :
हेमप्रकरण, दाम्यप्रकरण, शिलाप्रकरण, मृत्तिकाप्रकरण, वृक्षप्रकरण, कार्पास-गुल्मवल्कल-तृण-रोम-चर्म-पटप्रकरण, संख्याप्रकरण, नष्टद्रव्यप्रकरण, निर्वाहप्रकरण, अपत्य
* ज्योतिषोक्त लग्न एवं एक राशि या लग्न के आधे भाग को भी होरा कहते हैं। + ये प्रकरण किसी काण्ड या अध्याय के अन्तर्गत है।