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प्रशस्ति-संग्रह
(सम्पादक–के० भुजबली शास्त्री)
(क्रमागत ) नेल्लूर के शक वर्ष १२२१ (खीस्ताब्द १२६६) के एक शासन में "तस्याप्रजः सुतो मन्वगण्डगोपालभूपतिः। प्रतापरुद्रभूपस्य प्रसादाचितवैभवः” ऐसा उल्लेख मिलता है। इससे इस मन्वभूप का समय खिस्त शक १२९६ सिद्ध होता है। अतः कवि अमृतनन्दी का काल भी खिस्त शक १३वीं शताब्दी का अन्तिम भाग ज्ञात होता है। यह कवि प्रतापरुद्र के प्राश्रय में प्रतापरुद्रीय प्रन्य के रचयिता विद्यानाथ के समकालीन होंगे या कुछ इधर के।"
इन उल्लिखित दोनों उद्धरणों से इस ग्रन्थ के रचयिता यही अमृतनन्दी हैं तथा इनका समय भी वही १३वीं शताब्दी है यह बात प्रमाणित होती है।
११०) ग्रन्थ नं० २१
केवलज्ञानहोरा फर्ता-चन्द्रसेनमुनि
विषय--ज्योतिष भाषा-संस्कृत चौड़ाई-८॥ इञ्च
लम्बाई-१३॥ इञ्च ।
पत्रसंख्या -३१
प्रारम्भिक भाग:
अनन्तविद्याविभवं जिनेन्द्र निधाय नित्यं निरवद्यबोधम्। स्वान्तेऽहमिन्दुप्रभमिन्द्रवन्ध वक्ष्ये परां केवलबोधहोराम् ॥१॥ होरा नाम महाविद्या वक्तव्यश्च भवद्धितम् ।
ज्योतिर्शानकलासारं भूषणं बुधपोषणम् ॥२॥ *बीच बीच में कुछ सादे पृष्ठ भी हैं।