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________________ प्रमाणनयतत्वालोकालंकार की समीक्षा (ले०-पंडित वंशीधर जी, व्याकरणाचार्य, न्यायतीर्थ, साहित्य-शास्त्री) प्रकृत ग्रन्थ में प्रमाण, प्रमाणाभासों तथा नय, नयाभासों का विवेचन सूत्रों द्वारा किया गया है। इस ग्रन्थ के देखने से मालूम पड़ता है, कि वास्तव में यह ग्रन्थ सूत्रप्रन्थों की कोटि से अधिक पीछे है। सूत्रों में सरलता, लघुता, पूर्वापर संबन्ध-वाहकता पद-सार्थकता आदि आदि बातें अधिक अपेक्षणीय रहती हैं, जो कि इस ग्रन्थ में नहीं पायी जाती हैं। कहीं कहीं पर तो सूत्रों तक की निरर्थकता भी पायी जाती है। ग्रन्थ का आधार तथा ग्रन्थ कर्ता का इस के गोपन करने का असफल प्रयत्न ___ यह ग्रन्थ दिगम्बराचार्य श्रीमाणिक्यनन्दी के सूत्रग्रन्थ परीक्षामुख के आधार पर लिखा गया है तथा इसके बहुत कुछ विषय का आधार परीक्षामुख की टीका प्रमेयकमल मार्तण्ड जान पड़ता है। यों तो प्रायः सभी प्रन्यों में दूसरे ग्रन्थों का कुछ न कुछ मिश्रण पाया जाता है किन्तु इस ग्रन्थ में परीक्षामुख का विचित्र रूप से ही संमिश्रण किया गया है। ग्रन्थकर्ता ने परीक्षामुख से भेद पैदा करने के लिये सूत्रों में शब्द-परिवर्तन का ही प्रायः सर्वत्र ध्यान रक्खा है। हिताहितप्राप्तिपरिहारसमर्थ हि प्रमाणं ततो शानमेव तत् ॥२-२॥ परीक्षा मु० अभिमतानभिमतवस्तुस्वीकारतिरस्कारक्षम हि प्रमाणमतो ज्ञानमेवेदम् ॥३-१॥ प्र. न० तत्वा । ___ इसी तरह का शब्दपरिवर्तन ही सर्वत्र पाया जाता है। इस प्रन्थ में कम से कम परीक्षामुख के विषय में यदि मौलिकता खोजी जाय तो कहीं कहीं पर मिल सकती है लेकिन बहुत कम, और वह भी विशेष महत्व की नहीं। कहा जा सकता है कि जब प्रतिपाद्य विषय एक है तो मौलिकता कहाँ से आ सकती है ? लेकिन बात ऐसी नहीं है ; मौलिकता रचयिता की रचनाशैली से आती है। भले ही प्रतिपाद्य विषय एक हो पर, जहाँ शब्दपरिवर्तन ही नहीं, कहीं कहीं पर तो अनुचित शब्दपरिवर्तन से हो ग्रन्थरचनाको गयी है वहाँ पर मौलिकता की खोज करना असफल प्रयत्न ही कहा जायगा।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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