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॥ श्रीजिनाय नमः॥
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THE JAINA ANTIQUARY. जैनपुरातत्व और इतिहास-विषयक त्रैमासिक पत्र
भाग २
मार्च, १९३६ । फाल्गुन वीर नि० २४६२
किरण
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भास्कर की वर्ष-समाप्ति (ले०-श्रीयुत पं० हरनाथ द्विवेदी)
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वरवीर-धर्म-धुरधारी “निर्मल' निधिपति अपनाकर, सहृदय सुविज्ञ सम्पादक-मण्डल-अविरल-बल पाकर ।।। इतिहास-पुरातत्त्वों का शुचि-शुभ्र सार विकसाकर, पाठक पवित्र-प्रेमी को प्रोज्ज्वल कर से हुलसाकर ।२। जिनधर्म-चक्रधारी-सम "चक्रेश' चारु महिमाकरमंजुल-सुछत्र-छाया में शोभन यह वर्ष बिताकर ।३। लेखक-ललाम के अनुपम लेखन-प्रदीप दीपित कर, श्री “शान्ति”-सुधा-मानससर के हंस-वंश-अवतर कर ।। छबि-धाम “लाल छोटे' की वर वृहत् लालिमा लाकर सुख से निजतेज प्रसारा, 'भास्कर'' ने तम विनशाकर |RA
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