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________________ भास्कर [ भाग २ ३१-वाजीकरणादौ लीलाविलासरसः अहिफेनं वार्धिशोकं च त्रिसुगंधं च तत्समम् । धूर्तबीजसमायुक्तं विजयाबीजतत्समम् ॥१॥ तद्रसैः भावनां कुर्याद्रसो लीलाविलासकः। चणकप्रमाणवटिका दीयते सितखंडया ॥२॥ बहुमूत्रविनाशश्च शुक्रस्तंभं करोति च। यामिनीमान-भंगं च कामिनीमदभजनम् ॥३॥ टीका-शुद्ध अफोम, समुद्रशोष, छोटी इलायची, दालचीनी, तेजपात, ये तीनों बराबर तथा शुद्ध धतूरे के बीज और उसी के बराबर भांग के बीज लेकर धतूरा और भांग के स्वरस की भावना देकर चना के बराबर गोली बांधे। इस गोली को मिश्री के साथ देने से बहुमूत्र रोग शांत हो जाता है तथा वीर्य का स्तम्भ होता है और रात्रि का मानभंग और कामिनी के मद का नाश होता है। ३२--ग्रामदोषादौ उदयमार्तण्डरसः . हिंगुलं च चतुनिष्कं जैपालं च त्रिनिष्ककं । वत्सनाभं चैकनिष्कं त्रिकटु चैकनिष्ककं ॥१॥ हरीतकी चैकनिष्क निष्कमेरंडमूलकं। करंजबीजं निष्कं च नीलांजनमनःशिला ॥२॥ रसतुत्थं पिप्पली च वराटं शंखभस्मकं । कनकं निम्बबीजं च प्रत्येकं च निशाद्वयम् ॥३॥ सर्व च प्रतिानष्कं च दिनं खल्वे विमर्दयेत्। अजखीरेण संमिश्रश्वणमात्रवटीकृतम् ॥४॥ वटकं गुडमिश्रेण ऊषणेन समन्वितम् । सेव्यश्चोष्णकोलाले वामदोषविरेचकः ॥५॥ पंचगुल्महरः शूलहरो वातविशोधनः । रसोऽयं पूज्यपादोक्तः सर्वशीतज्वरापहः ॥६॥
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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