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जैन धर्म और विष्व अहिंसक समाज रचना -आचार्य डॉ. लोकेष मुनि
अहिंसा जैन धर्म का प्राण है और अन्य तत्त्व प्रकारान्तर से अहिंसा के विस्तार स्वरूप हैं प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के समय से ही यह विराट परम्परा चली आ रही है महावीर युग धार्मिक जगत में एक अदभुत क्रांति, तत्त्वचिंतन एवं दार्शनिक विचार बाहुल्य का था भारतवर्श में ही नहीं समस्त सभ्य संसार में ज्ञान जागृति एवं नवचेतना की लहर व्याप्त थी चीन में कन्फ्यूषियस और लाओत्से ईरान में जरथुस्त, यूनान में पैथगोरस, फिलीस्तीन में मुसा आदि अनेक प्रख्यात विचारक, दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक तत्कालीन सभ्य जगत के विभिन्न भागों में अपने-अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे। ये सभी समान रूप से मानव के महत्व और सदाचार पर बल दे रहे थे ये ही श्रमण संस्कृति की जन्मजात विषेशताएं थी श्रमण महावीर और महात्मा बुद्ध समकालीन थे। इन दोनों महापुरुषों ने अहिंसा का स्वयं और जन-जन के जीवन में व्यापक प्रयोग एवं प्रचार किया।
भी है साध्य चाहे कितना ही प्रधास्त क्यों न हो, यदि साधन युद्ध नहीं है तो अहिंसा, घाति एवं सह-अस्तित्व का अवतरण नहीं हो सकता। हिंसा के साधनों को अपनाते हुए हम अहिंसा की स्थापना करना चाहते हैं, षांति चाहते हैं, यह कैसे संभव होगा? आज देव और दुनिया में वस्त्रों की होड़ की तरफ सबका ध्यान है हिंसा के प्रषिक्षण की लम्बी-चौड़ी योजनाएं भी हर राष्ट्र में बनती है। लेकिन अहिंसा के प्रषिक्षण की कहीं कोई योजना बनी हो, ऐसा सुनने में नहीं आता जितना हिंसा के प्रषिक्षण पर खर्च हो रहा है, उसका छोटा-सा अब भी यदि अहिंसा के प्रषिक्षण पर खर्च हो तो अहिंसा की स्थापना में सहज ही सहयोग मिल जाएगा।
विषय के जन-जीवन में यदि महावीर की अहिंसक भावना एवं जीवनशैली प्रतिष्ठित हो जाती है तो अनेक बड़ी समस्याओं का समाधान संभव है अहिंसा एक ऐसे विराट वटवृक्ष के समान है, जिसमें सत्य, पील, दया, क्षमा, निरभिमानिता, परोपकार आदि की सद्भावनाएं पक्षियों की तरह घोंसला बनाकर निवास करती है और इन्हीं संस्कारों से दुनिया में आतंकवाद एवं युद्ध जैसी ज्वलंत समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। विश्व की सभ्यता और संस्कृति को अहिंसा की पिक्षा देने के कारण ही विष्वगुरु की पदवी की पात्रता भारत ने प्राप्त की है इसीलिये भारतवर्श 1 में अहिंसा को जीवन का मेरुदण्ड माना गया है। भारतीय जीवन दर्शन में जो मर्यादा एवं अनुषासन के संस्कार गहरे घर किए हुए है उसका कारण भी अहिंसक जीवन दृष्टि है।
आज समाज में अहिंसा की प्रतिश्ठा न होने के कारण अहिंसा के प्रति आस्था की कमी है इसी कारण समूची दुनिया हिंसा, युद्ध एवं आतंकवाद की त्रासदी को जीने के लिये विवश है। इसके कारणों को खोजेंगे तो एक बड़ा कारण साधन बुद्धि का अविवेक
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JAINA Convention
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अहिंसा की स्थापना के लिये विश्वास, निर्भयता एवं सौहार्द जरूरी है संपय से भरा हुआ आदमी प्रेम से खाली होता है पारस्परिक स्नेह, सद्भाव, सौहार्द और विश्वास के अभाव में उसका संदेहपील मन सदैव सुरक्षा के साधन जुटाने में संलग्न रहता है उसका मन कभी निर्भय नहीं होता, वृत्तियां धान्त नहीं होती संग्रह उसके सुख संतोश और जाति को सुरसा बन लील जाता है। आचार्य श्री तुलसी ने कहा, "परिग्रह के साथ लिप्सा का गठबंधन होता है। लिप्सा भय को जन्म देती है और भय निश्चित रूप से हिंसा और संघर्श का आमंत्रण है।
अस्तु । जब संग्रह का स्थान त्याग लेता है, पक्ति की अपेक्षा पांति लक्ष्य बनती है, तब अपरिग्रह, अभय और अहिंसा का पूरा वृत बनता है। भावी जीवन को सुदृढ़ और बुभ आधार मिलता है। और आज सम्पूर्ण विश्व में जैन धर्म ने अहिंसा के माध्यम से यह शुभ आधार दिया है।
अहिंसा विश्व भारती ने समाज में भगवान महावीर एवं जैन धर्म की शिक्षाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं प्रतिष्ठा से अहिंसा के विस्तार को सुदृढ धरातल दिया है।
Thrust formed the sport and motivation while Gandhi firmished the method Martin Luther King Jr. The Autobiography of Martin Riber Ring &
Jainism World of Non-Violence
जैन धर्म के सिद्धान्तों एवं शिक्षाओं का ही प्रभाव है कि अब समाज में अहिंसा के लिये सकारात्मक वातावरण निर्मित हो रहा है। पिछले दिनों अहिंसा विष्व भारती संस्था के तीव्र प्रयत्नों के कारण ही महाराष्ट्र सरकार ने प्रदेष में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसी तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर तथा मेरे मध्य कई बार हुए लम्बे संवाद के बाद हरियाण सरकार ने गी हत्या के खिलाफ राज्य में कड़ा कानून लागू किया है। राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी राज्य के विभिन्न जिलों में नये खुलने वाले अत्याधुनिक 26 कत्लखानों की अधिसूचना निरस्त कर दी। हिंसा के कारण बढ़ रही समस्याओं और जटिलताओं के व्यूह को कोई व्यक्ति तोड़ सकता है तो अहिंसा के सहारे ही तोड़ सकता है अपेक्षा है अहिंसा की ऊर्जा को पहचानने और प्राप्त करने की।
हिंसा एक वाष्यत समस्या है अतीत में इसका समाधान खोजा गया। वर्तमान में समाधान की खोज हो रही है भविश्य में भी समाधान की अपेक्षा रहेगी भगवान महावीर के दर्शन में अनेक वैष्विक समस्याओं का समाधान प्राप्त होता है अहिंसा विष्व भारती संस्था द्वारा भगवान महावीर के 2612 में जन्म कल्याण एक दिवस पर राष्ट्रपति भवन में आयोजित महावीर दर्शन द्वारा वैष्विक चुनौतियों का समाधान विषयक सेमिनार का उद्घाटन करते हुए भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि हिंसा, आतंकवाद, पर्यावरण प्रदुषण, ग्लोबल वार्मिंग जैसी अनेक ज्वलंत वैष्विक समस्याओं का समाधान महावीर दर्शन में मौजूद है मैत्री और अहिंसा का सहावस्थान है जहा अहिंसा, वहां मंत्री जहां मैत्री वहां अहिंसा अहिंसा के प्रकम्पनों से व्यक्ति को आनन्दानुभूति होती है, हिंसा के प्रकम्पनों से तीन काल में भी वैसी अनुभूति नहीं हो सकती।
सह-अस्तित्व अहिंसा का फलित है मनुश्य अपने अस्तित्व की मांति औरों के अस्तित्व को भी स्वीकार कर ले, विरोधी विचार रखने वाले व्यक्ति के अस्तित्व को भी मान्यता देने लगे तो उसके विचारों में हिंसा टिकेगी नहीं हिंसा वही टिकती है, जहां व्यक्ति सोचता है कि वह और में दोनों साथ-साथ नहीं रह सकते या वह रहेगा या मैं रहूंगा ऐसा आग्रह हिंसा के परिसर में ही पनप सकता है। इस आग्रह को तोड़ने के लिए हिंसा के उपादान को समाप्त करना होगा। हिंसा का उपादान बाहर नहीं मनुष्य के दिमाग के भीतर है।
हिंसा, युद्ध और आतंकवाद जैसी स्थितियां असंतुलित व्यक्ति के दिमाग से उत्पन्न होती है यह हमारे मानसिक असंतुलन का ही एक कारण है कि बात चले विष्व पांति की और कार्य हो अषांति के तो षांति कैसे संभव हो? गांधीजी ने सत्य और अहिंसा' जैसे घब्दों को लेकर एक आधुनिकतम अस्त्र सत्याग्रह' का आविश्कार कर दिखाया। आज सम्पूर्ण दुनिया में अहिंसक समाज निर्माण हेतु ऐसे ही आविष्कार की दृष्टि के लिए दुनिया जैन धर्म की ओर टकटकी लगाये हुए है एक प्रश्न यह भी है कि मनुश्य कितना भी युद्ध करे अंततः उसे समझौते की टेबल पर आना ही होता है तो फिर पहले से ही समझौते की टेबल पर क्यों नहीं आ जाता ?
आधुनिक युग की सभी समस्याओं का समाधान है अहिंसा आज भी 90 प्रतिषत आदमी षांति सह अस्तित्व एवं सहयोग के साथ रहते हैं, वे हिंसा नहीं चाहते सिर्फ 2 प्रतिषत आदमी हिंसा में सम्मिलित हैं। इन दो प्रतिषत लोगों को उकसाने के लिए कितने शडयंत्र रचे जाते हैं, हिंसा का प्रषिक्षण दिया जाता है, षस्त्रों की बिक्री के लिए हिंसा के बीज बोए जाते हैं।
f you are not vegan, please consider going vegan. It's a matter of nemolence Beng vegan is your statement that you reject violence to other sentient beings to yourself and to the environment, on which all sentient beings depend."" - Sury & francon
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