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AINA CONVENTION 2011
"Live and Help Live"
वह समन्वय की चेतना को जागृत नहीं कर सकता । प्रत्येक पदार्थ अपने प्रतिपक्ष से जुड़ा है । विरोधी स्वार्थ का भी समीकरण करना होता है।
प्रवृत्तियाँ, विरोधी प्रचार हैं । प्रत्येक व्यक्ति का सोच
है - वह सही है, वह चाहता जैसे वह बोले, चले, सब एक घटना द्रष्टव्य है । उदाहरण है । एक कुम्हार
वैसे ही सोचें, बोलें, चलें । परंत ऐसा होता नहीं है । (Pot Maker) के दो बेटियाँ थीं । एक का विवाह
परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ होती, विचार होते, विरोधी किसान परिवार में हुआ । दूसरी बेटी का विवाह
स्वभाव, आदतें होती, परिणाम संघर्ष, टक्कर, लडाइयाँ कुम्हार परिवार में हुआ । एक दिन पिता अपनी
होती हैं । पुत्रीयों की कुशलक्षेम जानने उनके पास गया । पहले बडी पुत्री जो किसान के घर ब्याही थी, उसके घर छोटे छोटे कारणों से संसार में महायुद्ध (World War) गया । लड़की ने पिता से चिंतित स्वर में कहा - हुए हैं । थोडी सी ज़मीन, सुंदर स्त्री, तिरस्कारयुक्त “देखिये पिताजी, बडी मुसीबत है । खेत बो दिये गये वचन मात्र के कारण घोर नरसंहार हुआ । विरोध सह हैं – परंतु बरसात के आसार ही दिखाई नहीं दे रहे | ना सके | क्या ऐसा मार्ग भी है जिससे हम विरोधों यदि समय पर वर्षा न हुई तो बीज भी नष्ट हो के बीच रहते हुए अभेद का जीवन जी सकें ? जायेंगे | आप कृपया मेरे लिए प्रार्थना करें कि वर्षा अनेकांत के सिद्धांत ने इस प्रश्न का उत्तर देने की हो ।”
खोज की - और वह मार्ग है – सहअस्तित्व का ।
पिता दूसरी बेटी के घर गया । कुशलक्षेम के बाद आज राजनीति के क्षेत्र में सहअस्तित्व पर बहुत बल लड़की ने अपनी चिंता प्रकट की - "पिताजी, आज ही दिया गया है । को-एक्झीस्टन्स का सिद्धांत महत्त्वपर्ण मैंने कच्चे बर्तनों को पकाने के लिए आंवा )मिट्टी के माना जाता है । राजनीति के मंच से घोषणा की गई बर्तनों को पक्का करने की भट्टी) सुलगाया है, और कि सबको सहअस्तित्व के सिद्धांत को महत्व देते हुए काले बादल छा गये | यदि बरसा ॥ मेरा बड़ा व्यवहार करना चाहिए | सब साथ-साथ रह सकते हैं नुकसान होगा । पिताजी, आप मेरे लिए प्रार्थना । राष्ट्र संघ जैसे संगठनों में समाजवादी संगठन का कीजिए ।” अब पिताजी क्या करें ? किसके कल्याण प्रतिनिधित्व होता है, तो पूंजीवादी संगठन का भी की कामना करें ?
प्रतिनिधित्व होता है । सह अस्तित्व की घोषणा
राजनैतिक क्षेत्र में नई है, किन्तु प्राकृतिक नियमों के बहुत सोच विचार कर पिताजी ने अपनी बड़ी बेटी से
आधार पर यह अति प्राचीन सिद्धांत है । जो किसान के घर ब्याही थी कहा – “वर्षा हो जाए अच्छी फसल हो गयी तो आधी छोटी बहन को दे प्राणी जगत में मात्र मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो देना ।” उसने मान लिया । तब छोटी बेटी जो समाज बनाकर रहता है | जानवर समूह में रहते कुम्हार के घर ब्याही गई थी से कहा – “ यदि आंवा किन्तु नियमों से अनुशासित समाज में नहीं रहते, न ठीक से पक जाए (अर्थात् पानी ना आए और भट्टी ही आपस में रिश्ते बनाते हैं | सहयोग की भावना ठीक से बर्तन पका दे) तो आधा लाभ अपनी बड़ी समाज का प्राण है । दसरों की मदद करना ही स्वयं बहन को दे देना ।” उसने स्वीकार कर लिया | यह के लिए मदद प्राप्त करने का मार्ग है समीकरण होने पर दोनों बहनें प्रसन्न हो गई । ऐसा कोई आदमी नहीं जिसे कभी दूसरों की ज़रूरत
ही न पड़े | यह परस्पर सापेक्षता ही “परस्परोपग्रहो जीवनाम्” कथन की सार्थकता सिद्ध करती है ।
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