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JAINA CONVENTION 2011
"Live and Help Live"
समाज का आधार : सहयोग का व्यवहार
डो. मदनकुमारी पोकेर्णा
Dr. Mrs. Madan Devi Pokerna of Hydrabad, India, was lecturer in Hindi. She was editor of two periodicals and has written books and translations. She has received numerous appreciation certificates (>30) for her contribution as writer, editor and social worker and as active member in many religious and social institutions. Her article discusses jain principles "Parasparopagraha Jivanam" that in nature each life helps live (support) the other and “Anekant"or multiplicity of views which fosters coexistence there by reducing violent and aggressive practices. This will lead to secure existence and the development of mankind.
शास्त्रीयों ने घोषणा की कि जीवन के लिए संघर्ष “परस्परोपग्रहो जीवनाम्” जैन धर्म का महत्वपूर्ण सूत्र
अनिवार्य है । विरोधी युगल (जोडी) साथ रह सकते - है । अर्थात् एक दूसरे का सहारा – यह प्रकृति का, जीव का, सृष्टि का अटल नियम है । संसारी अवस्था
इस नियम के आँखों से ओझल होते ही, मनुष्य भटक
गया । के जीव का उपयोग शुभ और अशुभ कर्मों पर केन्द्रित होता है | संसार में परस्पर उपग्रह के कई जब आदमी समन्वय की चेतना से समाधान खोजता माध्यम संभव हैं | जैसे - अपने अधिकार की है, तो कठिन कार्य भी सरल बन जाता है । कोई भी दसरों को देना, विचारों का आदान प्रदान करना, समस्या हो, समाधान हो सकता है । हम अपने हाथ विषादपर्ण मन:स्थिति में सांत्वना देना, हित कार्यों में को ही देखें । चार उंगलियों के विरुद्ध अंगूठा है । प्रवृत्ति का उपदेश आदि सभी उपग्रह मनुष्य द्वारा दोनों आमने - सामने विरुद्ध दिशा में हैं । संपूर्ण संपादित हैं ।
मानवजाति का विकास इसी विरोध के आधार पर ही प्रकृति की ओर नज़र डालें तो जल, वनस्पति जैसे हुआ है । कल्पना करें - अंगूठा और उंगलियाँ एक एकेन्द्रिय जीव से लेकर पशुपक्षी आदि पंचोन्द्रिय जीव
% कतार में ही होती ? मनुष्य जाति का विकास होता ?
___ अंगूठा - उंगलियों के विरुद्ध दिशा में रहने के कारण भी ‘परस्परोपग्रह' सिद्धान्त को फलीभूत करते हैं ।
ही लिपि, चित्रकारिता, शिल्प आदि कलाओं का पशु-पक्षी वृक्ष के फल-फूल, पत्ते बीज खाकर उदरपूर्ति करते तो मल के माध्यम से अन्यत्र बीज त्यागकर
विकास हुआ | इन में भिन्नता है, पर हम समन्वय वृक्ष संतति प्रसार का अवसर प्रदान करते हैं ।
करना जानते हैं, अत: कोई टकराव नहीं होता | दोनों पंचेन्द्रिय प्राणी कार्बन डाईआक्साईड का निष्कासन ।
परस्पर मिलकर सामंजस्य स्थापित करते ही हैं । कर पेड पौधों को जीवन प्रदान करते हैं तो पेड पौधे प्रश्न उठता है समन्वय की चेतना का विकास कैसे हो आक्सीजन छोडकर प्राणियों के जीवित रहने में ? क्योंकि जो अपने स्वार्थ, मान्यता और असहिष्णुता सहयोग करते हैं ।
- इन तीन वृत्तियों पर शासन करता है, उसमें
समन्वय का विकास होता है । जिस व्यक्ति में एक दूसरे के सहारे को लेकर कोई विरोध नहीं
अपनी मान्यता के प्रति आग्रह है, स्वार्थ की प्रबलता उपजा, विरोध इसलिये उपजा कि सह अस्तित्व के नियम को भूला दिया गया । समाज
है और जो असहिष्णु (सहन न करनेवाला व्यक्ति) है,
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