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________________ JAINA CONVENTION 2011 अहिंसा और संयम ही जीवन है साध्वी कनकश्री जन्म - लाडनुं (राजस्थान) अक्टूबर 1939 दीक्षा सरदारशहर, अक्टूबर 1956 अग्रगन्या - बिदासर, जनवरी 1961 सेवा निकाय व्यवस्थापिका गंगाशहर, जनवरी 1972 दीक्षा युगप्रधान पूज्य गुरुदेव तुलसी के कर कमलों द्वारा आगम, न्याय, दर्शन, साहित्य, योग, मॅनोविज्ञान अनेक प्राच्य अर्वाचीन विद्या - शाखाओं का तलस्पर्शी अध्यययन, आगम साहित्य का हिन्दी अनुवाद, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान आदि शिविरों का प्रशिक्षण संचालन. तेरापंथ धर्म संघ की सर्वोत्तम बहू श्रुत परिषद की सदस्य साहित्यिक कृतियाँ जोत जले बिन बाती, नई सदी: नई संभावनाएं, स्वागत करें उजालों का, जैन धर्म : जीवन और जगत, अनुशीलन ( शोध निबंध) नादमणि आदि. जैन समाज अहिंसा और शांति प्रिय समाज है / प्रारंभ से ही उसे साधर्मिक वात्सल्य के संस्कार मिले हैं/जीवन मूल्यों पर आधारित जीना यही वर्तमान युग की अपेक्षा है/जैन द्रष्टि स्पष्ट और सकारात्मक है/सभी सुखी हो, कल्याण हो, इसीसे स्वस्थ समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है / इसके लिए व्यक्तिगत और सामुहिक प्रयत्न अपेक्षित है भगवान महावीर ने कहा - स्वस्थ आचार्य श्री तुलसी ने कहा - * सबका हिंसा मृत्यु है, नारक है, दुःख है। संयम ही जीवन है, असंयम मृत्यु है। जैन समाज का एक घोश विशेष प्रचलित है जीओ और जीने दो । प्रश्न है, इसकी क्रियान्विति में व्यक्ति कैसे सहयोगी बन सकता है। अस्तित्व और अहिंसा : जड़ और चेतन के संयोग और सह अस्तित्व का नाम है सृष्टि। इस दुनिया में न केवल ज़ड "Live and Help Live" - तत्व का साम्राज्य है और न केवल प्राणी जगत का अस्तित्व। अपितु दोनों की सह स्थिति है। ज़ड औएर चेतन के बीच भेद रेखा खिंचनेवाला गुण है जिजिविषा जीने की इच्छा। यह छोटे-बड़े विकसित अविकसित सभी प्राणीयों में समान रूप से पाई जाती है। महावीर ने कहा - सव्वे जीवावि इच्छंति, जीविडं न मरिज्जिउं । तम्हा पाणवहं घोरं णिग्गंथा वज्जयंतिणं ॥ सब जीव जीना चाहते हैं। मरना कोई नहीं चाहता। इसलिये निर्ग्रथ घोर प्राणवध का वर्जन करते हैं। महावीर की धर्म मिमांसा का सार है संसार में कोई भी प्राणी हन्तव्य नहीं है। पर अहिंसा धर्म ही ध्रुव, नित्य और शाश्वत धर्म है। 137 अहिंसा का दूसरा द्रष्टिकोण है- प्रत्येक प्राणी सुखाभिलाषी है, दुःख की इच्छा कोई नहीं करता इसलिये किसीके सुख में बाधक मत बनो। किसी को दुःखी मत बनाओ। सुखी जीवन जीना यह प्राणी मात्र का मौलिक अधिकार है। किसी को मारना और दुःखी करना यह उस अधिकार का हनन है।
SR No.527533
Book TitleJAINA Convention 2011 07 Houston TX
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFederation of JAINA
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year2011
Total Pages238
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, USA_Convention JAINA, & USA
File Size26 MB
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