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15th Biennial JAINA Convention 2009
Ecology - The Jain Way
अपनी जान प्यारी होती है | अंतः दूसरे जीवों की जान लेने का या उसे शारीरिक या मानसिक दुःख पहुचाने का किसी को भी अधिकार नहीं | यही है भ. महावीर का अर्थात जैन दर्शनके अहिंसा तत्वका संदेश | इसिलिए जैन दर्शन का कहना है, “जीवन के लिए आवश्यक उतनेही पानी का उपयोग किया जाय | जहाँ एक बालटी पानी से काम चल जाता हो वहाँ शॉवर के नीचे बैठ कर कई बालटिया पानी बरबाद करना महान हिंसा है।
पानी का अतिरेक उपयोग करने से बहुत सारा पानी नाली से बह जाता है, जिससे नाली में अनेक जीवोंकी उत्त्पत्ति होती है और मानवों की अनावधानी के कारण कई जीवोंकी हिंसा भी होती है | अनेक स्थानों पर खुली नालियोंसे पानी इधर उधर फैल जाता है, उसमें सडन पैदा होती है और पर्यावरण दूषित हो जाता है।
वर्तमान कालीन वैज्ञानिक यूगमें अनेक प्रकार के कारखाने खुल गये हैं। इन कारखानों में बननेवाली वस्तुओं का मानवी जीवन को अवश्यही लाभ हुआ है | परंतु इन कारखानों की चिमनियोंसें निकलनेवाली विषारी गॅस से वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है और कारखाने का अतिरिक्त गंदा पानी आजूबाजू जलाशयों और नदियों के पानी को दूषित जहरीला बना देता है | ऐसा पानी चारों और गंदगी एवम बदबू फैला कर पर्यावरणमें प्रदूषण पैदा करता है | इसी लिय जैन दर्शनने पानी का उपयोग करते समय ध्यान पूर्वक सावथानी बरतनेको कहा है |
वायु या हवा यह पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण प्रमुख तत्त्व है | संसार के सभी जीवों को जीने के लिए हवा की नितांत आवश्यकता है | स्वासोच्छवासकी किया ही जीवके जिंदापन की निशानी है |
पर्यावरण में अनेक प्रकार के वायु रहते है, उनमें से जीवनके लिए उपयुक्त वायु है ऑक्सीजन जिसे प्राणवायु भी कहा जाता है | संसार के सभी जीव प्राणवायु को ग्रहण करते है और उच्छवास के द्वारा कार्बन-डाय-ऑक्साईड जैसी दूषित वायु को बाहर छोड देते है | अब आप अंदाज करिए कि संसार के अंनत जीवों द्वारा पर्यावरण में जीवों के लिए आवश्यक ऑक्सीजन अर्थात प्राणवायु आती कहाँ से है?
जैन दर्शन सदियों से कहता आय है कि पृथ्वी पर उगने वाली लता-वेली-पेड -हरियाली आदि वनस्पतियाँ सजीव हैं और वे भी जीवों की तरह स्वासोच्छवास की किया करती है | वैज्ञानिक संशोथन से भी यह सिद्ध हो चुका है | निसर्ग भी एक बडा जादुगार है जिसने वनस्पतियों की श्वास की क्रिया में एक अजीब जादु भर दी है। सूर्य प्रकाश में अर्थात दिन के समय में सभी छोटी -बडी वनस्पतियाँ जीवों के लिय उपयुक्त ऑक्सीजन वायु छोडती रहती हैं और पर्यावरण में फैली दूषित वायु स्वयं ग्रहण करती है | कितने महान उपकार है वनस्पतियों के जीवों पर !
वनस्पतियों की उपयुक्तता के बारेमें जैन दर्शन ने अपने अनुयायियों को ही नही पूरे संसार को हिदायत दे रखी है कि विनाकारण वनस्पतियों को नष्ट न करो,
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