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________________ तपस्थली बनाया है। दुर्गम होने से मानव-जनित मानसिक, शारीरिक और भौतिक प्रदूषणों के आघातों (अटेक्स) से तपस्थान को बचाने के पूरे प्रयास संतों ने किए थे ताकि यहाँ तक पहुँचने वाला व्यक्ति सात्विक ऊर्जा का पूरा लाभ पा सकें। उन्हें यह अच्छी तरह से ज्ञात था कि दुनियादारी में फंसे लोगों के वाइब्रेशन्स यहाॅ के वातावरण को डिसटार्ट और डिस्टर्ब करेंगे। यही कारण है कि पवित्र नदी के किनारे, ऊँची पहाड़ी पर श्रीशत्रुंजयतीर्थ में लाखों लोगों ने निर्वाण प्राप्त कर इसे शाश्वत तीर्थ बना दिया। श्रीसम्मेदशिखरजी एवं श्रीगिरनारजी जैसे महातीर्थ में भी प्रकृति का सम्यक - गीत मोक्षदायिनी आनन्द - लहरी के साथ गुंजता है । तीर्थो के प्रति हमारा व्यवहार वैश्य होने के नाते हमें अपनी विरासत को बढ़ाना था। बढ़ा नहीं सकते थे तो बनाए रखना था। परन्तु हमने तीथों में प्राकृतिक रूप से प्रवाहित हो रही आध्यात्मिक ऊर्जा की रक्षा के नाम पर उसके चारों तरफ भौतिक शक्ति (मनी पावर) का प्रदर्शन करते हुए कांक्रीट की नकारात्मक (निगेटिव) ऊर्जा की काल कोठरियां खड़ी कर दी। अटेच्ड बॉथ, सिवेज, भोजनशालाओं वाली धमशालाओं की सघनता ने Jain Education International 2010_03 तीर्थ के आसपास सांसारिकता का ऐसा सधन जाल बिछा डाला है कि वहाँ की "तारने वाली ऊर्जा" सिमटने लगी है। सुविधा की आड़ में धर्म के नाम पर बनाई जा रही धर्मशालाएं तीर्थ की पवित्रता को बनाए रख सकती है यह सोचना ही गलत है। आगे आएं तीर्थो को बचाएं यदि हम वास्तव में तीर्थंकरों और तपस्वियों के द्वारा विरासत में दी गई सात्विक ऊर्जा की सम्पदा को बचाना चाहतें हैं तो तत्काल सभी तरह के निर्माण कार्यों पर रोक लगाना होगी। लोहे और सीमेंट के निर्माण सात्विक ऊर्जा को पूरी तरह विस्थापित कर दें इसके पहले ही हमें जागना होगा। तुलसी, पीपल, आम, बरगद, नीम जैसे पाजीटिव औरा वाले, काफी मात्रां में ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों का सधन जंगल निर्मित करना होगा। नदियों, तालाबों और कुओं की नियमित सफाई करवा कर प्रकृति की सम्यक लय को वापस लाना होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया तो जैन तीर्थ भी पिकनिक स्पॉट बन कर रह जायेंगें। प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा ने लिखा था कि "आज तीर्थस्थल मात्र पिकनिक स्पॉट बनकर रह गए हैं और लोग वहॉ हनीमून मनाने जाते हैं। " 145 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527526
Book TitleJAINA Convention 2003 07 Cincinnati OH
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFederation of JAINA
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, USA_Convention JAINA, & USA
File Size7 MB
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