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________________ तीर्थों की वैज्ञानिकता जिज्ञास वैज्ञानिकों ने तीर्थ के मर्म को समझने के लिए काफी लम्बा सफर तय किया है। निम्नांकित वैज्ञानिक अनुसंधानों और कथनों से इसे समझा जा सकता है। फ्रांस की स्ट्रासवर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. फ्रेड ब्लेज ने अपनी पुस्तक "द बायोलॉजिकल कंडीशंस क्रिएटेड बाय द इलेक्ट्रिकल प्रापर्टीज ऑफ द एटमॉस्फिचर" में 75 हजार अरब कोशिकाओं (सेल्स) से बने मानव-शरीर में मौजूद विद्युत के आधार पर इसे चलता-फिरता बिजलीघर बताया है । येल विश्वविद्यालय के शरीर विज्ञानी डॉ. हेराल्ड बर्ट ने मानव-शरीर में मौजूद विद्युत को “लाइफ फील्ड" नाम दिया है। भारतीय शास्त्रों ने इसे प्राणमय-कोष कहा है। जर्मन विद्युत विज्ञानी रीकेन बेक ने इसे औरा नाम दिया। लंदन के सेंट थामस अस्पताल के फिजीशियन डॉ. वाल्टर जान किलनर ने जर्मन वैज्ञानिक बैरन कार्लवान की आभामण्डल (औरा) पर लिखी पुस्तक पढ़कर रोगियों के औरा पढ़ने का अभ्यास किया। औरा को देखकर उन्होंने हजारों रोगियों का सफलतापूर्वक उपचार किया । सन् 1869 में उन्होंने औरा पर "द ह्यूमन एटमॉस्फियर" नामक पुस्तक भी लिखी। रूसी वैज्ञानिक एम.डी. किरलियन ने सजीव तथा निर्जीव वस्तुओं के औरा की फोटोग्राफी कर विज्ञान-जगत में धूम मचा दी। औरा सायकिएट्री इंस्टीट्यूट की चेयरपरसन डॉ. थैल्मामौस ने "ऑर्गान फोटोग्राफी " का आविष्कार कर पाया कि जीवित वस्तुओं का औरा बड़ा और निर्जीव तथा मृत वस्तुओं का औरा पतला, मंद और सूक्ष्म होता है। ___ चेन्नई के न्यूरोसर्जरी के डॉ. पी. नरेन्द्रन ने प्राण-प्रतिष्ठा और महाभिषेक के पूर्व एवं पश्चात मूर्तियों के औरा की फोटोग्राफी में पाया कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद पत्थर की मूर्तियों का औरा काफी विकसित हुआ है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक मारकोनी ने कहा था कि ऊर्जा रूपान्तरित भले ही हो जाए परन्तु कभी नष्ट नहीं होती है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह कहना पूरी तरह वैज्ञानिक है कि दिव्य पुरूष या संत के एक लम्बे समय तक किसी स्थान विशेष पर रहने या साधना करने के परिणामस्वरूप वहाँ के वातावरण में प्रचण्ड (पॉवरफूल) ___सात्विक प्राण ऊर्जा का स्थायी प्रवाह (परमानेंट फ्लो) बना रहता है जो उस संत के निर्वाण के पश्चात् भी बना रहता है। ऊर्जा का यह प्रवाह वहाँ आने वाले व्यक्ति को निश्चित रूप से सकारात्मक रूप (पाजीटिव वे) से प्रभावित करता है। ऐसे पवित्र (पायस) स्थान तीर्थ कहलाते हैं । और यही तीर्थ की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है। तीर्थ स्थान की तरह ही महापुरूषों द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं में भी जैव-ऊर्जा (लाइफ-इनर्जी) लम्बे समय तक बनी रहती है। श्रीलंका में भगवान गौतम बुद्ध का दांत, हजरतबल में पैगम्बर मोहम्मदसाहब का बाल और इंग्लैण्ड के एक गिरजाघर में रखा ईसामसीह का कफन आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा और श्रद्धा के केन्द्र हैं। इसी तरह महापुरूषों द्वारा भेंट दी गई वस्तुएं भी श्रद्धालुओं को काफी लाभ पहुँचाती हैं और वे उसे संभालकर रखते हैं। महान संतों ने साधना-स्थल कैसे चुनें संतों ने अपने साधना क्षेत्र पूरी वैज्ञानिकता से चुनें। संतों ने ऐसे स्थानों में तपस्या की है जहाँ प्राकृतिक सम्पदा अपने सम्यक रूप में मौजूद थी और उसे असंतुलित करने वाले तत्व दूर-दूर तक नहीं थे। इसीलिए अधिकांश तीर्थ रहवासी स्थानों से दूर तथा दुर्गम जगहों पर रहे हैं। नदी का किनारा, ऊँचे पहाड़ या निर्जन वनों को संतों ने अपनी 144 Jain Education Interational 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527526
Book TitleJAINA Convention 2003 07 Cincinnati OH
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFederation of JAINA
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, USA_Convention JAINA, & USA
File Size7 MB
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