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________________ अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 अपेक्षाकृत देवभाषा भी है। कभी भी नष्ट नहीं होने वाली एवं अविनाशी अमरभाषा है। जैसे- बर्मा, नेपाल, ढाका, उत्तर भारत, बंगाल, बिहार, मध्य भारत, पश्चिम भारत, पाकिस्तान, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, यूरोपियन के निकटवर्ती भागों में प्रचलित जनबोली और साहित्यिक- प्रौढ़ भाषाएँ उत्तरकाल की प्राकतभाषा ही थे। उदाहरणार्थ- जिस प्रकार आज कन्नड भाषा प्राचीन रूप में न होकर नवीन कन्नड़ भाषा के रूप में अस्तित्व में है, उसी प्रकार पश्चिम एशिया से लेकर बर्मा तक के देशों में बोलचाल के रूप में प्रचलित भाषाएँ अर्वाचीन प्राकृत ही हैं। अतएव प्राकृत भाषा शाश्वत एवं अमर है तथा नवीन रूपों में नव-नवीन रूपों में परिवर्तित होकर सर्वदा अस्तित्व में रहती है। प्राकृत भाषा-जनबोली उस- उसकाल में जिनभाषा अर्थात् तीर्थकरों की भाषा के रूप में धार्मिकता में भी प्रवेश किया। अतएव यह प्राकृतभाषा कदाचित् देवभाषा का रूप को भी प्राप्त किया। उदाहरणार्थ- भगवान् आदिनाथादि महावीरपर्यंत सभी तीर्थकर तथा गौतमबुद्ध ने भी धर्म के मर्म को समझाने वाला दिव्यस्वरूप इस महामानव की भाषा के रूप में देवभाषा का महत्त्व प्राप्त किया था। अनन्तरकाल में वही (मौर्यादि राजाओं के काल में) राष्ट्रभाषा के स्थान को भी प्राप्त करके उत्तरोत्तर धार्मिक साहित्य एवं मनोरंजन हेतु नाटक-सट्टक, काव्य, कोश, अलंकार, कला, पुराण आदि लौकिक साहित्यिक भाषा के रूप में प्रयोग किया गया। तत्पश्चात् अपभ्रंश के रूप को प्राप्त कर धार्मिक और लौकिक दोनों साहित्य में प्रयोग किया गया। यह अपभ्रंश भाषा भी आधुनिक भारत की विविध क्षेत्रीय भाषा बनी। इस प्रकार विस्तृत होने पर भी इस प्राकृतभाषा को मात्र भारत तक ही सीमित करना बड़ा प्रमाद होगा, क्योंकि यह प्राकृत भाषा भारत में अस्तित्व में रहने पर भी पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, चीनादि देशों में विस्तृत प्रयोग में थी, जिसका निदर्शन के रूप में उपरोक्त उल्लेख ही सूचक है। आज भी वह परिवर्तित बोलचाल में प्रचलित है। इस प्रकार प्राकृत भाषा का सूक्ष्मता से अध्ययन करने से यह सिद्ध होता है कि प्राकृत भाषा की व्यापकता के विषय में कोई भी संदेह उद्भव ही नहीं होता है। यह भाषा वषों पूर्व सामान्य लोगों के बोलचाल की भाषा थी। उसी को परिमार्जित कर
SR No.527331
Book TitleAnekant 2016 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size230 KB
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