SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 14 अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 में लोग इसी नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग किये हैं। उपरोक्त विवरणों को ध्यान में रखते हुए इस प्रकार उपरोक्त सभी देश-राज्य अर्थात् मगधदेश से लेकर आज का इसरेल (इस्रेल) देश तक के विशाल भूप्रदेश में जैनधर्म या जिनधर्म व्याप्त था। यहाँ के लोगों का आराध्यदेव वृषभ या ऋषभ ही है। उसी आराध्यदेव को अर्हन्, अरहन्, अरह, अल्लाह, एहोव, जहोव, इसुभ, इसुफ, यासुफ, यासुभ, ईसस्, जीसस् आदि अनेक नामों से पुकारते हैं । यहाँ के सभी लोग इतिहास के पूर्व काल में जैन अर्थात् ऋषभदेव के अनुयायी थे, जिसका प्रमाण निम्नानुसार हैजैनव्यापारी लोग संबारपदार्थों को जहाज के द्वार भारतदेश से पारसकुल अर्थात् पर्सिया और अन्य देश ले जाकर बेचकर मोती, रत्न, सोना आदि बहुमूल्य पदार्थ खरीद का लाया करते थे । इसका विवरण प्रचुर प्रमाण में प्राकृत साहित्य में उपलब्ध होता है । पारसकुल अर्थात् पार्श्वनाथ तीर्थंकर के कुल वाले आज वही पारसकुल वालों को पर्सिया नाम से जाना जाता है। वर्तमान में इरान् (अर्हन्- एरान्) के नाम से ही प्रचलित है। इस्लाम धर्म का पवित्र क्षेत्र है मेक्का । मेक्का शब्द मोक्ष शब्द का परिवर्तित प्राकृतभाषा का ही रूप है। मोक्ष जैनधर्म के सात तत्त्वों में से सातवाँ-अन्तिम तत्त्व है । इस्लामधर्म के ग्रन्थों में यह कहा गया है कि प्राचीनकाल में मेक्का के अन्दर प्रवेश करने वाले लोग नग्न- दिगम्बर के रूप में रहा करते थे तथा उस क्षेत्र को नमाज अर्थात् नमस्कार किया करते थे। इससे यह प्रतीत होता है कि प्रायः इस्लामधर्मी मेक्का को ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ आदि तीर्थंकर का मुक्तिस्थान मानते होंगे, जिसके कारण वे आज भी मेक्का की यात्रा करते हैं। इसी प्रकार ईसाई (क्रैस्त) धर्मावलम्बियों में भी सम्पूर्ण शाश्वत सुख हेतु यह उपदेश था कि सभी पदार्थों का परित्याग कर दिगम्बरत्व प्राप्त कर लेना चाहिये। क्रैस्तधर्म में प्रतिदिन सायंकाल पापपरिहार्थ की जाने वाली प्रार्थना-प्रैयर् करने का रिवाज था, जो जैनधर्म में प्रचलित प्रतिक्रमण - पापों की आलोचना-निन्दा एवं प्रायश्चितरूप भावना है। इस्लामधर्म में प्रातः आदि सन्ध्याकाल में भी किया जाने वाला नमाज जैनधर्म में श्रावक और साधुजन द्वारा किया जाने वाला सामायिक नामक आवश्यक कर्तव्य का ही
SR No.527331
Book TitleAnekant 2016 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size230 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy