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________________ किरण ३] . मौजमाबादके जैन शास्व भण्डारमें उल्लेखनीय ग्रन्थ [८१ परिस्थितियोंका विचार कर जगतकी इस वेदनाको और आध्यात्मिक है उसकी साधनामें जीवनका अन्तस्तत्व उनके अपरिमित दुःखोंसे छुटकारा दिलानेके लिए अहिंसा- सन्निहित है, जब कि राजनीतिकी अहिंसाका प्राध्यारिमका उपदेश दिया, इतना ही नहीं किन्तु स्वयं उसे जीवन में कतासे कोई खास सम्बन्ध नहीं है फिर भी वह नैतिकतासे उतार कर-अहिंसक बन कर और अहिंसाकी पूर्ण दूर नहीं है। प्रतिष्ठा प्राप्त कर बोकमें अहिंसाका वह आदर्श हमारे हिसाकी पूर्ण प्रतिष्ठासे जब जाति विरोधी जीबोंसामने रक्खा है। भगवान महावीरकी इस देनका भारत- का--सिंह बकरी, चूहा बिल्ली नकुल सर्प आदिका-बैरकी तत्कालीन संस्कृतियों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि विरोध शान्त हो जाता है तब मानव मानवके विरोधका वे भहिंसा धर्मको अपनाने ही नहीं लगी प्रत्युत उसको अन्त हो जाना कोई आश्चर्य नहीं है। इसीसे धर्मके उन्होंने अपने-अपने धर्मका अंग भी बनानेका यत्न किया विविध संस्थापकोंने अहिंसाको अपनाया है और अपनेहैं। भगवान महावीरने अहिंसाके साथ अपरिग्रहवाद, अपने धर्मग्रन्थों में उसके स्थूल स्वरूपकी चर्चा कर उसकी कर्मवाद और साम्यवादका भी अनुपम पाठ पढ़ाया था। महत्ताको स्वीकार किया है। प्रस्तु, यदि हम विश्वमें उनके ये चारों ही सिद्धान्त प्रत्येक मानवके लिए कसौटी शान्तिसे रहना चाहते हैं तो हमारा परम कर्तव्य है कि है। उन पर चलने से जीवमात्रको अपार दुःखोंकी हम अशान्तिके कारणोंका परित्याग करें-अपनी परतन्त्रतासे मुक्ति मिल जाती है, और वह सच्ची सुख- इच्छाओंका नियन्त्रण करें, अपरिग्रह और साम्यवादका शान्तिका अनुभव कर सकता है। पाश्रय लें, अर्थसंग्रह, साम्राज्यवादको लिप्सा और अपनी महात्मा बुद्धने भी उसीका अनुसरण किया, परन्तु यश प्रतिष्ठादिके मोहका संवरण करते हुए अपने विचारोंवे उसके सूचम रूपको नहीं अपना सके । उनके शासनमें मरे हुए जीवका मांस खाना वर्जित नहीं है । महात्मा को समुदार बनावें, और अहिंसाके दृष्टिकोणको पूर्णतया गांधीने महावीरकी अहिंसा और सत्यका शक्त्यनुसार पालन करते हुए ऐसा कोई भी व्यवहार न करें जिससे पांशिक रूपमें अनुसरण कर लोकमें अहिंसाकी महत्ताको दूसरों को कष्ट पहुँचे। तभी हम युद्धकी विभीषिकासे चमकानेका प्रयत्न किया और लोकमें महात्मा पन बच सकते हैं। उस अशान्तिसे एकमात्र अहिंसा ही भी प्राप्त किया, उन्होंने अपने जीवनमें राजनीतिमें भी हमारा उद्धार कर सकती है। और हमें सुखी तथा समृद्ध अहिंसाका सफल प्रयोग कर दिखाया । महावीरकी अहिंसा बनाने में समर्थ है। मौजमाबादके जैन शास्त्रभंडारमें उल्लेखनीय ग्रन्थ श्रीकुमारभ्रमण तुल्लक सिद्धिसागरजीका चतुर्मास मन्दिरमें स्थित शास्त्रभण्डारको अवश्य देखते हैं और इस वर्ष मौजमाबाद (जयपुर) में हो रहा है। प्रापने प्राप्त हुए कुछ खास अन्धोंका नोट कर उनका संक्षिप्त मेरी प्रेरणाको पाकर वहांके ग्रन्थभण्डारमें स्थित कुछ परिचय भी कभी-कमी पत्रोंमें प्रकट कर देते हैं। अप्रकाशित महत्वपूर्ण ग्रन्थों की सूची भेजी है जिसे पाठकों- माज समाज में मुनि, चुक्खाक ब्रह्मचारी और अनेक की जानकारीके लिये प्रकाशित की जा रही हैं। इस सूची त्यागीगण मौजूद हैं। यदि वे अपनी रुचिको जैनसाहित्यपरसे स्पष्ट है कि राजस्थानके ग्रन्थ भयहारोंमें अपभ्रंश के समुद्धारको भोर लगानेका प्रयत्न करें जैसा कि श्वेतांबर और संस्कृत भाषाके अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पूर्ण-अपूर्ण मुनि कर रहे है तो जैनसाहित्यका उद्धार कार्य सहज ही रूपमें विद्यमान हैं, जो अभी तक भी प्रकाशमें नहीं मा सम्पन्न हो सकता है। प्रास्म-साधनके पावश्यक कार्योंके सके हैं। तुम्नकजी स्वयं विद्वान हैं और उन्हें इतिहास अतिरिक्त शास्त्रभण्डारोंमें ग्रन्थोंके अवलोकन करने उनकी और साहित्यके प्रति अभिरुचि है, खिलने और टीकादि सूची बनाने और अप्रकाशित महत्वके ग्रन्थोंको प्रकाशमें भवेका भी उत्साह है, अतएव वे जहाँ जाते हैं वहांके खाने की भोर प्रयत्न किया जाय तो समाजका महत्वपूर्ण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527330
Book TitleAnekant 1954 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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