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________________ किरण ३ ] है, इस लिए दोनों तिर्य चों में उत्पन्न हुए । तिर्यचोंमें भी प्रधानतः दो जातियां हैं— पशु जाति और पढ़ी जाति । जो केवल उदर-पूत्ति के लिये मायाचार करते हैं, मेरा मायाचार प्रगट न हो जाय, इस भयसे सदा शंकित चित्त रहते हैं, मायाचार करके तुरन्त नौ-दो ग्यारह हो जाते हैं, या भागने की फ्रिक्रमें रहते है, वे पक्षी जाति के जीवोंमें उत्पन्न होते विश्वकी शान्तिको दूर करनेका उपाय । जो उदर-पूतिक अतिरिक्त समाज में बड़ा बनने, लोकमें प्रतिष्ठा पाने और धन उपार्जन करने आदिके लिए मायाचार करते हैं, वे पशुजातिके तिर्यचों में उत्पन्न होते हैं । तदनुसार काक और कोयलके जीवोंने अपने पूर्वभवोंमें एकसा मायाचार किया है, अतः इस भवमें एकसा रूप रङ्ग और आकार प्रकार पाया है । परन्तु उन दोनोंक जीवोंमेंसे जिसका जीव मायाचार करते हुए भी दूसरोंके दोषों ऐबों और अवगुणों पर ही सतर्क और चंचल दृष्टि रखता था, अखाद्य वस्तुओंको खाया करता था, तथा बातचीत में हर एकके साथ समय-असमय कांव-कांव (व्यर्थ बकवाद) किया करता था वह तदनुकूल संस्कारोंके कारण काककी पर्याय में उत्पन्न हुआ। किन्तु जो जीव काकके जीवके समान मायाचार Jain Education International विश्व - अशान्ति के कारण 1 प्राजके इस भौतिक युगमें सर्वत्र अशान्ति ही अशांति दृष्टि गोचर हो रही है । संसारका प्रत्येक मानव सुख-शांति का इच्छुक है, परन्तु वह घबराया हुआ-सा दृष्टिगोचर होता है । उसकी इस अशान्तिका कारण इच्छाओंका अनियन्त्रण, अर्थप्राप्ति, साम्राज्यवादकी लिप्सा, भोगाकांचा और यथ प्रतिष्ठा आदि हैं। संसार विनाशकारी उस भीषण युद्धकी विभीषिकासे ऊब गया है। एटमबम और उदजनबमसे भी अधिक विनाशकारी अस्त्र शस्त्रोंके निर्माणका चर्चा उसकी आन्तरिक शान्तिको खोखला कर रही है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रको निगल जाने, उनकी स्वतन्त्रतामें बाधा डाव अथवा हड़प जानेके लिये तय्यार है । एक देश दूसरे देशकी श्री और धन-सम्पत्ति पर अपना अधिकार कर अपना प्रभुत्व चाहता है, इतना ही नहीं किन्तु उन देशवासियोंको पराधीन एवं गुलाम बनाना चाहता है । [ ७६ करते हुए भी दूसरोंके दोषों, ऐबों और अवगुणों पर नज़र न रखकर गुणों और भलाइयों पर नज़र रखता था, स्थिर मनोवृत्ति और अचंचल दृष्टि था, अखाद्य और लोकनिंद्य पदार्थोंको नहीं खाता था और लोगोंके साथ बातचीतके समय हित, मित और प्रिय बोलता था, वह उस प्रकारके संस्कारोंके कारण कोयलकी पर्यायमें उत्पन्न हुआ, जहां वह स्वभावतः ही मीठी बोली बोलता है, श्रसमय में नहीं बोलता, ऊंची जगह बैठता है और उत्तम ही खान-पान रखता है । पूर्वभव में बीज रूपसे बोये गये संस्कार इस भक्में अपने-अपने अनुरूप वृक्षरूप से अंकुरित पुष्पित और फलित हो रहे हैं । कौएमें जो बुरापन और बोली की कटुता, तथा कोयल में जो भलापन और बोलीकी मिष्टता आज दृष्टिगोचर हो रही है, वह इस जन्मके उपार्जित संस्कारोंका फल नहीं, किन्तु पूर्वजन्मके उपार्जित संस्कारोंका ही फल है । हमें कावृत्ति छोड़कर दैनिक व्यवहार में पिकके समान मधुर और मितभाषी होना चाहिए। विश्वकी अशान्तिको दूर करनेके उपाय (परमानन्द जैन शास्त्री ) विनाशकारी उन अस्त्र-शस्त्रोंकी चकाचौंध में वह अपनी कर्तव्यनिष्ठा और न्याय अन्यायकी समतुल्लाको खो बैठता है, वह साम्राज्यवादकी झूठी लिप्सामें राजनीति अनेक दाव-पेंच खेख कर अपनेको समृद्धत सुखी एवं समृद्ध देखना चाहता है और दूसरेको भविनत- गुलाम निर्धन एवं दुखी, राष्ट्र और देशोंकी बात जाने दीजिये । मानवमानव के बीच परिग्रहकी अनन्ततृष्णा और स्वार्थ तस्वरताके कारण गहरी खाई हो गई है, उनमें से कुछ लोग तो अपनेको सर्व प्रकारसे सुखी और समुन्नत देखना चाहते हैं और दूसरेको निर्धन एवं दुखी । दूसरेकी सम्पत्ति पर कब्जा करना चाहता है । और उसे संसारसे प्रायः समाप्त करनेकी भावना भी रखता है इस प्रकारकी दुर्भावनाएँ ही नहीं हैं किन्तु इस प्रकारकी अनेकों घटनाएं भी घटित हो रही हैं जो अशान्सिकी जमक हैं और अहिंसाधर्मसे परान्मुख होनेका स्पष्ट संकेत करती हैं। इसी कारण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527330
Book TitleAnekant 1954 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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