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________________ किरण ३ | कारण किसीकी कीमत मूल्यसे अधिक न होने पाये और ऋति सुलभताके कारण किसीकी कीमत मूल्यसे गिरने न पाये 1 निरतिवादी समता मूल्यका निर्णय वस्तुकी उपयोगिता तथा इस प्रकरण में बताये गये आठ कारणों में से प्रारम्भके सात कारणों के आधारपर करना पड़ता है और कीमतके निर्णयमें दुर्लभता सुलभता आदमीकी नरजका भी असर पड़ जाता है। मूल में उसकी सामग्रीका विचार है, कीमतमें सिर्फ उसके बाजारू विनिमयका विचार है। उदाहरणके लिये उपयोगिता की दृष्टिसे पानी काफी मूल्यवान है पर सुलभताके कारण उसकी कीमत कुछ नहीं है। सोने चांदीकी अपेक्षा अ अधिक मूल्यवान है पर दुर्लभताके कारण सोने चाँदोकी कीमत ज्यादा है । कहीं-कहीं मूल्य और कीमतका अन्तर यों भी समझा जा सकता है कि मूल्य बताता है कि इसकी विनिमयकी मात्रा कितनी होना चाहिए, कीमत बताती है कि इसकी विनिमय की मात्रा कितनी है । चाहिये और है का फर्क भी कहीं कहीं इन दोनोंका फर्क बन जाता है । मनुष्येतर वस्तुओं में यह फर्क थोड़ी बहुत मात्रा में बना रहे तो बना रहे पर मनुष्यके बारेमें यह अन्तर न रहना चाहिये । समाजको शिक्षण तथा बाजारमें सामन्जस्य रखना चाहिये । असाधारण महामानवों की बात दूसरी है क्योंकि आर्थिक दृष्टिसे उनकी ठीक कीमत प्रायः चुकाई नहीं जाती । खैर ! ये आठ कारण हैं जिनसे पारिश्रमिक या पुरस्कार अधिक देना चाहिये । एक ही कारणसे विनिमयकी दर बढ़ जाती हैं। जहाँ जितने अधिक कारण होंगे वहां विनिमयकी दर उतनी ही अधिक होगी। यदि श्रतिसमताके कारण इनकी विशेष कीमत न चुकाई जायगी तो इन विशेषताओंका नाश होगा और मिलना अशक्य होगा । इस प्रकार अतिसमता हर Jain Education International [ ७७ तरह अनुचित है । वह अन्यायपूर्ण भी है और अव्यावहारिक भी । ६ - अतिविषमता रोकनेके लिये प्रारम्भके दो नियम पाले जाने चाहिये, साथ हो विनिमय क्षेत्र में अन्तरकी सीमा निश्चित कर देना चाहिये। हां ! उसमें देशकालका विचार जरूर करना चाहिये । साधारणतः भारतकी वर्तमान परिस्थिति के अनुसार यह अन्तर एक और पचाससे अधिक न होना चाहिए । यदि साधारण चपरासीको ३०) मासिक मिलता है तो प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपतिको इससे पचासगुणे १५०० ) से अधिक न मिलना चाहिए । ७ – उपार्जित सम्पत्तिके संग्रह करने पर अंकुश रहना चाहिए। पूजीके रूपमें अधिक सम्पत्ति न रहना चाहिए, भोगोपभोगकी सामग्रीके रूपमें रहना चाहिए। जो श्रादमी रुपया आदि जोड़ता चला जाता है वह भोगोपभोगकी चीजें कम खरीदता है इससे उन चीजोंकी खपत घट जाती है और खपत घटजानेसे उन चीजों को तैयार करने वालोंमें बेकारी बढ़ जाती है । इसलिए व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि लोग जो पायें उसे या उसका अधिकांश भोग डालें । अमुक हिस्सा संकट समयके लिए सुरक्षित रक्खें, जिससे संकटमें उधार न लेना पड़े । फिर भी यदि कोई पूंजीके रूपमें या रुपयाके रूपमें अधिक संग्रह करले तो उसका फर्ज है कि वह अपनी बचतका बहुभाग सार्वजनिक सेवाके क्षेत्रमें दान कर जाय या मृत्युकर द्वारा उससे ले लिया जाय । इस नियमसे अतिविषमतापर काफी अंकुश पड़ेगा । श्रतिसमताके आसमानी गीत गाना स्वरपर वचनाके सिवाय कुछ नहीं है और प्रतिविषमता चालू रखना इन्सान को हैवान और शैतान मेंबांट देना है, इसलिए निरतिवादी समताका हो प्रचार होना चाहिए। -संगम से मेरी भावनाका नया संस्करण 'मेरी भावना' 'एक राष्ट्रीय कविता है जिसका पाठ करना प्रत्येक व्यक्तिको अपने मानव जीवनको ऊँचा उठानेके लिए अत्यन्त आवश्यक है । वीरसेवामन्दिरसे उसका अभी हालमें संशोधित नया संस्करण प्रकाशित हुआ है। जो अच्छे कागज पर छपा है। बांटने या थोक खरीदने वालोंको ५) सैकड़ाके हिसाब से दिया जाता है। एक प्रतिका मूल्य एक आना है। आर्डर देकर अनुग्रहीत करें। For Personal & Private Use Only मैनेजर - - वीरसेवा - मन्दिर ग्रंथमाला १ दरियागंज, दिल्ली www.jainelibrary.org
SR No.527330
Book TitleAnekant 1954 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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