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________________ किरण ३० निरतिवादी समता ३-विशेष मानसिक काम करने वाले और साधारण अतिविषमतासे हानियां शारीरिक काम करनेवाले यदि समान सुविधा पायें तो मान- अतिविषमताकी हानियोंसे हम परिचित ही हैं। हाला सिक श्रम तीण होगा। मानसिक श्रमका काम करनेवाले कि ये हानियां अतिसमताके बराबर नहीं हैं फिर भी को पाव भर घी की जरूरत होगी और शारीरिक श्रम करने काफी हैं। वालेका काम आध पाव घी से चल जल जायगा । दोनोंको एक श्रादमीको गुणी सेवक होते हुए भी जब निर्गुण बराबर दिया जाय तो मानसिक श्रमवाला उचित श्रम न असेवकोंसे कम मिलता है तब उसके साथ अन्याय होता । कर पायगा। है। इससे उसका ध्यान गुण बढ़ाने और सेवा करनेसे हटकर ४-एक आदमी पूरी जिम्मेदारीसे काम करता है, उन चालाकियोंकी तरफ चला जाता है जिनसे अधिक धन चारों तरफ नजर रखता है, दिनरात चिन्ता करता है, दूसरे- खींचा जा सकें। एक भी चालाक बदमाश श्रादमी जब धनी को ऐसी जिम्मेदारीसे कोई मतलब नहीं । दोनोंको पारि- बन जाता है तब यह कहना चाहिये कि वह सौ गुणी और श्रमिक दिया जाय तो जिम्मेदारी रखनेवाला उस तरफ ध्यान सेवकों की हत्या करता है। अर्थात् उसे देखकर सौ गुणी न देगा । इस प्रकार कामकी सारी व्यवस्था बिगड़ जायगी। और सेवक व्यक्ति गुण सेवाके सन्मार्गसे भ्रष्ट होकर चालाक ५-एक श्रादमीमें अपने क्षेत्रमें काम करनेके लिये बदमाश बननेकी कोशिश करने लगते हैं। भले ही वे सफल असाधारण प्रतिभा है, असाधारण स्वर या सुन्दरता है, हों या न हों। असाधारण शक्ति है, असाधारण कला है, इनका असाधारण समाजमें जो बेकारी है, एक तरफ काम पड़ा है दूसरी मूल्य यदि न दिया जाय तो इन गुणोंका उपयोग करनेके तरफ सामग्री पड़ी है तीसरी तरफ काम करनेवाले बेकार लिये उन गुणवालोंका उत्साह ही मर जायगा। इसका मनो बैठे हैं, यह सब अतिविषमताका परिणाम है। इस प्रकार वैज्ञानिक प्रभाव ऐसा पड़ेगा कि इनका सदुपयोग करनेके य र यह अति-विषमता भी काफी हानिप्रद है। लिये जो थोड़ी बहुत साधना करनेकी जरूरत है वह साधना हमें अतिसमता और अतिविषमताको छोड़कर निरतिभी मिट जायगी। वादी समताकी योजना बनाना चाहिये । उसके सूत्र ये हैं। -हर एक व्यक्तिको भोजन वस्त्र और निवासकी ६--अतिसमता का सारे समाज पर बहुत बुरा प्रभाव उचित सुविधा मिलना ही चाहिये । हां, इस सुविधाकी पड़ेगा। सारा समाज दुःखी अशान्त निकम्मा और झगड़ालू जिम्मेदारी उन्हींकी ली जा सकती है जो समाजके लिये हो जायगा। कामका या अपने मूल्यका विवेक किसीमें न उपयोगी कार्य उचित मात्रामें करनेको तैयार हों। रहेगा। हर आदमी को यही चिन्ता रहेगी कि मुझे बराबर २-देशमें बेकारी न रहना चाहिये । देशव्यापी एक मिलता है या नहीं? दूसरोंको क्या मिला और मुझे क्या ऐसी योजना होना चाहिये जिससे हर एक व्यक्तिको काममें मिला इसी पर नजर रखने और चिन्ता करनेमें और झगड़ने लगाया जा सके। में हर एककी शक्ति बर्बाद होगी । विशेष योग्यतावाले ३-न्यायोचित या समाजमान्य तरीकेसे जिसने जो विशेष काम न करेंगे और हीन योग्यतावाले बराबरी के लिये सम्पत्ति उपार्जित की है उस पर उसकी मालिकी रहना दिनरात लड़ेंगे, थोडासा अन्तर रहेगा तो असन्तुष्ट होकर चाहिये । बिना मुवावजे की वह सम्पत्ति उससे ली न जा चोरी करेंगे, बदमाशी करेंगे, कृतघ्नताका परिचय देंगे विनय सके। का हत्या करग । इस प्रकार सारा समाज अनुत्साह, इण्या, ४-साधारणतः ठीक आमदनी होने पर भी जो अपखेद. मुफ्तखोरी, चोरी, विनय, श्रालस्य, कृतघ्नता, कलह, व्ययी या विलासी होनेसे कुछ भी सम्पत्ति नहीं जोड़ पाता अयोग्यता, असाधना, आदिसे भर जायगा, उत्पादन चौपट उसकी गरीबीको दयनीय न मानना चाहिये। हो जायगा, अव्यवस्था असीम हो जायेगी। ५-निम्नलिखित आठ कारणोंसे पारिश्रमिक या पुर- अतिसमता जितनी मात्रामें होगी ये दोष भी उतनी. स्कार अधिक देना चाहिये । (१) गुण (२) साधना मात्रामें होंगे । इस प्रकार अतिसमता अर्थात् अन्याय्य समता (३) भ्रम (8) सहसाधन (1) कष्ट संकट (6) उत्पादन सर्वनाशका मार्ग है। (७) उत्तरदायित्व (6) दुर्लभता । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527330
Book TitleAnekant 1954 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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