SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिंह- श्वान - समीक्षा (पे० हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री ) प्राणिशास्त्र के अनुसार सिंह और श्वान दोनों ही हिंसक एवं मांसाहारी प्राणी हैं । दोनों ही शिकारी जानवर माने जाते हैं और दोनोंके खाने पीनेका प्रकार भी एक सा ही है। फिर भी जबसे लोगोंने कुत्तोंको पालना प्रारम्भ कर दिया, तबसे वह कृतज्ञ ( वफादार) और उपयोगी जानवर माने जाना लगा है। पर सिंहको लोगों ने लाख प्रयत्न करने पर भी - पिंजड़ों में और कठघरोंमें वर्षों तक बंद रखनेके बाद भी आज तक पालतू, वफादार और उपयोगी नहीं बना पाया है । सर्कस के भीतर इंटरके बलपर चाहे जैसा नाच नचाने पर भी न उसका स्वभाव बदला जा सका है और न खाना-पीना ही । जबकि लोगोंने कुत्तों रोटी खाना सिखाकर उसे बहुत कुछ अन्न-भोजी भी बना दिया है और उससे मेल-जोल बढ़ाकर उसे अपना दास, अंगरक्षक और घरका पहरेदार तक बना लिया है । युद्धके समय इससे संदेश वाहक (दूत) का भी काम लिया गया है और इसके द्वारा अनेक महत्वपूर्ण रहस्योंका उद्घाटन भी हुआ है । कुत्तेकी एक बड़ी विशेषता उसकी प्राण-शक्ति की है, जिसके . द्वारा वह चोर साहूकार और भले-बुरे आदम तकको पहिचान लेता है । सूघसूंघ कर वह जमीन के भीतर गड़ी हुई वस्तुओं का भी पता लगा लेता है । इसके अतिरिक्त कुत्तेकी नींद बहुत हल्की होती है, जरा सी आहट से यह जाग जाता है और रात भर घरवारकी रक्षा करता रहता है। इस प्रकार कुत्ता हिंसक प्राणियों में मनुष्यका सबसे अधिक लाभ दायक ( फायदेमन्द), उपकारी और वफादार प्राणी साबित हुआ है, और सिंह सदा इसके विपरीत ही रहा है । कुत्तेके इतना कृतज्ञ, उपयोगी और उपकारक सिद्ध होने पर भी यदि कोई मनुष्य अपने हितैषी या उपकारकको कुत्तेकी उपमा देकर कह बैठे- 'अजी, आप तो कुत्ते के समान हैं' तो देखिए, इसका उसपर क्या असर होता है ? लेने के देने पड़ जायेंगे, आज तकके किये - करायेपर पानी फिर जायगा और वह आपकी जानका ग्राहक बन जायगा !!! पर इसके विपरीत स्वभाव वाले और मनुष्य के कभी काम न आने वाले सिंहकी उपमा Jain Education International ' देकर किसीसे कहिये - 'अजी, आपतो सिंहके समान हैं तो देखिए इसका उसपर क्या असर होता है ? वह आपके इस वाक्यको सुनते ही हर्ष से फूलकर कुप्पा हो जायगा, मूंछों पर ताव देने लगेगा और गर्वका अनुभव करेगा तथा मनमें विचार करेगा, वाक़ई मैंने ऐसे-ऐसे कार्य किये हैं कि मैं इस उपमाके ही योग्य हूँ ! यहां मैं पाठकों से पूछना चाहता हूँ-क्या कारण है कि कुत्तेके इतने उपयोगी और फायदेमन्द होने पर भी लोग उसकी उपमा तकको पसंद नहीं करते, प्रत्युत मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं और जिससे मनुष्यका कोई लाभ नहीं, उसकी उपमा दिये जानेपर इतने अधिक हर्ष और गर्वका अनुभव करते हैं ? मालूम पड़ता है कि कुत्ते में भले ही सैकड़ों गुण हों, पर कुछ एक ऐसे महान् अवगुण अवश्य हैं, जिससे उसके गुण पासंग पर चढ़ जाते हैं और जिनके कारण लोग उसकी उपमाको पसंद नहीं करते। इसके विपरीत सिंहमें लाख अवगुण भले ही हों, पर कुछ- एक महान् गुण उसमें ऐसे अवश्य हैं, जिसके कि कारण लोग उसकी उपमा दिये जाने पर हर्ष और गर्वका अनुभव करते हैं । सिंह और श्वान, इन दोनोंके स्वभावका सूक्ष्म अध्ययन करनेपर हमें उन दोनोंके इस महान् अन्तरका पता चलता है और तब यह ज्ञात होता है कि वास्तव में इन दोनों में महान् अन्तर है और उसके ही कारण लोग एककी उपमाको पसन्द और दूसरेकी उपमाको नापसन्द करते हैं । सिंह और श्वान में सबसे बड़ा अन्तर आत्मविश्वास का है। सिंहमें आत्मविश्वास इतना प्रबल होता है कि जिसके कारण वह अकेले ही सैकड़ों हाथियोंके साथ मुकाबिला करनेकी क्षमता रखता है । परन्तु कुत्ते में आत्मविश्वासकी कमी होती है । वह अपने मालिकके भरोसे पर ही सामने वाले पर आक्रमण करता है । जब तक उसे अपने मालिक की ओर से प्रोत्तेजन मिलता रहेगा, वह आगे बढ़ता रहेगा | आक्रमण करते हुए भी वह बार-बार मालिककी ओर झांकता रहेगा और ज्योंही मालिकका प्रोते For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527329
Book TitleAnekant 1954 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy