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________________ उत्तम शास्त्रदानका सुन्दर योग .. आप्त परीक्षाकी लूट !! आप्तपरीक्षा हवीं शताब्दीके विद्वान श्री विद्यानन्दाचार्यकी स्योपज्ञ टीकासे युक्त अपूर्व कृति है प्राप्तोंकी परीक्षाद्वारा ईश्वर-विषयके सुन्दर सरस एवं सजीव विवेचनको लिये हुए है, न्याताचार्य पं. दरबारीलालके हिन्दी अनुवाद तथा प्रस्तावनादिसे युक्त है और पहली बार 'वीरसेवामन्दिर से प्रकाशित हुई है जिसका लागत मूल्य ८) रुपया है। हम चाहते हैं कि इस तत्त्वज्ञानपूर्ण महत्वके ग्रन्थका घर-घरमें प्रचार हो, कोई भी लायब्ररी इससे खाली न रहे और यह अजैन विद्वानोंको भी खास तौरसे पढ़नेके लिये दिया जाय । क्योंकि यह उनकी श्रद्धाको बदलकर अपने अनुकूल करनेमें बहुत कुछ समर्थ हैं । अतः प्रचारको दृष्टिसे हाल में यह योजना की गई है कि जो श्रुतभक्तिपरायण परोपकारी सज्जन दो प्रतियोंका मूल्य १६) रु. भेजेंगे उन्हें उतने हो मूल्यमें तीन प्रतियाँ दी जावेंगी, जिनमेंसे एक प्रति वे अपने लिये रखें और शेष दो प्रतियाँ किसी मन्दिर, लायनरी या अजैन विद्वानको अपनी ओरसे भेंट कर देखें और इस तरह सत्साहित्यके प्रचार एवं शास्त्रदानमें अपना सहयोग प्रदान करें । जो महानुभाव शास्त्रदानको इच्छासे २० प्रति एक साथ खरीदेंगे उन्हें वे प्रतियाँ १६०) की जगह १००) रु. में ही दी जावेंगी। आशा है सत्साहित्यक प्रचार में अपना सहयोग देनेके लिये उद्यमशील एवं शास्त्रदानके इच्छुक सज्जन शीघ्र ही अपना आर्डर भेजकर इस योजनासे लाभ उठाएँगे और इस तरह 'वीरसेवामन्दिरके' दूसरे महत्वपूर्ण ग्रन्थोंको अविलम्ब प्रकाशित करनेके लिये प्रोत्साहित करेंगे। मैनेजर वीरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला दरियागंज, देहली अनेकान्तके ग्राहकोंको भारी लाभ अनेकान्तके पाठकोंके लाभार्थ हाल में यह योजना की गई हैं कि इस पत्रके जो भी ग्राहक, चाहे वे नये हों या पुराने, पत्रका वार्षिक चन्दा ६) रु. निम्न पते पर मनोआर्डरसे पेशगी भेजेंगे वे १०) रु० मूल्यके नीचे लिखे ६ उपयोगी ग्रन्थों को या उनमेंसे चाहे जिनको, वीरसेवामन्दिरसे अर्ध मूल्यमें प्राप्त कर सकेंगे और इस तरह 'अनेकान्त' मासिक उन्हें १) रु० मूल्यमें ही वर्ष भर तक पढ़ने को मिल सकेगा। यह रियायत सितम्बरके अन्त तक रहेगी अतः प्राहकोंको शीघ्र ही इस योजनासे लाभ उठाना चाहिये। ग्रन्थोंका परिचय इस प्रकार है:१. रत्नकरण्डश्रावकाचारसटीक -पं० सदासुखजीकी प्रसिद्ध हिन्दीटीकासे युक्त, बड़ा साइज, मोटा टाइप, पृ० ४२४, सजिल्द. मूल्य २. स्तुतिविद्या-स्वामी समन्तभद्रकी अनोखी कृति, पापोंको जीतनेकी कला, सटीक, हिन्दी ___टीकासे युक्त और मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजी महत्वकी स्तावनासे अलंकृत, पृ. २०२ सजिल्द ॥) ३. अध्यात्मकमलमातोएड-पंचाध्यायीके कर्ता कविराजमल्लकी सुन्दर आध्यात्मिक रचना, हिन्दी अनुवाद सहित और मुख्तार श्री जुगलकिशोरकी खोजपूर्ण ७८ पृष्ठ की प्रस्तावनासे भूषित, पृष्ठ २८०, .. शा) ४. श्रवणबेल्गोल और दक्षिणके अन्य जैनतीर्थ-जैनतीर्थोका सुन्दर परिचय अनेक चित्रों सहित पृष्ठ १२० ... ५. श्रीपुरपार्वश्नाथस्तोत्र-आचार्य विद्यानन्दकी तत्वज्ञानपूर्ण सुन्दर रचना, हिन्दी अनुवादादि सहित, पृष्ठ १२५ . ६. अनेकान्त रस-लहरी-अनेकान्त जैसे गूढगम्भीर विषयको अतीव सरलतासे समझनेसमझाने की कुञ्जी _, : ) मैनेजर 'अनेकान्त' वीरसेवामन्दिर, १ दरियागंज देहली। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527329
Book TitleAnekant 1954 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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