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________________ ३१६ पाता है, न कलाओं का विकास हो पाता है, न चिकित्सा की भरपूर व्यवस्था है, न सबके पास यातायातके भरपूर साधन हैं, इत्यादि असीम काम पड़ा है, इसलिए काम के अभावमें बेकारी नहीं है। एक तरफ काम पड़ा है, दूसरी तरफ कामकी सामग्री पड़ी है, तीसरी तरफ काम करने वाले बेकार बैठे हैं, इन तीनोंको मिलानेकी कोई आर्थिक व्यवस्था नहीं है यही बेकारीका कारण है जिससे असीम उत्पादन रुका पड़ा है और देश गरीब है । अनेकान्त [ वर्ष ४७ रहते है और बेज़रूरी काम भ्रम और साधनोंकी बर्बादी करने लगते हैं। ३. कामचोरी - काम करने वाले नौकरोंमें उत्तेजनाका कोई कारण न होने से वे किसी तरह समय पूरा करते हैं कम-से-कम काम करते हैं, किसी न किसी बहानेसे समय बर्बाद करते हैं. मन्द गतिसे काम करते हैं इसलिये उत्पादन कम होता है । कामका ठेका दिया जाय या नौकरोंको हिस्सेदारकी तरह आमदनी मेंसे हिस्सा दिया जाय तो इस तरह समयकी बर्बादी न हो, न मन्दगतिले काम हो । उत्पादन बढ़े। इसलिए किसी न किसी तरह का संघीकरण करना जरूरी है । ४. असहयोग–व्यक्तिवादी आर्थिक व्यवस्था होनेसे काममें दूसरोंका उचित सहयोग नहीं मिलता इसलिए कार्य ठीक ढंगसे और ठीक परिमाणमें नहीं हो पाता, इसलिए उत्पादन काफी घट जाता है। जानकारोंकी सलाह न मिल सकना, यातायातके ठीक साधन न मिलना, या जरूरत समझी जानेमे काफी महंगे और अधूरे साधन मिलना, मजदूरोंका अड़कर बैठ जाना आदि अस हयोगके कारण उत्पादन घटता है। व्यक्तिवादका यह स्वाभाविक पाप है। ५. वृथोत्पादकश्रम - श्रम करने पर उत्पादन तो होता है पर वह उत्पादन किसी कामका नहीं होता या उचित कामका नहीं होता। एक आदमी काफी मेहनत करके दवाइयाँ बनाता है, पर दवाई किसी कामकी नहीं होती सिर्फ किसी तरह दवाई बेच कर पेट पान लिया जाता है। इसी तरह कोई बेकार के खिलौने बना कर पेट पालने लगता है, ये सब वृथोत्पादक श्रम हैं इनसे मेहनत तो होती है पर कुछ लाभ नहीं होता बल्कि कृष सामग्री बेकार नष्ट हो जाती है । व्यक्तिवादकी प्रधानतामें जब आदमी का कोई धन्या नहीं मिलता वह ऐसे थोपा एक अम करके गुजर करने लगता है जरूरी काम पड़े 1 Jain Education International ६. अनुत्पादकश्रम — जिसमें मेहनत तो की जाय पर उससे उत्पादन या लाभ कुछ न हो वह अनुत्पादक श्रम है । बीमारीका इलाज करने के लिए जप, होम, बलिदान, परिक्रमा तथा पूजा आदि धन और शक्ति बर्बाद करना या पानी बरसाने आदिके लिये ऐसे कार्य करना, जिससे शारीरिक शक्तिका कोई उपभोग नहीं ऐसी शारीरिक शक्ति बढ़ानेके लिये मेहनत करना जैसे पहलवानी आदि शांतिकी ठीक योजनाओंके बिना विश्व शान्ति यज्ञ करना, आदि अनुत्पादक भ्रम है। मनुष्यजातिकी दृष्टिसे सैनिकता के कार्य भी अनुस्पादक श्रम हैं। फौजी बजटका बढ़ना भी देशकी गरीबीको निमन्त्रण देना है। 1 स्वास्थ्य के लिये व्यायाम करना, मनकी शांतिके लिये प्रार्थना आदि करना, अनुत्पादक भ्रम नहीं है। क्योंकि जिस शारीरिक और मानसिक नामके जिये ये किये जाते हैं उस जाम के ये उचित उपाय है। धनुषा दक अममें ऐसे अनुचित कार्य किए जाते है जो अपने लक्ष्य के उपाय साबित नहीं होते । अनुत्पादमश्रम में देशका उत्पादन तो बढ़ता ही नहीं किन्तु उत्पादन के निमित्त धन-जन-शक्तिकी बर्बादी होती है। ७. पापश्रम चोरी डकैती हुआ आदि कार्योंनें जो श्रम किया जाता है उससे पाप तो होता ही है पर देश में उत्पादन कुछ नहीं बढ़ता। जिनका धन जाता है वे तो गरीब होते ही हैं पर जिन्हें धन मिलता है वे भी मुफ्तके धनको जल्दी उड़ा डालते हैं। इस तरह के पापकार्य जिस देशमें जिसने अधिक होंगे देशकी गरीबी उतनी ही बढ़ेगी। ८. अल्पोत्पादकश्रम-जिस अममे जितना पैदा होना चाहिये उससे कम पैदा करना, अर्थात्-थोड़े कार्यमें अधिक लोगोंका लगना या अधिक शक्ति लगना पोत्पादकश्रम है जैसे 1 - जो कार्य मशीनोंके जरिये अधिक मात्रा में पैदा किया जा सकता है उसे कोरे हाथोंसे करना । इससे अधिक शादमी अधिक शक्ति खर्च करके कम पैदा कर पायेंगे । जैसे मिलोंकी अपेक्षा हाथसे सूत कातना। इसमें अधिक आदमियोंके द्वारा थोड़ा कपड़ा पैदा होता है, कई ज्यादा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527324
Book TitleAnekant 1954 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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