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________________ किरण ७ ] हमारी तीर्थयात्राके संस्मरण [२३७ विशालकीर्तिभी.रहे हैं। कोल्हापुरसे चलकर हम लोग अतः खारा पानीका ही उपयोग करना पड़ा। और भोज स्तवनिधि पहुँचे। नादिसे निवृत्त हो कर ३ बजेके करीब हमलोग चन्नराय स्तवनिधि दक्षिण प्रांतका एक सुप्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र पहनके लिए चल दिये । और ॥ बजेके करीब चन्नराय है। यहां चार मन्दिर व एक मानस्तम्भ है। मन्दिरके पट्टन पहुँच गए। और चंचराय पट्टनसे ८॥ बजे चलकर , पीछेके अहातेकी दीवाल गिर गई है जिसके बनाये जानेकी बजेके करीब श्रवणबेल्गोन (श्वेतसरोवर) पहुँच गए, रास्तेभावश्यकता है। यहां लोग अन्य तीर्थक्षेत्रों की भांति मान- मेंचलते समय श्रवणवेल्गोल जैसे २ समीप आता जाता मनौती करनेके लिये आते हैं। उस समय एक बरात आई था। उस लोकप्रसिद्धमूर्तिका दूरसे ही भव्य दर्शन होता हुई थी, मन्दिरोंमें कोई खास प्राचीन मूर्तियां ज्ञात नहीं जाता था। और गोम्मटेश्वर की जयके नारोंसे प्रकाश गूंज हुई। यह क्षेत्र कब और कैसे प्रसिद्धि में पाया । इसका कोई उठता था रास्तेका दृश्य बड़ाही सुहावना प्रतीत होता इतिवृत्त ज्ञात नहीं हुमा । हम लोग सानंद यात्रा कर था। और मूर्तिके दूरसे ही दर्शन कर हृदय गद्गद् हो बेलगांव और धारवाड होते हुए हुबली पहुँचे । और रहा था। सभीके भावोंमें निर्मलता, भावुकता और मूर्तिके हबलीसे हरिहर होते हुए हमलोग दावणगिरि पहुँचे । सेठ समीपमें जाकर दर्शन कर अपने मानवजीवनको सफल जीकी नूतन धर्मशालामें ठहरे । धर्मशालामें सफाई और बनानेकी भावना अंतरमें स्फूर्ति पैदा कर रही थी, कि पानीकी अच्छी व्यवस्था है। नैमित्तिक क्रियाओंसे इतनेमें श्रबण बेलगोल भा गया । और मोटर अपने निवृत्त होकर मंदिरजीमें दर्शन करने गये। यह मंदिर अभी निश्चित स्थान पर रुकगई। और सभी सवारियाँ गम्मट बनकर तय्यार हुआ है। दर्शन-पूजनादि देवकी जयध्वनिके साथ मोटरसे नीचे उतरीं । और यही करके भोजनादि किया और रातको यहां ही पाराम किया, निश्चय हुआ कि पहले ठहरनेकी व्यवस्था करने बादमें सब और सबेरे चारबजे यहांसे चलकर एक बजेके करीब पार- कार्योंसे निश्चिंत होकर यात्रा करें । अतः प्रयत्न करने पर सीकेरी पहुँचे, वहाँ स्नानादिसे निवृत्त हो मन्दिरजीमें दर्शन गाँव में ही एक मुसलमानका बड़ा मकान सौ रुपयेके किये । पार्श्वनाथकी मूर्ति बड़ी ही मनोज्ञ है। एक शिला- किराये में मिल गया और हमलोगोंने " बजे तक लेख भी कनाड़ी भाषामें उत्कीर्ण किया हुआ है। यहां सामानश्रादिकी व्यवस्थासे निश्चित होकर स्थानीय समय अधिक हो जानेसे मीठे पानीके नल बंद हो चुके थे, मन्दिरोंके दर्शनकर पाराम किया । क्रमशः परमानन्द जैन विवाह और दान .. श्रीलाला राजकृष्णजी जैनके लघु भ्राता लाला हरिश्चन्द्रजी जैनके सुपुत्र बाबू सुरेशचन्द्रका विवाह मथुरा निवासी रमणलाल मोतीलालजी सोरावाओंकी सुपुत्री सौ. सुशीला कुगारीके साथ जैन विधिसे सानन्द सम्पन्न हुआ। वर पक्षकी पोरसे १०००) का दान निकाला गया, जिसकी सूची निम्न प्रकार है:१०.) वीर सेवा मन्दिर, जैन सन्देश, ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम, मथुरा, अग्रवाल कालेज मथुरा अग्रवाल कालेज मथुरा, ___ अग्रवाल कन्या पाठशाला मथुरा प्रत्येक को एक सौ एक। २१) वाली संस्थाएं स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस, उदासीनाश्रम ईसरी, अम्बाला कन्या पाठशाला, समन्द्रभद्र विद्यालय २५) जैन महिलाश्रम, देहली । अग्रवाल धर्मार्थ औषधालय, मथुरा, गौशाला मथुरा प्रत्येक को २५) २१) मन्दिरान मथुरा, जयसिहपुरा, वृन्दावन चौरासी, घिया मंडी, और घाटी। जैन अनाथाश्रम देहली। . . प्राचार्य नमि सागर औषधालय देहली हर एक को इक्कीस। ' ११) वाली संस्थाएं और पद जैन बाला विश्राम भारा, मुमुच महिलाश्रम महावीर जी, जैनमित्र सूरत । ७) परिन्दोंका हस्पताल, मालमन्दिर, देहली। १) अनेकान्त, जैन महिलादर्श, अहिंसा, वीर, जैन गजट देहली, प्रत्येक को पांच । :) मनियाडर फीस । वीरसेवान्दिरको जो १.१) रुपया विडिग फंडमें और अनेकान्त को १) रुपया जो सहायतार्थ प्रदान किये हैं। उसके लिये दातार महोदय धन्यवादके पात्र हैं। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527321
Book TitleAnekant 1953 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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