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अनेकान्त
[किरण
पर हर मानवका, मानव रूप में जन्म लेनेके कारण रहने कुछ हो सकता है और भविष्य उज्ज्वत एवं प्राशापूर्व
और उन्नति करनेका समान हक है, ऐसी भावना दिन दिन बनाया जा सकता है। प्रबल होती जा रही है। जैनदर्शन, धर्म और सिद्धान्त श्री कामताप्रसादजी समाजके प्राचीन इतिहासक भी यही शिक्षा देते हैं और जैनियोंका सारा धार्मिक एवं और एक सच्चे लग्नशील कार्यकर्ता हैं। उन्होंने विश्वसामाजिक निर्माण और व्यवस्थाएं इसी आदर्शको लेकर जैन मिशन' नामकी संस्था स्थापित और चालू करके संस्थापित हुई है। केवल जैनधर्म ही ऐसा धर्म है जो एक बड़ी कमीको पूर्तिको है। इस संस्थाने थोदे ही समय'मनुष्यकी पूर्णता' को ही सर्वोच्च ध्येय या श्रादर्श मानता में थोड़े रुपये में ही बड़ा भारी काम किया है । पर समाज
और प्रतिपादित करता है। बाको दूसरे लोग 'देवस्व' को की उदासीनताके कारण इसे जितनी आर्थिक मदद मिलनी ही प्रादर्श मानते हैं जो संसारकी सबसे बड़ी ग़लती चाहिए थी उसका शतांश भी नहीं मिल सका। यह रही है। तीर्थंकरको मानवकी पूर्णताका सर्वोच्च एवं संस्था दिगम्बर, श्वेताम्बरके भेद भावोंसे तथा दूसरे सर्वोगपूर्ण उत्तम प्रादर्श माना गया है। इसी प्रादर्शके मगहोंसे मुक्त हैं। इसके कार्यको आगे बढ़ाना हम सभी व्यापक विस्तार, प्रचार और प्रप्तरणसे हो मानव-मात्रका नियोंका कर्तव्य तो है ही-हमें अपनी रक्षा और अपने सध्या कल्याण हो सकता है। अहिंसा और सत्य तो तीर्थों, संस्थाओं और संस्कृतिकी रक्षाके लिए इस वर्तमान इसीकी दो शाखाएं हैं, जिनका भी शुद्ध विकास जैन प्रचार युगमें तो अत्यन्त जरूरी और 'अनिवार्य सिद्धान्तोंमें ही परस्पर विरोधी रूपसे पूर्णताको प्राप्त हो गया है। होता है । मानव-कल्याणकी कामनासे भी और स्वकल्याण . संसारमें युद्धकी विभीषिकाको समाप्त करना, हिंमा, की भ्रमरहित भावमासे भी हमारा यह पहला कर्तव्य है खूनखराबीको दूर करना और सर्वत्र सुख शान्ति स्थापित कि हम इन सच्चे विश्व-कल्याणकारी सिद्धान्तोंका विश्व- करना हमारा ध्येय और कर्तव्य है-इसलिए भी हमें व्यापक प्रचार अपनी पूरी शक्ति लगा कर करें । अन्यथा इस कल्याणकारी संस्थाकी हर प्रकारसे तन मन धनसे हभ मिट जायेंगे और हमारी सारी दूसरी सुकृतियाँ मिट्टी- पूर्ण शक्ति एवं खुले दिलसे सहायता करना और कार्यको में मिल जायेंगी, बेकार हो जायेंगी-किसी काममें नहीं आगे बढ़ाना हमारा अपना पहला काम है और जरूरी श्रावेंगी। सावधान । उठो, जागो और काममें लग है। आशा है कि हमारे जैन भाई इस समयानुकूल चेताजाओ। अब अधिक देर करना अथवा अनिश्चितताकी वनी ( Timely warning ) और इस प्रथम प्राव दीर्घसूत्रीदशा विनाशकारक होगी। अब तक जो ग़लती श्यकताकी भोर गम्भीर ध्यान देंगे। या ढिलाई इस काममें हो गई सो हो गई। अबसे भी
- अनन्तप्रसाद जैन संयोजकयदि सच्ची नगनसे काममें लग जाय तो अभी भी बहुत
विश्व जैन मिशन पटना विवाह और दान डा. श्रीचन्दजी जैन संगल सरसावा निवासी हाल एटाके सुपुत्र चि. महेशचन्द बी. ए. का विवाह-संस्कार इटावा निवासी साह टेकचन्द फतहचन्द जी जैन सुपुत्री चि. राधा रानीके साथ गत ता. ७ दिसम्बरका जैन विवाह विधिसे सानन्द सम्पन्न हुआ। इस विवाहकी खुशीमें डा० साहबने ३६१) रु. दानमें निकाले, जिनमेंसे ११.) रु. इटावाके जैन मन्दिरोंको (अलावा छत्र- चवरादि सामानको) दिये गये, शेष २११) ह. निम्न जैन संस्थाओं तथा मन्त्रों को भेंट किये गये:
२०१) वीरसेवामन्दिर सरसावा-दिल्ली, जिसमें ५०) रु० 'अनेकान्त' की सहायतार्थ शामिल है। १५)सरी संस्थाएँ-श्री महावीरजी अतिशयक्षेत्र, स्याहाद महाविद्यालय काशी, ऋषभब्रह्मचर्याश्रम मथुरा.
उ० प्रा० दि० गुरुकुल हस्तिनागपुर, बाहुबलि ब्रह्मचर्याश्रम बाहुबली (कोल्हापुर), जैन कन्या पाठशाला
सरसावा समन्तभद्र विद्यालय जैम अनाश्रम देहली, प्रत्येक को ५) रुपये। ११) अनेकान्त भिर दूसरे पत्र-जैन मित्र, जैन सन्देश, अहिंसावाणी, प्रत्येक को १) रुपये।
वीरसेवामन्दिरको जो २०१) रुपयाकी सहायता प्राप्त हुई है उसके लिये डाक्टर साहब धन्यवाद के पात्र हैं।
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