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विषय-सूची
साधु-स्तुति ( कविता ) - बनारसीदास
सामिल प्रदेशों में जैन धर्मावलम्वी
श्री प्रो० एम० एस० रामस्वामी आयंगर, एम० ए० २१६ संशोधन
हिन्दी जैन साहित्य में तत्वज्ञान -
[ कुमारी किरणबाला जैन
समयसार के टीकाकार विद्ववर रूपचन्द ती
[ अगरचन्दजी नाहटा
पृष्ठ २१५
Jain Education International
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ता २० दिसम्बर शनिवार के दिन वीरसेवा मन्दिर के तत्वावधान में श्राचार्य श्री १०८ नमिसागरजीका दीक्षा समारोह कलकत्ता विश्वविद्यालय के इतिहासज्ञ श्री डा० कालीदास जी नाग एम. ए. डी. लिट् मेम्बर कौन्सि ल आफ स्टेट की अध्यक्षता में अहिंसा मंदिर नं० १ दरियागंज देहली में सम्पन्न हुआ । देहलीकी स्थानीय जनता के अतिक्ति हांसी, मेरठ, मवाना, रोहतक, पानीपत, आदि स्थानोंसे भी बहुत बड़ी संख्या में साधर्मीजन पधारे थे ।
श्री मोहन लाल जी कठोतिया पं० जुगल किशोरजी मुख्तार, पं० दरबारीलाल जी न्या० सुकमालचन्द जी मेरठ, पं० शीलचन्द जी मवाना श्रादिने स्वयं उपस्थित होकर अपनी श्रद्धांजलियाँ अपित कीं । ला० राजकृष्णजी ने महाराज श्री के जीवनका व अध्यक्ष डा. कालीदासपरिचय कराया । पं० धर्मदेवजी जैतलीका
नागका
अहिंसा और जन संस्कृतिका प्रसार[ अनन्त प्रसाद जैन
कान्त वर्ष १२ किरण २ के पृष्ठ ४७ में प्रकाशित ४२५) रुपये के दो नये पुरस्कार नामक विज्ञप्तिको १५ वीं पंक्ति में 'और' के भागे – ' दूसरा लेख ६० पृष्ठों या दो हजार पंक्तियोंसे कमका नहीं होना चाहिये', ये वाक्य छपने से छूट गया था, जिसका अभी हाल में पता चला है । श्रतः विद्वान लेखक उक्त वाक्य छूटा हुआ। समझ कर
हमारी तीर्थ यात्रा के संस्मरण
[ परमानन्द जैन शास्त्री
दीक्षा समारोह
साहित्य परिचय और समालोचन
[ परमानन्द जैन शास्त्री
पुरस्करणीय लेखोंकी समय वृद्धि
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२३१.
भाषण अत्यन्त प्रभावक हुआ और उन्होंने बौद्धधर्म और वैदिकर्मके साथ जैनधर्मकी तुलना करते हुए उसकी महत्ता पर प्रकाश डाला। अध्यक्ष महोदयने भी अपने भाषण में जैनधर्मकी हिंसाको विश्व शान्तिका उपाय बतलाते हुए विश्वका प्रिय धर्म बतलाया । डाक्टर साहबने जनताका ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि इसी प्रसिद्ध स्थान पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधीने स्वतंत्रता दिलाई। और मैं आशा करता हूँ कि जैनधर के सिद्धांत व आचार्य श्री का उपदेश श्रात्म-स्वतंत्रताका प्रतीक होगा । श्राचार्य महाराजने भी अपने भाषण में जैन संस्कृति रक्षा और जैनइतिहासकी आवश्यकता पर प्रकाश डाला । और उन्होंने कहा कि सच्चा दीक्षा समारोह साहित्योद्धार से ही सार्थक हो सकता है ।
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जय कुमार जैन
उसकी पूर्ति करते हुए तदनुकूल अपने निबन्धको लिखने की कृपा करें । इन निबन्धों को भेजने की अन्तिम अवधि ३१ दिसम्बर तक रक्खी गई थी। किन्तु अब उसमें दो महीने की वृद्धि करदी गई है। अतः फरवरी सन् १९५४ के अन्त तक निबन्ध श्रा जाना चाहिये ।
प्रक. 'अनेकान्त'
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