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________________ किरण ५] हमारी तीर्थयात्राके संस्मरण [१६७ पड़ा है। यह पहाड़ पहले दिगम्बर सम्प्रदायके कब्जे में ही तीसरी टोंकसे आगे चलनेपर एक दम उतार पाता है था और वही इसका प्रबन्ध करते थे। इनकी अस्त व्यस्तता नीचे पहुँचने पर जहाँ कुछ समभाग प्राजाता है, वहांसे और असावधानीही उसमें निमित्त कारण है। इनकी बाईं ओर चौथी टोंक पर जानेका पगडंडी मार्ग प्राता है। प्राचीन सामग्री विद्वेशवश नष्ट-भ्रष्ट करदी गई हैं। इस टोकपर चढ़नेके लिये सीढ़ियां नहीं हैं, इस कारण गिरनारजीके तीर्थयात्रा स्थल चढ़ने में बड़ी कठिनाई होती है, बड़ी सतर्कता एवं सावधानी से चढ़ना होता है जरा चूके कि जीवनका अन्त समझिए। तलहटीसे दो मीलकी दूरी पर एक बड़ा दरवाजा इसीसे कितनेही लोग चौथी टोककी नीचेसे वंदना करते श्राता है उससे कहीं ४० कदम पर दाहिनी ओर एक हैं। टोंकके ऊपर काले पाषाण पर नेमिनाथकी प्रतिमा सरकारी बगला है, इसमें एक दुकानदार रहता है इसके तथा दूसरी शिलापर चरण अंकित हैं, जिस पर संवत् वाजूमें दिगम्बर जैन धर्मशाला है । जिसमें एक पुजारी १२४४ का एक लेखभी उत्कीर्ण किया हुआ है। पर्वतकी और एक सफाई करने वाला रहता है पासमें श्वेताम्बर यह शिखर अत्यन्त ऊँची है, इस परसे चारों ओरका धर्मशाला है । यहां से सीधी सड़क चलने दृश्य बड़ाही सुन्दर प्रतीत होता है। परन्तु जब पर दाहिनी ओर एक छोटा सा दरवाजा मिलता है नीचेकी ओर अवलोकन करते हैं तब भयसे शरीर उससे करीब १२७ मीढ़ी चढ़ने पर दाहिनी ओर एक कांप जाता है। कम्पाउन्डके अन्दर तीन दिगम्बर मान्दर हैं बाई ओर नीचे श्वेताम्बर मंदिर हैं और इन्हीं दिगम्बर मन्दिरोंके उस सम भूभागसे आगे चलने पर कुछ चढ़ाई नीचे राजुलकी गुफा है। अस्तु, मन्दिरोंसे १०५ सीढ़ी आती है उसे तय कर यात्री पांचवीं टोंक पर पहुँचता चढ़ने पर 'गोमुखीकुण्ड' मिलता है। यहां कम्पाउन्डके है। इस टोंक पर भगवान नेमिनाथके चरण हैं, एक अन्दर नर कुण्डके ऊपर ताकमें चौबीस तीर्थंकर भगवानके पाषाणकी मूति भी है जो कुछ घिस गई है। यहीं पर चरण हैं। यह कुण्ड हिन्दू भाइयोंका है। इस कम्पाउन्डमें नेमिनाथके गणधर वरदत्तका निर्वाण हुश्रा है । हिन्द महादेवके मन्दिर हैं। यह सब स्थान पहली टोंक कहा भाई नेमिनाथके चरणोंको दत्तात्रयके चरण कह कर पूजने जाता है। इस गोमुखीकुण्डके पाससे उत्तरकी ओर हैं और मुसलमान मदारशा पीरको तकिया कहते हैं। इस सहसाम्रवनके जानेका मार्ग भी आता है। प चवीं टोकसे ५-७ सीढ़ी नीचे उतरने पर संवत् ११०८ प्रथम टोकसे आगे चलने पर गिरनार पर्वतकी चोटी का एक लेख मिलता है जैनी यात्री इसी टोंकसे नीचे पर बाई भोरको अम्बादेवीका एक बड़ा मन्दिर बना हुआ उतर कर वापिस दूसरी टोंक पर जाते हैं और वहां से वे है । इसके पीछे चबूतरा पर अनिरुद्ध कुमारके चरण हैं। सहसाम्रवन होते हुए तलहटीकी धर्मशाला में आ जाते हैं। हिन्दू भाई इसे अम्बामाताको रोंक कहते हैं। हम लोग यहां पर ६ दिन ठहरे, तीन यात्रएं की। एक _____ यहांसे भागे चलने पर एक तीसरी टोंक पाती है। दिन मध्यमें झूनागढ़ शहर भी देखा और मन्दिरोंके दर्शन इस पर शम्भूकुमारके चरण हैं। हिन्दू लोग इसे गोरख किए, अजायब घर भी देखा। नाथको टोंक बतलाते हैं। यहांसे हम लोग पुनः राजकोट होते हुए सोनगढ़ पहुँचे। अनेकान्त समाजका लोकप्रिय ऐतिहासिक और साहित्यिक पत्र है उसका प्रत्येक साधर्मीको ग्राहक बनना ओर बनाना परम कर्तव्य है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527319
Book TitleAnekant 1953 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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