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________________ १६०] अनेकान्त [किरण ५ भाषामें और एक प्राकृत भाषामें रचा था। जैमेन्द्र महा. लाक्षणिक-ग्रंथों में हेमचन्द्राचार्यकृत 'काम्यानुशासन वृत्ति 'जेनेन्द्र प्रक्रिया', 'कातन्त्र रूपमाला' और 'शाकटा- उल्लेखनीय है। कथा साहित्यमें प्राचार्य हरिषेणविरचित यन व्याकरण' मादि सुन्दर व्याकरण ग्रन्थ है। शाकटायन 'कथाकोष' अत्यन्त प्राचीन है । 'पाराधनाकथाकोष' व्याकरण पाणिनीसे पूर्वका है। पाणिनीने अपने व्याकरण- 'पुण्याश्रव कथाकोष' उद्योतन सूरि विरचित 'कुवलयमाला' में शकटायनके सूत्रका स्वयं उल्लेख किया है। हरिभद्र कृत, समराइच्य कहा, और पादलिप्तसूरिकृत अलंकारमें 'अलंकार चिन्तामणि' और वागभट्ट कृत 'तरंगवती कहा' आदि सुन्दर कथा ग्रन्थ हैं। कुवलय'वागमहालंकार' है। कोषों में 'अभिधान चिन्तामणि'. माला, प्राकृत भाषाका उच्च कोटिका ग्रन्थ है। प्रस्तुत 'भनेकार्थ संग्रह', 'नाममाला', 'निघंटुशेष', 'अभिधान ग्रन्थका जैन-साहित्य में वही स्थान है, जो स्थान भारराजेन्द्र', 'पाइयसद्दमहण्णव' तथा 'विश्वलोचन-कोष' तीय साहित्यमें उपमितिभवप्रपंच कथा' का है। प्रादि अनुपम प्रन्य है। पाद-पूर्ति काम्योंकी रचना भी प्रबन्धोंमें चन्द्रप्रभसूरिकृत प्रभावकचरित, मेरुतुगजैन-साहित्यकी प्रमुख विशेषता है। कृत, प्रबन्ध चिन्तामणी, राजशेखकृत, प्रबन्धकोष, तथा जिनप्रभ सूरिकृत विविधतीर्थकल्प, दृष्टव्य है। . जैन-साहित्यमें स्तोत्रोंकी भी रचना की गई । महाकवि भनंजय विरचित 'विषापहारस्तोत्र और कुमुदचद्रप्रणीत' विशेषत: जैन-साहित्य दो भागोंमें विभक्त किया जा सकता है-लौकिक और धार्मिक साहित्य । लौकिकसे कल्याणमन्दिरस्तोत्र आदि ग्रन्थ साहित्यकी दृष्टिसे उच्च तात्पर्य उस साहित्यसे है जिसमें साम्प्रदायिकता बन्धनोंसे कोटिके हैं। स्वतंत्र होकर ग्रन्थ रचना की जाती है । धार्मिक साहित्य जैन-साहित्यमें चम्पू काव्योंको भी प्रधानता रही। वह है जिसमें इस लोकके अतिरिक्त परलोककी ओर भी बह जैन-साहित्यकी एक प्रमुख विशेषता है । जंना- संकेत रहता है। चार्योंने इस क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया है। सोमदेवकृत जै न साहित्य में ऐसे अनेक ग्रन्थ हे जिन्हें देखकर 'यशस्तिलकचम्पू', 'हरिचन्द विरचित', 'जीवधंरचम्पू' सरलतापूर्वक कोई जैनाचार्योंकी कृति नहीं कह सकता है। 'महदास प्रणीत' 'पुरुदेवचम्पू' आदि ग्रन्थ संस्कृत भाषा सोमदेव-कृत 'नीतिवाक्यामृत' इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। के सुन्दर ग्रन्थ हैं। यह एक 'नीतिविषयक ग्रन्थ' है। इसमें एक अध्याय अर्थसैद्धान्तिक तथा नीतिविषयक ग्रन्थोंमें निम्नांकित शास्त्रका भी है। दूसरा ग्रन्थ है 'दोहापाहुब'। यह राप्रन्थोंकी प्रधानता रही स्यवादका एक सुन्दर अपभ्रंशभाषाका ग्रन्थ है। षट्खण्डागम, कषायपाहुड, 'तस्वार्थसूत्र , 'सर्वार्थ- गणित ज्योतिष में भी जैन साहित्य पर्याप्त मात्रामें सिद्धि', 'राजवार्तिक', 'गोम्मटसार'. 'प्रवचनसार' उपलब्ध होता है। उसमें जैनाचार्योंने अनेक अनोख्ने 'पंचास्तिकाय',आदि सैद्धान्तिक ग्रन्थ हैं, तथा अमितगति नियमों द्वारा ज्योतिष विभागको सम्पन्न किया है। कृत 'सुभाषित रत्नदोह', पद्मनन्दिग्राचार्य कृत 'पद्मनन्दि इसके लिये 'तिलोयपण्णत्ती', 'त्रिलोकसार', 'जंबूदीव पंचविंशतिका' और महाराज अमोघवर्षकृत 'प्रश्नोत्तर पण्णत्ती', 'सूर्यपण्णत्ती', आदि उच्च को टके प्रथ रत्नमाला' श्रादि नीतिविषयक ग्रन्थ है। . हैं। महावीराचार्य द्वारा रचित 'गणितसारसंग्रह' भी अपने ‘पद्य अन्योंके साथ साथ जैन साहित्यमें गद्य ग्रन्थोंकी समयकी एक अपूर्व कृति है। यह एक अद्वितीय ग्रन्थ है। भो प्रधानता रही। बादीभसिंहकृत 'गद्यचिंतामणि' और गणित विषय की १-२ उपयोगिता पर दृष्टि डालते हुए धनपालकृत 'तिलकमंजरी' जैसे उच्च कोटिके गद्य ग्रन्थ जैन गणित साहित्य पर प्रोफेसर दत्तमहाशयके संस्कृत भाषामें रचे गये। विचार निम्नलिखित हैं। नाटकों में 'मदनपराजय', 'ज्ञानसूर्योदय' विक्रान्त- "What is more important for the कौरव, मैथली कल्याण. अंजनापवनंजय. नलावलाम, general history of mathematics certain राघवाम्युदय, निर्भयन्यायोग, और हरिमर्दन आदि methods of finding solutions of raitional उल्लेख योग्य हैं। triangles, the credit for the discovery Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527319
Book TitleAnekant 1953 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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