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किरण ३]
उत्तर कन्नड़का मेरा प्रवास
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कलाकी दृष्टिसे बुरी नहीं हैं। हाँ ये दोनों मंदिर अनंत- लेख, सुन्दर मूर्तियाँ आदि अब 'कन्नड़ संशोधन मंदिर' ' नाथ मंदिरके नामसे प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरोंके जीर्णोद्धार- धारवाड़में बम्बई सरकारकी ओरसे रक्षित हैं। की आवश्यकता है. यहाँ पर इस समय पुजारीके मकानके (६) बिलगि-इसका प्राचीन नाम श्वेतपुर है वह अलावा जैनोंका पिफ एक मकान और है यहाँ पर भी सिद्धापुरसे पश्चिम पांच मील पर है । यहांके महत्वपूर्ण कई शिलालेख मिले हैं। ये बम्बई सरकारकी अोरसे प्राचीन जैनस्मारकोंमें पार्श्वनाथमंदिर ही प्रमुख है । प्रकट हो चुके हैं।
यह मंदिर कलाकी दृष्टिसे विशेष उल्लेखनीय है। द्राविड़ (५) भट्रकल-इसका प्राचीन नार मणिपुर है। ढंगका यह मंदिर पश्चिम मैसरके द्वार समुद्र (हलेबीडु) यह नगर होनावर तालुकमें होन्नावरसे २४ मील दक्षिण स्थित विष्णु मंदिरसे मिलता है। इसकी नक्काशीका काम अरब समुद्र में गिरने वाली एक नदीके मुहाने पर बसा वस्तुतः दर्शनीय है। कहा जाता है कि बिलिगि नगरको हुआ है। चौदहवीं और सोलहवीं शताब्दीसे यह व्यापार- जैन राजा नरसिंह के पुत्रने बनाया था ! महाराजा नरसिंह का केन्द्र रहा है । कप्तान हेमिलटनने इस नगरका बिलिगिसे पूर्व चारमीज पर होसूरमें लगभग ई. सन् उल्लेख गौरवके साथ किया है। १८वीं शताब्दीके प्रारंभ- १९६१ में राज्य करता था। कहते हैं कि उपयुक्त पश्च
ब्राह्मणाक बहुतस मंदिर थे । जन- नाथ मंदिग्को इस नगरको बसाने वाले राजाने ही बनवाण मंदिरोंकी रचना अधिक प्राचीन कालका है । वहाँक जैन- था। यहां पर भी महत्वपर्ण कई शिलालेख हैं। ये शिला मंदिरों में चंद्रनाथ मंदिर विशेष उल्लेखनीय है यह सबसे
लेख भी बम्बई सरकारकी पोरसे प्रकट हो चुके हैं। श्रीयुत् बड़ा है, साथ ही साथ सुन्दर भी । मंदिर एक खुले मैदान
एम. गणपतिरावके मतसे शा. श. १४०० से १६८१ में स्थित है और उसके चारों तरफ एक पुराना कोट है तक बिलिगिमें जैनोंका ही राज्य था। यहांके शिलालेखोंइसकी लम्बाई १०२ फुट तथा चौड़ाई ४० फुट है। से सिद्ध होता है कि ऐलूर ग्राममें पार्श्वनाथ देवालयको
इसमें अग्रशाला, भोग मण्डष तथा खास मंदिर हैं। बनवाने वाला राजा कल्लप्प (चतुर्थ), बिखिगि में पार्श्वमंदिरमें दो खन हैं। प्रत्येक खनमें तीच तीन कमरे हैं। देव जिनालयको निर्माण कराने वाला अभिनव हिरिय इनमें पहले भर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि और भैरव श्रोडेय (अष्टम) और इसी बिलिगिमें शांतिनाथ पार्श्वनाथकी मूर्तियां विराजमान थीं। परन्तु अब वे मूर्तियां देवालयको स्थापित करने वाला राजा तिम्मरण ये तीनों यहां पर नहीं हैं। भोग मण्डप की दीवालोंमें सुन्दर बिलिगिके जैन शासक थे । साथ ही साथ यहांके राजा खिड़कियां लगी है। अग्रशाला का मंदिर भी दो खनका रंग (त्रयोदश). राजा हम्मडि धद्र (चतुर्दश) और राजा है। प्रत्येकमें दो कमरे हैं, जिनमें ऋषभ, अजित, शंभव, रंगप्प पंचदश) भी जैन धर्मानुयायी थे और इनके द्वारा अभिनन्दन तथा चन्द्रनाथ की 'तिमाएँ विराजमान थीं। जैन देवालय, मठ आदि निर्माण कराये गये थे । उपयुक्त ये भी अब वहाँ पर नहीं हैं। सामने १४ वर्गफुट चबूतरे सभी शासकोंदे इन जिनायतनोंको यथेष्ट दानभी दिया पर २१ फुट ऊँचा चौकोर गुबज वाला पाषाणमय सुंदर था ! बिलिगिके शासकोंके राजगुरु संगीतपुरके भट्टाकलंक मानस्तंभ खड़ा है। मंदिरके पीछे १६ फुट लंबा ब्रह्मयक्ष- थे । यद्यपि उत्तर कन्नड़में मंकि, होन्नावर, कुमटा और का खंभा भी है । इस मंदिरको जट्टप्प नायकने बनवाया मुरडेश्वर आदि और भी कई स्थान हैं जिनमें जैन स्मारक था। इसकी रक्षाके लिये निर्माताके द्वारा उस समय बहुतसी पाये जाते हैं और जिनका उल्लेख आवश्यक है । पर जमीनें दी गई थीं, जिनको टीपू सुलतानने ले लिया है। लेख बूद्धिके भयसे इस समय उन स्थानोंके सम्बन्धमें शांतिश्वर मंदिर भी लगभग इस मंदिरके समान था। कुछ भी न लिख कर, यह लेख यहाँ पर समाप्त किया पर अब वह मुसलमानोंके हाथ में है। पार्श्वनाथ मंदिरमें जाता है। अन्तमें मैं भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाके इस समय मूर्तियां अवश्य हैं। यह मंदिर ५८ फुट लंबा ___ महामन्त्री श्रीमान् परसादीलालजी पाटनी दिल्लीको
और १८ फुट चौदा है। यह शा० श. १४६५ में बना धन्यवाद देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ जिनकी था। यहां बहुतसे शिलालेख मिले हैं। इन्हें बम्बई कृपासे गत '५२ के अप्रैल मासमें इन स्थानोंका दर्शन सरकारने प्रकाशित कराया है। इस प्रांतके अनेक शिला- कर सका।
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