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________________ अनेकान्त किरण ३ मूल कारण क्या है-हम कहाँ से पैदा होते हैं, किसके मनुष्य भव, सद्धर्म उपदेश, सद्भद्धा और मोक्ष सहारे जीते हैं। हमारा संचालन कौन करता है। कौन पुरुषार्थ, यह बात सोचकर मनुष्यको चाहिये कि संयमहमारे सुख दुःखोंकी व्यवस्था करता है। का पालन करे, ताकि वह कर्मोंका नाश कर सिद्ध अवस्था इन अनेक प्रकारके दार्शनिक योगियोंका बाह्यरूप को पा सके।। विभिन्न परिस्थिति और प्रभाकोंके कारण कुछ भी रहा हो, काल बराबर बीत रहा है, शरीर प्रतिक्षण सीण हो परन्तु यह निर्विवाद है कि इन सबकी आत्मा एक ही थी रहा है.इसलिए प्रमादको छोड़ और जाग, यह मत सोच जो श्रमणसंस्कृतिसे ओत-प्रोत थी। यह सभी श्रमण प्रायः कि जो श्राज करना है यह कल हो जायगा। चूकि सांसा अध्यात्मवादी थे । ये अपने त्यागबल, तपोबल, ज्ञानबल रिक जीवन अनित्य है न मालूम इसका कब अन्त हो जाय, और आचारबलके कारण सभी भारतीय जनता द्वारा इसलिए शरीर छिन्न भिन्न होनेसे पहले इसे प्रात्मसाधना विनय और पूजाके योग्य माने जाते थे और तो और में लगाना चाहिये । देवलोग भी सदा उन जैसा ही बननेकी उस्कृट अभिलाषा शरीरसे विदा होनेके दो मार्ग हैं, एक अपनी इच्छाके रखते थे। विरुद्ध और दूसरा अपनी इच्छाके अनुकूल । पहला मार्ग ___ इस प्रकारके परिव्राजक मुनि इस देशकी स्थायी मूढ मनुष्योंका है और इसका बार बार अनुभव करना सम्पत्ति थे। यवन यात्री मैगस्थनीजसे लेकर-जो ई० पड़ता है। दूसरा मार्ग पण्डित लोगोंका है जो शीघ्र ही पूर्वकी चौथी सदीमें यहाँ आया था और जिसने जिनो- मृत्युका अन्त कर देता है३ । सोफिस्ट (Gymno Sophist) अर्थात् जैन फिला- जो आदमी विषम वासनामोंमें लिप्त हैं, जो वर्तमान सफरके नामसे इनको इंगित किया है-जितने भी विदेशी जीवनको ही जीवन मानते हैं, जो मोहग्रस्तहुए पाप पुण्य यात्री और अभ्यागत यहाँ आये सभीने इन योगियोंके के फलोंको नहीं निहारते जो स्वार्थसिद्धि, विषयपूर्ति, विशुद्ध और चमत्कारिक जीवन तथा इनके उदार धनोपार्जन, सुख शीलताके लिए हिंसा, अनीति पापका सिद्धान्तोंका उल्लेख किया है। प्राजभी यह देश इस व्यवहार करते हैं, वे मृत्युके समय दुख शोकको प्राप्त होते प्रकारके योगियोंसे सर्वथा खाली नहीं है और प्राजभी हैं, उन्हें मृत्यु भयानक दिखाई देती है। वे उससे कांपते अनेक विदेशी उनकी खोज में यहां पाते रहते हैं। महर्षि हैं। उनकी मृत्यु उनके इच्छाके विरुद्ध है। रमन और महर्षि अरविन्दघोष अभी हाल में ही भारतके जो आत्मनिष्ठ हैं, आत्म संयमी हैं, प्रमाद रहित हैं, महायोगी हो गुजरे हैं। आत्म साधनामें पुरुषार्थी हैं जो मासके दोनों पक्षोंके पर्व__ भारतीय योगियोंकी शिक्षाएं दिनों में प्रोषधोपवास करते हैं, वे मृत्युके समय शोक विषाद को प्राप्त महीं होते, वे उसका स्वागत करते हुए सहर्ष ये योगिजन गाँव गाँव और नगर नगरमें विचरते हुए शरीरका त्याग कर देते हैं. यह पण्डित मरण है । जिन शिक्षाओं द्वारा लोक जीवनको उन्नत, स्वतन्त्र, और जब सिंह मृगको श्रा पकड़ता है तो कोई उसका सुख सम्पन्न बनाते थे, उनका अनुमान निम्न उदाहरणोंसे सहायक नहीं होता, वैसे ही जब मृत्यु अचानक पाकर किया जा सकता है। मनुष्यको पकड़ लेती है तब कोई किमीका सहायक नहीं जीव अजर अमर है, ज्ञान धन है, आनन्दमय है, होता। माता, पिता, स्वजन, परिजन, पुत्र कलत्र बन्धुजन अमृत मय है और यह लोक परिवर्तनशील और अवित्य सब हाहाकार करते ही रह जाते हैं। संसारमें ये चार पदार्थ पाना बहुत दुर्लभ है-. १. उत्तराध्ययन सूत्र +दश वैकालिक सूत्र १.१. *अरब और भारतके सम्बन्ध, हिन्दुस्तानी ऐकैडमी प्रयाग पृ. १७८-१८८. ® डा. पालब्रटन-गुप्त भारतकी खोज, अनुवादक-श्री ५.१७-२२ वेंकटेश्वर शर्मा शास्त्री वि० सम्वत् १९६६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527317
Book TitleAnekant 1953 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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