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________________ श्रीमहावीरजी में मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजीका सातवीं प्रतिमा ग्रहण और ५१२५) रु० का दान तथा वीरशासन जयन्ती समाज को यह जानकर अत्यन्त खुशी होगी कि समाजके वयोवृद्ध साहित्य तपस्वी आचार्य जुगुल - किशोर मुख्तार भगवान महावीर की उस विशिष्ट मूर्ति कं सन्मुख स्वामी समन्तभद्र के रत्नकरण्ड श्रावकाचार में. प्रदर्शित सम्म प्रतिमाके व्रतोंको धारण कर नैष्ठिक श्रावक हुए हैं । यद्यपि वे पहले से ही ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करते थे परन्तु वह उस समय प्रतिमा रूपमें नहीं था । व्रत ग्रहण करने के पश्चात मुख्तार साहबने परिग्रह परिमाणव्रतकी अपनी सीमाको और भी सीमित करने के लिए वीरसेवामन्दिर ट्रस्टको दिये गये दान के अतिरिक्त अपने निजी खर्च के लिए रक्खे हुए नमें से भी पाँच हजार एक सौ पच्चीस रुपयों के दानकी घोषणा की। जिसमें से पाँच हजार एक रुपया कन्याओं को छात्रवृत्ति के लिए, १०१) वीर सेवा मन्दिर बिल्डिंग फंड में, ११) तीर्थक्षेत्र कमेटी, २) औषधालय महावोरजीको और पांच पांच रुपया दोनों महिला आश्रमको प्रदान किये । इस तरह यह उत्सव सानन्द सम्पन्न हुआ । मुख्तार साहबका कार्य आत्मकल्याणकी दृष्टिसे समयोपयोगी और दूसरोंके द्वारा अनुकरणीय है । वोर शासन जयन्ती इस वर्षकी वोरशासन जयन्तीका उत्सव श्री महावीरजो (चांदनगांव) में सानन्द मनाया गया । तीथ क्षेत्र कमेटी की ओरसे लाउडस्पीकर वगैरहका सब सब प्रबन्ध था और कमेटी के मंत्री सेठ वधीचन्दजी गंगवाल और सोहनलालजी उत्सव में उपस्थित थे । उत्सव में विभिन्न स्थानोंसे अनेक व्यक्ति पधारे थे जिनमें कुछ स्थानोंके नाम नीचे दिये जाते हैं :जयपुर, रेवाड़ी जिला गुड़गांव, व्याजर, देहली, सरसावा, सहारनपुर, नानौता, एटा, फिरोजाबाद, आगरा, ललितपुर (झांसी) गुना. खेमारी जि० उदयपुर और मेनपुरी जि० एटा आदि स्थानों के सज्जन सकुटुम्ब पधारे थे । इसके अतिरिक्त स्थानीय मुमुक्षु जैन महिलाश्रमकी सचालिका श्रीमती वु० कृष्णावाई जी सपरिवार और कमलाबाई आश्रमकी छात्राएँ और पाठिका एँ उसमें शरीक थीं । मुमुक्षु महिलाश्रमकी छात्राओंने ता० २७की रात्रिको वीर शासन जयन्तोका का उत्सव मनाया था और मुख्तार सा० का अभिनंदन भी किया था उत्सव ता० २६ और २७ को मुख्तार सा० और सेठ छदामीलालजीकी अध्यक्षता में दोनों दिन मनाया गया था, ता० २७ को प्रातःकाल प्रभातफेरी और फंडाभिवादन के वाद भगवान महाarrant पूजनकी गई थी। दोपहर को दोनों ही दिन सभाएँ हुई जिनमें विद्वानोंके अनेक सारगर्भित भाषण हुए जिनमें भगवान महावीरकं शासन और उसकी महत्ता पर प्रकाश डालते हुए उस पर स्वयं आचरण करने की ओर संकेत किया गया। रात्रि में ला० राजकृष्णजी जैनने शास्त्र सभाकी और उसमें व्रत नियम ग्रहण करने तथा दीक्षा लेने की आवश्यकता, उसका स्वरूप तथा महत्ताका विवेचन किया । परमानन्द जैन अनेकान्तका 'पर्युषणांक' कान्तके प्रेमी पाठकों और ग्राहकोंको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इस वर्ष अनेकान्तका 'पर्यापणांक' निकालने की योजना हुई है । इस में दशलक्षणधर्म पर अनेक विद्वानोंके महत्वपूर्ण लेख रहेंगे । अतः लेखक विद्वानों और कवियोंसे सादर अनुरोध है कि वे अपनी अपनी महत्वपूर्ण रचनायें शीघ्र भेज कर अनुगृहीत करें । क्योंकि इस अङ्कको १२ सितम्बर तक प्रकाशित करने का चार है। साथ ही विज्ञापन दाता यदि अपने विज्ञापन शीघ्र ही भेज सकें तो उन्हें भी स्थान दिया जा सकेगा विज्ञापनके रेट पत्र व्यवहारसे तय करें । निवेदक- परमानन्द जैन प्रकाशक 'अनेकान्त' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527317
Book TitleAnekant 1953 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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