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________________ किरण ३] हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण यहाँ अनेक ग्रन्थ लिखे गए हैं, शास्त्रभण्डार भी मण्डपमें लगे हुए शिलालेखसे सिर्फ इतना ही ध्वनित होता अच्छा है। संवत् १७०१ और १७०२ में भट्टारक सकल- है कि इस मन्दिरका संवत् १४३१में वैशाख सुदि ३ अक्षय कीर्तिके कनिष्ट भ्राता ब्रह्मजिनदासके हरिवंशपुराणकी तृतीया बुधवारके दिन खडवाला नगरमें बागद प्रान्तमें प्रतिलिपि की गई, तथा सं० १७६ में त्रिलोक दर्पण' स्थित काष्ठासंघके भट्टारक धर्मकीर्तिगुरुके उपदेशसे शाह नामका ग्रन्थ लिखा गया है। ज्ञान भण्डारमें अनेक ग्रन्थ बीजाके पुत्र हरदातकी पत्नी हारू और उसकेपुत्रों-पूजा इससे भी पूर्वके लिखे हुये हैं, परन्तु अवकाशाभावसे और कोता द्वारा -आदिनाथके इस मन्दिरका जीर्णोद्धार उनका अवलोकन नहीं किया जा सका। मन्दिरोंके दर्शन । कराया गया था । प्रस्तुत धर्मकीर्ति काष्ठासंघ और लाल करनेके बाद हम सब लोग उदयपुरके राजमहल देखने बागड़ संघके भट्टारक त्रिभुवनकीर्तिके शिष्य और भ. गए और महागणा भूपालसिंहजीसे दीवान खासभाममें पद्मसेनके प्रशिष्य थे भ० धर्मकीर्तिके शिष्य मलयकीर्तिने मिले । महाराणाने बाहुवलीको परोक्ष नमस्कार किया। संवत् १४६३में भ०सकलकीर्तिके मूलाचारप्रदीपकी प्रशस्ति उदयसागर भी देखा, यहाँ एक जैन विद्यालय है. ब्र. लिखी थी। इस मन्दिरमें विराजमान भगवान आदिनाथकी चाँदमलजी उसके प्राण हैं। उनके वहाँ न होने से मिलना यह सातिशय मूर्ति बड़ौदा बटपक के दिगम्बर जैनमन्दिर नहीं हो सका। विद्यालयके प्रधानाध्यापकजीने २ छात्र से लाकर विराजमान की गई है। मूर्ति कलापूर्ण और काले दिये, जिससे हम लोगोंको मन्दिरोंके दर्शन करने में सुविधा पाषाणकी है वह अपनी अक्षुण्य शान्तिके द्वारा जगतके रही, इसके लिए हम उनके अाभारी हैं । उदयपुरसे हम जीवोंकी अशान्तिको दूर करनेमें समर्थ है। मूर्ति मनोग्य लोग ३॥ बजेके करीब ४० मील चलकर ६॥ बजे केश और स्थापत्यकलाकी दृष्टिसे भी महत्वपूर्ण है। ऐसी रियाजी पहुंचे । मार्गभीलोंकी १ चौकियाँ पड़ी, उन्हें कलापूर्ण मूर्तियाँ कम ही पाई जाती हैं। खेद इस बातका एक पाना सवारीके हिसाबसे टैक्स दिया गया। यह है कि जैन दर्शनार्थी उनके दर्शन करनेके लिये चातककी भील अपने उस एरिया में यात्रियोंके जानमालके रक्षक होते भांति तरसता रहता है पर उसे समय पर मूर्तिका दर्शन हैं। यदि कोई दुर्घटना हो जाय तो उसका सब भार उन्हीं नहीं मिल पाता। केवल सुबह ७ बजे से ८ बजे तक लोगों पर रहता है । साधु त्यागियोंसे वे कोई टैक्स नहीं दिगम्बर जैनोंको १ घंटेके लिये दर्शन पूजनकी सुविधा मिलती हैं। शेष समयमें वह मूर्ति श्वेताम्बर तथा सारे लेते । यह लोग बड़े ईमानदार जान पड़ते थे। दिन व रातमें हिन्दुधर्मकी बनाकर पूजी जाती है और केशरिया अतिशयक्षेत्रके दर्शनोंकी बहुत दिनों से अभिलाषा थी, क्योंकि इस अतिशय क्षेत्रकी प्रसिद्धि एवं १ ......... [येन स्वयं बोध मयेन] महत्ता दि. जैन महावीर अतिशय क्षेत्रके समान ही लोक २ लोका आश्वासिता केचन वित्त कार्ये [प्रबोधिता केच-] में विश्रुत है । यह मगवान आदिनाथका मन्दिर है, इस न मोक्षमा ग्रे (गें तमादिमाथं प्रणामामि नि [त्यम] [श्री विक्रमन्दिरमें केशर अधिक चढ़ाई जाती है यहां तक कि बच्चोंके ४ दित्य संवत् १४३१ वर्षे वैशाख सुदि अक्षय [तृतिया] तोलकी केशर चढ़ाने और बोलकबूल करनेका रिवाज प्रच ५ तिथौ बुध दिना गुरुवद्यहा वापी कूप प्र.. लित है इसीसे इसका नाम केशरियाजी या केशरियानाथ ६ सरि सरोवरालंकृति खडवाला पत्तने । राजश्री • ... प्रसिदिको प्राप्त हुआ है । यह मन्दिर मूलतः दिगम्बर ७ विजयराज्य पालयंति सति उदयराज सेल पा'..... सम्प्रदायका है, कब बना यह अभी अज्ञात है, परन्तु खेला सभी मज्जिनेकाय धन तत्पर पंचूली बागड प्रतिपात्राश्री बारहखड़ी हो भक्तिमय, ज्ञानरूप अविकार ॥७ है [का] ष्ठा संघे भट्टारक श्री धर्मकीर्ति गुरोपदेशेना वा भाषा छन्दनि मांहि जो, तर मात्रा लेय । १. ये साध रहा बीजासुत हरदात भार्या हारू तदंपत्योः प्रमुके नाम बखानिये, समुझे बहुत सुनेय ॥ ८ ११ पुजा कोताभ्यां श्री [ना] मे (मे) श्वर पासादस्य यह विचारकर सब जना, उर धर प्रभुकी भक्ति । जीर्णोद्धार [कृतं] १२ श्री नाभिराज वरवंसकृता वतरि कल्पद...... बोले दौलतरामसौं, करि सनेह रस व्यक्ति ॥ ६ १३ महासेवनेसुः यस्भिन सुरघ्रगणाः कि बारहखड़ी करिये भया, भक्ति प्ररूप अनूप । १४ ...."भोज स यूगादि जिनश्वरोवः ॥१॥...... अध्यातमरसकी भरी, चर्चारूप सुरूप ॥१० . (इस लेखका यह पद्य अशुद्ध एवं स्खलित है) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527317
Book TitleAnekant 1953 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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