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________________ अनेकान्त-रस-लहरी [इस स्तम्भके नीचे लेख लिखनेके लिये सभी विद्वानोंको सादर आमन्त्रण है। लेखोंका लक्ष्य वही होना चाहिये जो इस स्तम्भका प्रारम्भ करते हुए व्यक्र किया गया था अर्थात् लेखोंमें अनेकान्त-जैसे गम्भीर विषयको ऐसे मनोरंजक ढंगसे सरल शब्दों में समझाया जाय जिससे बच्चे तक भी उसके मर्मको आसानीसे जान सकें, वह कठिन दुर्बोध एवं नीरस विषय न रहकर सुगम-सुखबोध तथा रसीला विषय बन जाय-बातकी बातमें समझा जासके और जनसाधारण सहजमें ही उसका रसास्वादन करते हुए उसे हृदयङ्गम करने, अपनाने और उसके आधार पर तत्त्वज्ञानमें प्रगति करने, प्राप्त ज्ञानमें समीचीनता लाने, विरोधको मिटाने तथा लोक व्यवहारमें सुधार करनेके साथसाथ अनेकान्तको जीवनका प्रधान अङ्ग बनाकर सुख-शान्तिका अनुभव करनेमें समर्थ हो सकें। -सम्पादक ] ___ उससे आपका यह दस हजारका दानी बड़ा दानी बड़ा और छोटा दानी है । इस तरह १० हजारका दानी एककी अपेक्षासे उसीदिन अध्यापक वीरभदने दूसरी कक्षामें बड़ा दानी और दूसरेकी अपेक्षासे छोटा दानी है, जाकर उस कक्षाके विद्यार्थियोंकी भी इस विषयमें तदनुसार पाँच लाखका दानी भी एककी अपेक्षासे जाँच करनी चाही कि वे बड़े और छोटेके तत्त्वको, बड़ा और दूसरेकी अपेक्षासे छोटा दानी है। जो कई दिनसे उन्हें समझाया जारहा है, ठीक समझ अध्यापक-हमारा मतलब यह नहीं जैसा कि गये हैं या कि नहीं अथवा कहाँ तक हृदयंगम कर तुम समझ गये हो, दूसरोंकी अपेक्षाका यहाँ सके हैं, और इसलिये उन्होंने कक्षाके एक सबसे कोई प्रयोजन नहीं । हमारा पूछनेका अभिप्राय सिर्फ अधिक चतुर विद्यार्थीको पासमें बुलाकर पूछा इतना ही है कि क्या किसी तरह इन दोनों दानियों____एक मनुष्यने पाँच लाखका दान किया है और मेंसे पाँच लाखका दानी दस हजारके दानीसे छोटा और दस हजारका दानी पाँच लाखके दानीसे बड़ा दूसरेने दस हजारका; बतलाओ, इन दोनोंमें बड़ा दानी कौन है ? दानाम दानी हो सकता है ? और तुम उसे स्पष्ट करके बतला सकते हो? विद्यार्थीने चटसे उत्तर दिया-'जिसने पाँच _ विद्यार्थी-यह कैसे होसकता है ? यह तो उसी लाखका दान किया है वह बड़ा दानी है।' इसपर तरह असंभव है जिस तरह पत्थरकी शिला अथवा अध्यापकमहोदयने एक गंभीर प्रश्न किया लोहेका पानीपर तैरना। 'क्या तुम पाँच लाखके दानीको छोटा दानी और ___ अध्यापक-पत्थरकी शिलाको लकड़ीकी स्लीदस हजारके दानीको बड़ा दानी कर सकते हो ?' पर या मोटे तख्तेपर फिट करके अगाध जलमें विद्यार्थी-हाँ, कर सकता हूँ। तिराया जासकता है और लोहेकी लुटिया, नौका अध्यापक-कैसे ? करके बतलाओ ? . अथवा कनस्टर बनाकर उसे भी तिराया जासकता विद्यार्थी-मुझे सुखानन्द नामके एक सेठका है। जब युक्तिसे पत्थर और लोहा भी पानीपर तैर हाल मालूम है जिसने अभी दस लाखका दान सकते हैं और इसलिये उनका पानीपर तैरना सर्वथा दिया है, उससे आपका यह पाँच लाखका दानी असंभव नहीं कहा जासकता, तब क्या तुम युक्तिसे छोटा दानी है । और एक ऐसे दातारको भी मैं दस हजारके दानीको पाँचलाखके दानीसे बड़ा सिद्ध • जानता हूँ जिसने पाँच हजारका ही दान दिया है, नहीं कर सकते ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527268
Book TitleAnekant 1949 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1949
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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