SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देहलीमें कीर-शासन-जयन्तीका अपूर्व समारोह भारतको राजधानी देहलीमें भारतके आध्यात्मिक संत दुनिया प्रशान्त है। वह शान्तिका उपाय चाहती है। पूज्य श्री १०५ शुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णीकी अध्यक्षतामें शान्तिका सर्वश्रेष्ठ उपाय महावीरकी अहिंसा है। विदेशोंसे श्रावण कृष्णा प्रतिपदा, ता. ११ जुलाई सन् १९४६ को अहिंसाके प्रचारकी माँग प्रारही है, अहिंसाके प्रचारका रात्रिके ७॥ बजेसे १०॥ बजे तक लालमन्दिरजीके अहाते- इससे और महान् अवसर कब मिलेगा! आप दश-बीसमें वीर-सेवामन्दिर सरसावाके तत्वावधानमें धीर-शासन- लाख रुपया इकट्ठे कीजिये और एक जहाज खरीदकर जयन्तीका अपूर्व समारोह सानन्द सम्पन्न हुआ। विदेश चलिये और यहाँ पर वीर-शासनकी वास्तविक जनता चार-पाँच हजारकी तादादमें उपस्थित थी और अहिंसाका प्रचार करिये। उसमें अपूर्व उल्लास था। ला० रघुवीरसिंहजी जैनावाच मुख्तार साहबकी संस्था वीर-सेवामन्दिर वीर-शासनकी कम्पनी और जैन-जागृत-संघके सदस्योंने इस समारोहकी सेवा कर रही है, क्या आप लोग वीर-सेवामन्दिरको व्यवस्था की थी। स्थानादिका प्रबन्ध नहीं कर सकते ! यदि श्राप लोग अपने पं० मुझालालजी समगौरयाके मंगलगानके पश्चात् दैनिक खर्च से फी-रुपया एक-पैसा भी निकालें, जो स्वामी निजानन्दजीने अपने भाषणमें वीर-शासनकी महत्ता- अधिक नहीं है ता लाखा रुपया इकट्ठा ह अधिक नहीं है तो लाखों रुपया इकटठा होसकता है और को बतलाया । अनन्तर जैटली साहबने, जो दर्शन-शास्त्रके उससे धीर-शासनके प्रचारमें पूरी मदद मिल सकती है। प्रौढ विद्वान् हैं और जैनधर्मसे विशेष प्रेम रखते हैं, आप वीर-सेवामन्दिरको अपनाएँ और उसकी तन-मनभारतीय-दर्शनोंके साथ तुलनात्मकरूपसे जैनदर्शन और धनसे सहायता करें जिससे वह प्राचीन-शास्त्रोंके उद्धार उसके अहिंसा, सत्य तथा कर्म श्रादि सिद्धान्तोंका सुन्दर करनेमें समर्थ होसके। भाषण चालू रखते हुए पूज्य एवं मार्मिक विवेचन किया और बतलाया कि भारतीय- वर्णीजीने कहा कि श्राज वीर-शासनका दिवस है। आजसे दर्शनोंमें जैन-दर्शनका सबसे महत्वपूर्ण स्थान है और आप लोग मद्य, मांस और मधुके त्यागपूर्वक अष्ट मूलगुणोंमहावीरका शासन ही विरोधोंका समन्वय करनेवाला है। को धारण करनेकी प्रतिज्ञा करें। आपने भाषणके श्रादि और अन्तमें महावीरके चरणों में इसके बाद पं० राजेन्द्रकुमारजी प्रधानमंत्री दि. जैनअपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित की। पश्चात् बा. जय संघने पू.य वर्णीजीकी भावनापर जोर देते हुए कहा कि भगवानजी एडवोकेट पानीपतने अपने महत्वपूर्ण भाषणमें मुख्तार साहबने जैन-साहित्यकी बड़ी सेवा की है और धीर-शासनके प्रचारकी प्रेरणा करते हुए अपने जीवनको उसके लिये अपना सब कुछ दे दिया है। आप लोग अपनी वीर-शासनका सच्चा अनुयायी बनानेकी ओर संकेत किया। आमदनीमेंसे डेढ़ परसेन्ट निकालकर उसे धीर-सेवामन्दिरको अनन्तर वीर-सेवामन्दिरके संस्थापक पं० जुगलकिशोरजी प्राचीन-शास्त्रोंके समद्धारके लिये दे देवें। वीर-सेवामन्दिरने मुख्तारने वीर-शासनदिवसकी महत्ता और तिथिकी का जैन-संस्कृतिके संरक्षणका बड़ा कार्य किया है। इसपर न पवित्रता एवं ऐतिहासिक प्राचीनताका उल्लेख करते हुए अनेक सजनोंने उसी समय अपने नाम लिखाये। 'महावीर-सन्देश' नामकी स्वरचित कविता पढ़कर सुनाई। इस तरह वीर-शासन-जयन्तीका यह महोत्सव बड़े इसके बाद अध्यक्ष महोदय पूज्य वर्णीजीका प्रभावक भाषण प्रानन्द और उल्लासके साथ समाप्त हुआ। हुआ। आपने भगवान् महावीरके शासन-सिद्धान्तोंका स्वयं आचरण करनेकी प्रेरण हुए कहा कि श्राज ...... .......... -परमानन्द, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527268
Book TitleAnekant 1949 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1949
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy