SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १] साहित्य-परिचय और समालोचन वादिराजकृत 'यशोधर-काव्य' का परिचय दिया है टीका थी तो उसके अन्तकी प्रशस्तिके पद्य भी और लिखा है कि इसमें स्वोपज्ञ संस्कृत टीका भी उद्धृत कर दिये जाते जिससे फिर शंकाको कोई है और विशेषद्वारा उस टीकाको क्षेमपुरके नेमिनाथ- स्थान नहीं रहता । अस्तु, दोनों ग्रन्थोंकी चैत्यालयमें रचे जानेका भी समुल्लेख किया है। ३२ पत्रात्मकसंख्या, और क्षेमपुरके नेमिनाथचैत्यावादिराजने अपने किसी काव्य-ग्रन्थपर स्वोपज्ञ लयमें निर्माण ये दोनों बातें विचारणीय हैं। क्योंकि टीका लिखी हो, यह ज्ञात नहीं होता। उनके दोनों टीकाओंका एक ही स्थानमें निर्माण होना यशोधर-काव्य और पार्श्वनाथ-चरित दोनों ही ग्रन्थ अवश्य ही विचारणीय है। छपाई-सफाई प्रायः मुद्रित हो चुके हैं, पर उनकी स्वोपज्ञ टीकाओंका कोई अच्छी है। यह ग्रन्थ प्रत्येक पुस्तकालयमें संग्रह परिचय नहीं है। मालूम होता है कि किसी अन्य · करने योग्य है। विद्वान्की टीकाको ही 'स्वोपज्ञ' भूलसे लिखा गया । है; क्योंकि उसी सूचीके १३० वें पृष्ठपर १२६ वें ३. हिन्दी-पद्य-संग्रह-सम्पादक-मुनि कान्तिसागर नम्बरके ग्रन्थ 'यशोधर-काव्य-टीका' के, जिसका रच- प्रकाशक-श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान-भंडार, सूरत । पृष्ठयता पंडित लक्ष्मण है और जिसकी पत्र-संख्या भी संख्या ६८ । ११५ नम्बरके समान ३२ बतलाई गई है, अन्तिम प्रस्तुत पुस्तकमें विभिन्न कवियोंद्वारा संकलित प्रशस्तिके दो पद्य सूचीमें निम्नरूपसे दिये हुए हैं :- नगरोंकी परिचयात्मक गजलोंका संग्रह है जो ऐति"अकारयदिमा टीका चिक्कणो गुणरक्षणः । हासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनसे उन नगरोंकी अकरोजि नदासोऽयं चिक्कणात्मजलचमणः ॥१॥ तत्कालीन परिस्थितिका चित्र सामने आजाता है । ... श्रीमत्पद्मणगुम्मटेत्यभिहितौ श्रीवर्णिनौ भूतले, .. दि० जैनशास्त्र-भंडारोंमें इस प्रकारकी अनेक गजलें, भ्रातारौश्चारुचरित्रवार्धिहिमगू तत्प्रीतये लक्ष्मणः। कवित्त तथा लावनियाँ पाई जाती हैं जिनमें उनकी मन्दो बन्धुरवादिराजविदषः काव्यस्य कल्याणदां. ऐतिहासिक परिस्थितिके साथ वहाँकी जनताकी टीका क्षेमपुरेऽकरोद् गुरुतरश्रीनेमिचैत्यालये ॥२॥" धार्मिक परिणतिका भी परिज्ञान होजाता है। मुनिजी इन पद्योंसे स्पष्ट मालूम होता है कि यशोधर का यह कार्य प्रशंसनीय है। आशा है वे इस काव्यकी. इस टीकाको लक्ष्मणने अपने पिताके अनु प्रकारकी अन्य ऐतिहासिक कविताओंका भी संग्रह रोधसे बनाई है और अपने दोनों भाई पद्मण और प्रकाशित करनेका प्रयत्न करेंगे। गुम्मट वणिद्वयके कहनेसे उनके प्रेमवश क्षेमपुरके पुस्तकके अन्तमें बतौर परिशिष्टके गजलोंमें बृहत् नेमिनाथ-चैत्यालयमें उसे रचा है। बहुत प्रयुक्त हुए नगर, ग्राम, राजा, मंत्री, सेठ और संभव है दूसरी प्रतिमें, जिसका ऊपर उल्लेख श्रावक-श्राविकाओंके नामोंकी सूचीका न होना खटकिया गया है यही टीका साथमें अंकित हो, कता है । आशा है अगले संस्करणमें इस बातका जिसे स्वोपज्ञ बतलाया गया है, यदि वह स्वोपज्ञ ध्यान रक्खा जावेगा। -परमानन्द जैन, शास्त्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527268
Book TitleAnekant 1949 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1949
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy