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________________ ॐ अहम *** * तत्त्व-सचातक श्वतत्व-प्रकाशक, * वार्षिक मूल्य ५)* Terrervezaakecrezmera * एक किरणका मूल्य ॥) * बELAMMAR नीतिविरोधध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥ ** वर्ष १० किरण १ . वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम ), ७/३३ दरियागंज, देहली श्रावण, वीर निर्वाण-संवत् २४७५, विक्रम संवत् २००६ जुलाई १६४६ श्रीवीर-स्तवन [यमकाष्टक स्तोत्र ] [यह स्तोत्र अभी हालमें १६ जूनको पंचायतीमन्दिर देहलीके शास्त्र-भंडारको देखते हुए उपलब्ध हुआ है । इसमें यमकालंकारको लिये हुए वीर भगवानके स्तवन-संबंधी आठ पद्य हैं । अन्तके दो पद्य प्रशस्त्यात्मक हैं और उनमें स्तोत्रकार अमरकीर्तिने अपना और अपनी इस रचनाका संक्षिप्त परिचय दिया है, जिससे मालूम होता है कि 'इस स्तोत्रके रचयिता भट्टारक अमरकोर्ति विद्यानन्दके शिष्य थे, परशीलवादियों अथवा परमतवादियोंके मदका खण्डन करनेवाले थे, उन्होंने परमागमका अध्ययन किया था, शब्दशास्त्र और युक्रि (न्याय) शास्त्रको अधिगत किया था और विद्वानोंक लिये देवागमाऽलंकृति नामक ग्रन्थकी रचना की थी। उनका यह वीररूप यमकाष्टक स्तोत्र मंगलमय है, जो भव्यजन सदा (भावपूर्वक) इस स्तोत्रका पाठ करता है वह भारतीमुखका दर्पण बन जाता है-सरस्वती देवी सदा ही उसमें अपना मुख देखा करती है अथवा यों कहिये कि सरस्वती का मुख उसमें प्रतिबिम्बित हुआ करता है । यह रचना बड़ी सुन्दर गम्भीर तथा पढ़ने में अतिप्रिय मालूम होती है। अष्टक पद्योंके प्रत्येक चरणमें एक एक शब्द एकसे अधिकवार प्रयुक्त हुआ है और वह भिन्न भिन्न अर्थको लिये हुए है इतना ही नहीं बल्कि एक ही पदमें अनेक अर्थोंको भी लिये हुए है, जिन्हें साथमें लगी हुई टीका-द्वारा स्पष्ट कियागया है और जो प्रायः स्वोपज्ञ जान पडती है, यही इस यमकरूप काव्यालंकारकी विशेषता है, जिसे इस स्तोत्रमें बड़ी खूबीके साथ चित्रित किया गया है। प्रत्येक अष्टक पद्यका चौथा चरण 'वीरं स्तुवे विश्वहितं हितं हितम्' रूपको लिये हुए है, जिसमें टीकानुसार यह बतलाया है कि 'मैं उस वीरका स्तवन करता हूँ जो विश्वके लिये हित रूप है, विश्वजनोंका वृद्ध है या सारे विश्व अथवा विश्व के सब पदार्थ जिसके लिये हितरूप-पथ्यरूप हैं-कोई विरोधी नहीं-अथवाद्रव्य-गुण-पर्यायरूप, चेतन अचेतनरूप, मूर्त-अमूर्तरूप और देश-कालादिके अन्तरितरूप जो सर्ववस्तुसमूह है वह विश्व, उसे युगपत् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527268
Book TitleAnekant 1949 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1949
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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