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________________ करण १० ] गाँधीजीकी जैन धर्मको देन [३७१ और संसार त्याग ही चाहिये। इस विचारने अन- जैन समाजके अपने निजी भी प्रश्न थे। जो उलझनोंसे गार त्यागियोंके मनपर भी ऐसा प्रभाव जमाया पूर्ण थे। आपसमें फिरकाबन्दी, धर्मके निमित्त अधर्म था कि वे रात दिन सत्य, अहिंसा और अपरिग्रहका पोषक झगड़े, निवृत्तिके नामपर निष्कियता श्री उपदेश करते हुए भी दुनियावी-जीवनमें उन उपदेशों ऐदीपन की बाढ़, नई पीढ़ीमें पुरानी चेतनाका विरोध के सच्चे पालनका कोई रास्ता दिखा न सकते थे। वे और नई चेतनाका अवरोध, सत्य, अहिंसा और थक कर यही कहते थे कि अगर सच्चा धर्म पालन अपरिग्रह जैसे शाश्वत मूल्य वाले सिद्धान्तोंके प्रति करना हो तो तुम लोग घर छोड़ो, कुटुम्ब समाज और सबकी देखादेखी बढ़ती हुई अश्रद्धा ये जैन समाजकी राष्ट्रकी जबाबदेही छोड़ो, ऐसी जवाबदेही और सत्य- समस्याएँ थीं। अहिंसा अपरिग्रहका शुद्ध पालन दोनों एक साथ .. सम्भव नहीं। ऐसी मनोदशाके कारण त्यागी गण ___ इस अन्धकार प्रधान रात्रिमें अफ्रिकासे एक कर्मवीरकी हलचलने लोगोंकी आँखें खोली। वही देखनेमें अवश्य अनगार था, पर उसका जीवन कर्मवीर फिर अपनी जन्म-भूमि भारत भूमिमें पीछे तत्त्वदृष्टिसे किसी भी प्रकार अगारी गृहस्थों की लौटा । आते ही सत्य, अहिंसा और अपरिप्रहकी र अपेक्षा विशेष उन्नत या विशेष शुद्ध बनने न पाया निर्भय और गगनभेदी वाणी शान्त-स्वरसे और था। इसलिये जैन समाज की स्थिति ऐसी होगई थी जीवन-व्यवहारसे सुनाने लगा । पहले तो जैन कि हजारोंकी संख्या साधु-साध्वियोंके सतत होते हात समाज अपनी संस्कार-च्युतिके कारण चौंका । उसे रहनेपर भी समाजके उत्थानका कोई सच्चा काम भय मालूम हुआ कि दुनियाकी प्रवृत्ति या सांसारिक होने न पाता था और अनुयायी गृहस्थवर्ग तो साधु राजकीय प्रवृत्तिके साथ सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह साध्वियोंके भरोसे रहनेका इतना आदि हो गया . का मेल कैसे बैठ सकता है ? ऐसा हो तो फिर त्याग था कि वह हरएक बातमें निकम्मी प्रथाका त्याग मार्ग अनगार धर्म जो हजारों वर्षसे चला आता है सुधार, परिवर्तन वगैरह करनेमें अपनी बुद्धि और वह नष्ट ही हो जायगा। पर जैसे-जैसे कमवीर गाँधी साहस ही गँवा बैठा था। त्यागीवर्ग कहता था कि एकके बाद एक नये-नये सामाजिक और राजकीय हम क्या करें ? यह काम तो गृहस्थोंका है। गृहस्थ कहते थे कि हमारे सिरमौर गुरु हैं। वे महावीरके क्षेत्रको सर करते गये और देशके उच्चसे उच्च मस्तिष्क प्रतिनिधि हैं. शास्त्रज्ञ हैं, वे हमसे अधिक जान सकते. . भी उनके सामने झुकने लगे। कवीन्द्र रवीन्द्र, लाला हैं, उनके सुझाव और उनकी सम्मतिके बिना हम कर लाजपतराय, देशबन्धुदास, मोतीलाल नेहरू आदि ही क्या सकते हैं ? गृहस्थोंका असर ही क्या पड़ेगा? मुख्य राष्ट्रीय पुरुषोंने गाँधीजीका नेतृत्व मान लिया। साधुओंके कथनको सब लोग मान सकते हैं .. वैसे-वैसे जैन समाजकी भी सुषुप्त और मुच्छितसी इत्यादि । इस तरह अन्य धर्म समाजों की तरह जैन । धमचेतनामें स्पन्दन शुरू हुआ। स्पन्दनकी यह लहर समाजकी नैया भी हर एक क्षेत्रमें उलझनोंकी क्रमशः ऐसी बढ़ती और फैलती गई कि जिसने भँवरमें फंसी थी। ३५ वर्षके पहलेकी जैन समाजकी काया ही पलट दी। जिसने ३५ वर्षके पहलेकी जैन समाजकी बाहरी और ____ सारे राष्ट्रपर पिछली सहस्राब्दीने जो आफ़तें भीतरी दशा आँखों देखी है और जिसने पिछले ३५ ढाई थीं और पश्चिमके सम्पर्कके बाद विदेशी राज्य- वर्षोंमें गाँधीजीके कारण जैन समाजमें सत्वर प्रकट ने पिछली दो शताब्दियोंमें गुलामी, शोषण और होने वाले सात्विक धर्मस्पन्दनोंको देखा है वह यह आपसी फूटकी जो आफत बढ़ाई थी उसका शिकार विना कहे नहीं रह सकता कि जैन समाजकी धर्मतो जैन समाज शत प्रतिशत था ही, पर उसके अलावा चेतना-जो गाँधीजीकी देन है-वह इतिहास कालमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527260
Book TitleAnekant 1948 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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