________________
३९२ ]
अनेकान्त
[वर्ष :
__ "तुम उसे दयालु कहती हो, परमात्मा कहती हो, था-डाकृर आपको यहाँ ले आए और कल रातभर जिसने थैली-पतियोंको गरीबोंका शोषण करनेका आपकी सेवामें लगे रहे। अब हालत कुछ ठीक बल दिया, गरीबोंके मौलिक अविकारोंकी माँगको देखकर सबेरे ही घर गए हैं और जाते समय मुझे अनैतिक और विद्रोह बताकर उन्हें चिर गुलामीमें आपकी पूरी फिकर करनेकी आशा दे गए हैं" नर्सने बाँध दिया, जिसने दुनियाभरके अत्याचारों और सरलतासे यह बात कह दी, जिसे डाकृर किशोर अनाचारोंको धार्मिक प्रश्रय दिया, उसे तुम दयालु छिपाना चाहता था। परमात्मा कहती हो नर्स ! पत्थरके भगवानको दयाका "तो यों कहो कि मुझे इस घृणित दुनियामें फिरसे अवतार कहते तुम्हें अपनेपर हँसी नहीं आती देवी !” खींच लानेवाला डाकृर किशोर ही है । नीच ! -चन्द्र खीझ रहा था-'भोली नारी सबको अपने धोखेबाज ! मेरा सर्वस्व छीनकर अब मेरी स्वतन्त्रता जैसा ही समझती है' उसने करवट बदली। भी छीनना चाहता है। मेरे जीवनभरकी मित्रताकी -नर्सने कोई उत्तर न दिया। कमरा नीरव हो गया, कोई कदर न करनेवाला पापी है कहाँ ?” चन्द्रकी । ' दोनों चुप थे।
आँखें लाल हो गईं। __"आपके दवा पीनेका समय हो गया, मैं अभी "वे घर गए हैं चन्द्रबाबू, आप शान्त हो जाइए" लाई" नर्सने नीरवता भङ्ग की।
नर्सने मीठे अनुनय भरे स्वरमें प्रार्थना की। "दवा ! क्यों ? मुझे हुआ क्या जो दवा पिलाती "ठीक, अच्छा ही हुआ कि वह यहाँ नहीं है । मैं हो।" रोगीने आँखें खोली।।
उसकी सूरत भी नहीं देखना चाहता, मुझे उससे __“जी, आप अस्वस्थ है, आपको दवा पीनी ही नफरत है, उसकी सूरतसे नफरत है. उसके पेशेसे चाहिए, मैं अभी लाई” नर्स दवा बनानेको चल दी। नफरत है । मैं जाऊँगा, अभी जाऊँगा" चन्द्रने उठने
"नर्स ठहरो । मैं पूर्ण स्वस्थ हूं, मुझे दवाकी की चेष्टा की। आवश्यकता नहीं" रोगीने निषेध किया।
. "नहीं-नहीं, लेटे रहिए चन्द्रबाबू" नर्सने कंधे - "नहीं, आपको दवा पीनी ही चाहिए चन्द्रबाबू, पकड़कर उसे फिर लेटानेकी चेष्टा की। पर इस बार आपका स्वास्थ्य अभी ठीक नहीं हुआ ।" नर्सने वह रोगीको मनानेमें असफल रही। चन्द्र उठ खड़ा अनुनय की।
हुआ और वेगसे दरवाजेकी ओर बढ़ा। "किसने कहा तुमसे कि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं "मान लीजिए चन्द्रबाबू. मत जाइए, आपका है" चन्द्रने मधुर हँसी हँसी।
स्वास्थ्य ठीक नहीं है, डाकृरके सारे प्रयत्नोंपर पानी _ "डाकृरने, वे आपको मेरी निगरानीमें छोड़ गए फेरकर अपने जीवनको खतरेमें न डालए।" नर्सकी हैं। मुझे अपनी ड्यूटी करने दीजिए अन्यथा डाकृर आँखें डबडबा आई। नाराज होंगे।" नर्सने सरल प्रार्थना की।
"मैं यहाँ क्षणभर भी नहीं ठहर सकता देवी, "डाकृर!" चन्द्रने विस्मयसे आँखें फाड़ी-"कौन अपनी बहिनका खून करनेवाले दुष्ट डाकृरकी सूरत मैं डाकृर ?” उसने प्रश्न किया।
नहीं देख सकता । मैं चला, अपनी बहिनके पास"डाकृर किशोर" नर्सने उत्तर दिया। देखो देखो वह मुझे बुला रही है"-चन्द्र वेगसे
"डाकर किशोर ! तो क्या मैं डाकृर किशोरके अस्पतालसे बाहर हो गया। अस्पतालमें हूं" रोगीकी जिज्ञासा बढ़ी।
- नर्स रोकती रह गई। ___“जी हाँ, आप उन्हींके अस्पतालमें हैं । और .. वही आपका इलाज भी कर रहे हैं। आप अपने डाकृरने जब कमरेमें प्रवेश किया तो रोगीके कमरेमें बेहोश पड़े थे-शायद आपने जहर खा लिया पलङ्गको खाली पाया और नर्सको एक कोनेमें खड़े
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org