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________________ किरण १० ] अहारक्षेत्रके प्राचीन मूर्ति-लेख [३८६ .................. .......................... .......... बायें हाथके ऊपरका हिस्सा छिल गया है। करीब उनके पुत्र चार-सोम, जनपाहुड़, लाखू, लाले इन्होंने ६ फुटकी खड्गासन है। काला पाषाण है। चिह्न प्रतिविम्ब प्रतिष्ठा कराई। हिरणका है। लेख घिस गया है। इस लिये पूरा पढ़ा मूर्तिका शिर पूरा खण्डित है। करीब १।। फुटकी नहीं जाता। . पद्मासन है । काले पाषाणकी बनी हुई है। चिह्न शङ्ख लेख नम्बर १६ का है। शिलालेख स्पष्ट दीखता है । मूर्तिकी पॉलिश सं० १२१६ माघसुदी १३ शक्रदिने कुटकान्वये पंडित चमकदार है। स्त्रीमंगलदेव तस्य शिष्य भट्टारक पद्मदेव तत्पट्ट ..... लेख नम्बर २१ ___ सं० १२२८ फागुनसुदी १२ जैसवालान्वये साहु देन्द्र भ्रात ईल्ह सुत बाल्ह सुत कुल्हा वीकलोहट वाल्ह सुत भावार्थ:-कुटकवंशोत्पन्न पंडित श्रीमंगलदेव आसवन प्रणमन्ति नित्यम् ॥ उनके शिष्य भट्टारक पद्मदेव उनकी पट्टावलीमें हुए भावार्थः-जैसवाल वंशोत्पन्न साहु देन्द्र उनके .... ने सं० १२१६ भाई ईल्ह उनके पुत्र वाल्हू उनके पुत्र कुल्हा वीकके माघ सुदी १३ शुक्रवारके दिन विम्ब प्रतिष्ठा कराई। लोहट-वालू उनके पुत्र आसवन इन्होंने वि० सं० मूर्तिके दोनों तरफ इन्द्र खड़े हैं। मूर्ति घुटनोंके १२२८के फागुन सुदी १२को विम्ब-प्रतिष्ठा कराई। पाससे बिल्कुल टूट गई है। दोनों हिस्से जोड़कर मूर्तिका शिर नहीं है। तथा दोनों हाथ भी नहीं मन्दिर नं० १के चबूतरेपर लिटा दी गई है । चिह्न हैं। सिर्फ धड़मय आसनके रूपमें उपलब्ध है । चिह्न वगैरह कुछ नहीं हैं। दो व्यक्तियोंने मिलकर प्रतिष्ठा वगैरह कुछ नहीं है लेख स्पष्ट है। करीब १।। फुटकी कराई है ऐसा लेखसे विदित होता है। इसी दिन पद्मासन है। काला पाषाण है । पॉलिश चमकदार है। इसी अवगाहनाकी ३ मूर्तियाँ और भी उक्त दोनों. लेख नम्बर २२ व्यक्तियोंने प्रतिष्ठित कराई हैं। करीब ६ फुटकी खड- सं० १२३७ मार्गसुदी ३ शक गोलापूर्वान्वये साहु गासन है। पाषाण काला है। यशार्ह पुत्र उदे तथा वील्हण एते श्रीनेमिनाथं नित्यं लेख नम्बर २० '-प्रणमन्ति । मंगलं महाश्री ॥ · सं० १२०३ माघसुदी १३ जैसवालान्वये साहु खोने भावार्थः-गोलापूव-वंशोत्पन्न शाह यशाह उनके भार्या यशकरी सुत नायक साहुपाल-वील्हे माल्हा परमे- पुत्र ऊदे तथा वील्हण ये श्रीनेमिनाथको सं० १२३७के महीपति सुत श्रीरा प्रणमन्ति नित्यम् । अगहनसुदी ३ शुक्रवारको प्रतिष्ठा कराकर नित्य - सं० १२०३ माघसुदी १३ जैसवालान्वये साहु बाहड़ प्रणाम करते हैं। . . मार्या शिवदेवि सुतसोम-जनपाहुड लाखू-लोले प्रणमन्ति मूर्तिका शिर और दोनों हाथ नहीं हैं। सिर्फ नित्यम् ॥ धड और आसन विद्यमान है। आसनपर लेखके भावार्थः-जैसवालवंशोत्पन्न शाह खोने उनकी अतिरिक्त कुछ नहीं है। चिह्न बैलका है। करीब डेड़ धर्मपत्नी यशकरी उनके पुत्र नायक साहुपाल्ह वील्हे- फुट ऊँची पद्मासन है । पाषाण काला है। माल्हा-परमे-महीपति. ये पाँच तथा महीपतिके पुत्र लेख नम्बर २३ श्रीराने सं० १२०३ माघ सुदी १३ को विम्ब-प्रतिष्ठा संवत् १२१४ फागुन वदी १ सोमे अवधपुरान्वये कराई। . ठक्कुर श्रीनान सुत ठक्कुर नीनेकस्य भार्या पाल्हणि नित्यं सं० १२०३ को जैसवालवंशमें प्रणमन्ति कर्मक्षयाय । पेक्षा होनेवाले शाह वाहड़ उनकी धर्मपत्नी शिवदेवि भावार्थः-अवधपुरिया वंशोत्पन्न ठक्कुर नान्न ०.२माघ मदा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527260
Book TitleAnekant 1948 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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