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________________ ३८६ ] . [वर्ष ६ .अनेकान्त चूनासे पुनः जोड़ा गया है। मूर्ति करीब १॥ फुट धर्मपत्नी मामने प्रतिमा बनवाई । उनका पुत्र महीपती पद्मासन है। पाषाण काला है । चिह्नको देखकर और वे उसे प्रतिदिन नमस्कार करते हैं। पुष्पदन्तकी मालूम होती है। कुछ शिलालेखका हिस्सा यह मूर्ति भी नं० १ मन्दिरके चौककी दीवारमें रमें बन्द है. अतः परा नहीं पढा जा सका।. चिन दी गई है। शिर धडसे अलग है। चुनासे पुनः लेख नम्बर ४ जोड़ दिया गया है । दोनों हाथोंकी अँगुलियाँ नहीं ____ सं० १२०६ वैशाख सुदी १३ श्रीमदनसागरपुरे हैं । चिह्न बैलका है मूर्ति चमकदार काले पाषाणकी मेडवालान्वये साहु कोकासुत साहु कारकम्प पडिमा है। श्रासन विशाल है। कारपिता ॥ लेख नम्बर ७ .. ___ भावार्थः-मेडवाल जातिभूषण साहु कोका तथा सं० १२१३ श्रीमाधुन्वये साहुश्रीयशकरसुत साहुश्रीपुत्र कारकम्पने सं० १२०९के वैशाख सुदी १३के दिन यशराय तस्य पुत्रैनः कमल यशधरी दायराउ प्रणप्रतिमा बनवाई। मन्ति नित्यम् ॥ . .. मूर्ति नं. ४की भाँति मन्दिर नं. १के प्रांगणमें . भावार्थः-सं० १२१३में (प्रतिष्ठित की गई इस है, शिर धड़से अलग है, पुनः जोड़ा गया है। मूर्तिकी मूर्तिको) माघुवंशमें पैदा होनेवाले शाह यशकर उनकी हथेली मय अँगुलियोंके छिल गई है। चिह्न बन्दरका धर्मपत्नी उनके पुत्र यशराय उनके पुत्र तीन हुये-कमल है । २ फुटकी अवगाहना है। पाषाण काला तथा यशधर-दार्याराउ, ये सब प्रतिदिन प्रणाम करते हैं । चमकीला है । मूर्ति पद्मासन है। ___ यह मूर्ति भी मन्दिर नं. १ के चौकमें खचित है। लेख नम्बर ५ शिर धड़से अलग होनेपर पुनः जोड़ा गया है। दोनों सं० १२१० वैशाख । सुदी १३ पौरपाटान्वये हाथोंके पहुँचा मय अँगुलियोंके नहीं हैं। दाएँ पैरके साहु ढूंदू-भार्या यशकरी तत्सुत साढू भार्या दिल्हीनलछी टकनोंसे नीचेका हिस्सा नहीं है (छिल गया है) तथा तत्सुत पोपति एते प्रणमन्ति नित्यम् ॥ बाएँ पैरकी जंघा छिल गई है। चिह्न चन्द्रका है। भावार्थः-पौरपाटान्वयमें पैदा होने वाले साहु ३ फुट अवगाहना है। आसन पद्मासन है। काले ढूंदू उनकी धर्मपत्नी यशकरी उनका पुत्र साद उसकी पाषाण की है। पत्री दिल्हीलक्ष्मी उसके पुत्र पोपति ये सब इस लेख नम्बर ८ विम्बकी सं० १२१८के वैशाख सुदी १३को प्रतिष्ठा . सं० १२१८ वैशाख सुदी १३ लामेचूकान्वये साहु कराकर सदा उसे नमस्कार करते हैं। क्षते तद्भार्या बना तयोः सुत नायक कमलबिन्द तद्भार्या ___ यह मूर्ति भी मन्दिर नं० १के प्रांगणमें दीवारमें साल्ही सुत लघुदेव एते प्रणमन्ति नित्यम् ॥ खचित है। शिर धड़से अलग है परन्तु पुनः चूनासे भावार्थः-लमेचूकुलमें पैदा होनेवाले साहु क्षते जोड़ दिया गया है। दायें हाथकी अँगुलियाँ नहीं हैं। उनकी पत्नी बप्रा उन दोनोंके पुत्र नायक कमलबिन्द चिह्न शङ्खका है । ३ फुट ऊँची, पद्मासन काले पाषाण उनकी पत्नी साल्ही पुत्र लघुदेव ये सं० १२१० वैशाखसुदी की है। आसन विशाल है। १३को विम्वप्रतिष्ठा कराकर प्रतिदिन प्रणाम करते हैं। लेख नम्बर ६ ___यह मूर्ति भी मन्दिर नं० १ के चौकमें शिर जोड़ ____सं० १२१६ माघसुदी १३ खडि[खंडे] लवालान्वये कर खचित है। हथेली छिल चुकी है । चिह्न कुछ नहीं साहु सल्हण तस्य भार्या माम तेन कर्मक्षयार्थ प्रतिमा ज्ञात होता है। करीब ३ फुट ऊँची है. पद्मासन है। कारापिता । तस्य सुत महिपति प्रणमन्ति नित्यम् ।। काले पाषाणसे बनी है।। भावार्थ:-सं० १२१६के माघ सुदी १३के दिन लेख नम्बर ६ खण्डेलवाल वंशमें पैदा होनेवाले साहु सल्हण उनकी सं० १२०६ वैशाख सुदी १३ गृहपत्यन्वये साहु अल्ह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527260
Book TitleAnekant 1948 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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