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________________ ३६४ ] . अनेकान्त [ वर्ष ६ अध्ययन नहीं किया प्रत्युत उस ओर सर्वथा पक्षपात- बहुतसे ऐसे तत्व प्रकाशमें आयेंगे जिनका ज्ञान हमें पूर्ण या उपेक्षित मनोवृत्तिसे काम लिया है। यही. आजतक न था। मैं तो स्पष्ट कहूँगा कि विहारका कारण है कि इतनी विशाल ऐतिहासिक सामग्रीके इतिहास भारतका इतिहास है । विहारका इतिहास रहते हुए भी योग्य विद्वानके अभावमें आज वह • बहुत कुछ अंशोंमें जैनसाहित्यके अध्ययनपर सामग्री विधुरत्वका अनुभवकर रही है। निर्भर है। अतः बिना जैनसाहित्यके अन्वेषणके ___ता० ७-१०-४८ को विहारके कविसम्राट श्रीयुत् हम अपने प्रान्तका इतिहास लिखनेकी कल्पना रामधारीसिंह 'दिनकर' के साथ मैंने अपनी हार्दिक .. तक नहीं कर सकते। व्यथा विहार सरकारके शिक्षामन्त्री श्रीयुत् बद्रीनाथ हमारे प्रान्तकी प्राचीनतम भाषाका स्वरूप भी. वर्माके सन्मुख रखी । मुझे वहाँ मालूम हुआ कि वे जैनोंने अपने साहित्यमें सुरक्षित रखा है। अतः भी इसी रोगसे पीड़ित हैं, वे स्वयं चाहते हैं कि हम हम उन्हें कैसे भूल सकते हैं, बल्कि मैं तो कहूँगा अपनी दृष्टिसे ही अपने प्रान्तका सर्वाङ्गपूर्ण इतिहास कि हमारा प्रान्त उन जैन विद्वानोंका सदैव ऋणी तैयार करवावें । आपने अपनी युद्धोतर योजनामें रहेगा जिन्होंने हमारे सांस्कृतिक तत्व सुरक्षित संशोधन सम्बन्धी भी एक योजना रखी है जिसपर . रखनेमें हमारी बड़ी मदद की। मैं यह चाहता हूँ भारत सरकारकी मंजूरी भी मिल गयी है. परन्तु उसे और आपसे प्रार्थना करता हूँ कि यदि आप स्वयं मूर्तरूप मिलनेमें पर्याप्त समयकी अपेक्षा है । आदर्श जैनसाहित्यमें विहार, नामक एक ग्रन्थ तैयार कर की सृष्टि करना उतना कठिन नहीं जितना उनको दें तो बड़ा अच्छा हो । हमारी सरकार इस कार्यमें मूर्तरूप देना कठिन है ।-प्रसंगवश मैने विहारकी हर तरहसे मदद करनेको तैयार है। सरकार ही संस्कृतिके बीज जैन-साहित्यमें पाये जानेकी चर्चाकी इसे प्रकाशित भी करेगी । हमारी तो वर्षोंकी 'तो उनका हृदय भर आया। मुखाकृति खिल उठी। मनोकामना है कि प्रत्येक धर्म और साहित्यकी इस समय आपने सद्भावनाओंसे उत्प्रेक्षित होकर दृष्टियों में हमारे प्रान्तका स्थान क्या है ? हम जाने जो शब्द जैन-साहित्यपर कहे उन्हें मैं सधन्यवाद और वर्तमानरूप देनेमें आवश्यक सहायता करें। उधृद्त किये देता हूं: यदि आप अभी लेखन कार्य चालू करें तो "जैनसाहित्य बड़ा विशाल विविध विषयोंसे ४००) रुपये तक मासिक जो कुछ भी क्लर्क या समृद्ध है । अभी तक हमारे विहार प्रान्तके सहायक विद्वान्का खर्च होगा, हम देंगे।" विद्वानोंने इस महत्वपूर्ण साहित्यपर समुचित ध्यान - उपयुक्त शब्द बद्री बाबूके हृदयके शब्द हैं। इनमें नहीं दिया है। विहार प्रान्तके इतिहास और पॉलिश नहीं है । उनके शब्दोंसे मेरा उत्साह और भी संस्कृतिकी अधिकतर मौलिक सामग्री जैनसाहित्य- आगे बढ़ गया। मैने उपयुक्त शब्द इस लिए उद्धृत में ही सुरक्षित है । विशेषतः श्रमण भगवान किये हैं कि हमारे समाजके विद्वान जरा ठंडे दिमारासे महावीर कालीन हमारे प्रान्तका सांस्कृतिक चित्र सोचें कि हमारे साहित्यमें कितनी महान निधियाँ जैसा जैनोंने अपने साहित्यमें अङ्कित कर रखा है भरी पड़ी हैं जिनका हमें ज्ञान तक नहीं और अजैन वैसा अजैन-साहित्यमें हर्गिज नहीं पाया जाता। लोग जैनसाहित्यको केवल विशुद्ध सांस्कृतिक दृष्टिसे साहित्य-निर्माण और संरक्षणमें जैनोंने बड़ी उदा- देखते हैं तो उन्हें बड़ा उपादेय प्रतीत होता है। वे रतासे काम लिया है। यदि हम जैनसाहित्यका मुग्ध हो जाते है। केवल सांस्कृतिक दृष्टिसे ही अध्ययन करें तो १०-१०-१९४८ मुनि कान्तिसागर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527259
Book TitleAnekant 1948 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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