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किरण '६]
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साहित्य-परिचय और समालोचन
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इस पुस्तकमें आचार्य कुन्दकुन्दके पश्चास्तिकाय, . वंदित्ता अरिहंते सिद्ध आयरिय सव्वसाहूय । प्रवचनसार और समयसार नामके तीन ग्रन्थोंके संखेवेण महत्थं कररेहालक्खणं वुच्छं ॥१॥ मुख्य विषयोंका अपने ढङ्गसे एकत्र संग्रह और
-लिखित प्रति सङ्कलन किया गया है। इससे संक्षेप-प्रिय पाठकोंको मुद्रित प्रतिमें मङ्गलाचरणके बाद निम्न गाथा विषय-विभागसे तीनों ग्रन्थोंका रसास्वादन एक साथ दी हुई है:होजाता है । लेखकका यह प्रयत्न और परिश्रम पावइ लाहालाहं सुहदुक्खं जीविअं च मरणं च । प्रशंसनीय है । पुस्तकके उपोद्धातमें ग्रन्थकर्ता, उनके रेहाहिं जीवलोए पुरिसोविजयं जयं च तहा ॥२॥ ग्रन्थों तथा उनकी गुरुपरम्पराका भो संक्षेपमें परिचय परन्तु लिखित प्रतिमें इस स्थानपर निम्न दो दिया है। पुस्तक अच्छी उपयोगी एवं संग्रहणीय है। गाथाएँ दी हुई हैं, जिनमेंसे प्रथम गाथाका चतुर्थ छपाई-सफाई सब ठीक है।
चरण भिन्न है. शेष तीन चरण मिलते-जुलते हैं। १४. करलक्खण (सामुद्रिकशास्त्र)--संपादक किन्तु तीसरी गाथा मुद्रित प्रतिमें नहीं मिलती। प्रफुल्लकुमार मोदी एम० ए०. प्रो० किङ्ग एडवर्ड कॉलेज पावइ लाहाऽलाहं सुह दुक्खं जीविय मरणं च । अमरावती। प्रकाशक. भारतीय ज्ञानपीठः काशी। पृष्ठ, रेहाए जीवलोए पुरिसो महिलाइ जाणिज्जइ ॥२॥ संख्या सब मिलाकर ३८ ! मूल्य. सजिल्द प्रतिका १)
आउं पुत्त च धणं कुलवंसं-देह-संपत्ती । ___ इस अज्ञात कतृक पुस्तकके नामसे ही उसके ... पुवभव संचियाणि य पुनाणि कहंति रेहाओ ॥३॥ विषयका परिचय मिल जाता है। इसमें शारीरिक इन उद्धरणोंसे स्पष्ट है कि एक ग्रन्थपर दसरेका विज्ञानके अनुसार हाथकी रेखाओंकी आक्रति. प्रभाव अवश्य है। बनावट. रूप. रा. कोमलता. कठोरता. स्निग्धता और १५. मदनपराजय-मूल लेखक, कवि नागदेव । रूक्षता तथा सूक्ष्म-स्थूलतादिकी दृष्टिसे विभिन्न अनुवादक-सम्पादक, पं० राजकुमारजी साहित्याचार्य।
विभिन्न फल बतलाया गया है। शरीर प्रकाशक, भारतीय ज्ञानपीठ. काशी । पृष्ठ संख्या. सम्बन्धी चिह्नों या रेखाओंके द्वारा मानवीय प्रवृत्तियोंके सब मिलाकर २४२ । मू०. सजिल्द प्रतिका) रुपया। शुभाशुभ फलका निर्देश करना भारतीय सामुद्रिकग्रन्थों- प्रस्तुत ग्रन्थ एक रूपक-काव्य है. जिसमें कामदेव की प्राचीन मान्यता है। इस विषयपर भारतीय साहित्य- के पराजयकी कथाका भावपूर्ण चित्रण किया.गया है। में अनेक ग्रन्थोंकी रचना हुई है । प्राक्कथनद्वारा डार्कर कविने अपनी कल्पना-कलाकी चतुराईसे कथावस्तुकी ए.एन.उपाध्ये एम.ए.ने इसपर संक्षेपत:प्रकाश डाला है। घटनाको अपूर्व ढङ्गसे रखनेका प्रयत्न किया है और
वीरसेवामन्दिरमें भी एक अज्ञात कर्तृक कररेहा- वह इसमें सफल भी हुआ है । प्रस्तुत रचना बड़ी ही लक्खण' नामका ५६ गाथाप्रमाण छोटा-सा सामुद्रिक सुन्दर एवं मनोमोहक है और पढ़ने में अच्छी रुचिकर प्रन्थ है. जो एक प्राचीन गुटकेपरसे उपलब्ध हुआ है। जान पड़ती है। सम्पादकद्वारा प्रस्तुत ग्रंथका मूलानुइन दोनों ग्रन्थोंका विषय परस्पर मिलता-जुलता है गामी हिन्दी अनुवाद भी साथमें दिया हुआ है। ग्रन्थके
और कहीं-कहींपर गाथा तथा पदवाक्य भी मिलते हैं। आदिमें महत्वपूर्ण प्रस्तावनाद्वारा भारतीय कथापरन्तु मङ्गलाचरण दोनोंका भिन्न-भिन्न है। दोनों ग्रंथों- साहित्यका तुलनात्मक विवेचन करके उसपर कितना को सामने रखनेपर ऐसा प्रतीत होताहै कि उनपर एक ही प्रकाश डाला गया है। पं० राजकुमारजी जैनदूसरेका प्रभाव स्पष्ट है। वे मङ्गल पद्य इस प्रकार है:- "समाजके एक उदीयमान विद्वान और लेखक हैं। पणमिय जिणममित्रगुणं गयरायसिरोमणि महावीरं । आशा है भविष्यमें आपके द्वारा जैन-साहित्य-सेवाका वुच्छं पुरिसत्थीणं करलक्खणमिह समासेणं ॥१॥ कितना ही कार्य सम्पन्न हो सकेगा । प्रस्तुत ग्रन्थ
· मदित प्रति पठनीय व संग्रहणीय है। -परमानन्द शास्त्री
द्रा माता
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